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________________ [114] आनुं प्राकृत रूपांतर में 'वज्जालग्ग'मांथी मारा 'सिद्धहेम'ना अपभ्रंश विभागना अनुवादमां में नोंध्युं छे. (पृ. १८३) (२) अम्मि पयोधर वज्जमा, निच्चु जे संमुक थंति । महु कंतहो समरंगणइ, गय-घड भज्जिउ जंति । (३९५, ५) आ साथे सरखावो नीचेना दुहानो उत्तरार्ध : ले ठाकर वित आपणा, देतो रजपूतांह । धड धरती पग पागडे, आंतर गीधडीआंह ॥ ('दुहो दशमो वेद', क्रमांक ३६६) 'माडी मारा स्तन वज्र जेवा छे, कारण के ते सदैव मारा कान्तनी सन्मुख रहे छे, ज्यारे समरांगणमां गजघटाओ पण मारा कान्त पासेथी हारीने भागी जाय छे ? आ साथे सरखावो : शैल धमका क्यों सह्या, क्यों सहिआ गज-दंत । कठण पयोधर झुंचतां, तुं कणकणियो' तो कंथ । (उक्त पुस्तक, क्रमांक २११) 'शत्रुजयमंडन-ऋषभदेव-स्तुति' : थोडी पूर्ति । जयंत कोठारी मुनि भुवनचंद्रजी संपादित आ कृति 'अनुसंधान-५'मां (पृ.४०-४३) मुद्रित थयेली छे. त्यां एना कर्ता विजयदानसूरि शिष्य 'वासणा' (वासण ?) साधु जणावेल छे अने 'जैन गूर्जर कविओ' तथा 'गुजराती साहित्यकारो (मध्यकाल)'नो हवालो आपवामां आव्यो छे. 'अनुसंधान-६'मां मुनि भुवनचन्द्रजी आ कृतिनी अन्य बे हस्तप्रतोनी माहिती आपे छे अने संस्कृत टीकावाळी प्रतमां आरंभे स्पष्ट रीते विजयतिलक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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