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________________ [107] संपादन कर्यु, तेना अंतनी पुष्पिकाओ पादटीपमां पण आपी नथी. जे आपवी संपादननी दृष्टिए आवश्यक गणाय. . खरेखर तो, पोताना समयमां अन्य गच्छोए, उपधान अने प्रतिष्ठाना मुद्दे विरोधनो अभिगम अपनाव्यो हतो, तेना जवाबमां श्री अभयदेव सूरि महाराजे आ पंचाशक रच्यु होवानी धारणामां विशेष औचित्य जणाय छे. हरिभद्राचार्यनी भाषा तथा शैली करतां आ पंचाशकनी भाषा शैली जुदां पडे छे ते तो खरुंज; परंतु 'भवविरह' शब्द न प्रयोजीने मात्र 'विरह' शब्दनो प्रयोग करतां तेमणे बहु ज मार्मिक रीते आ कृतिनुं कर्तृत्व हरिभद्रसूरिनुं न होवानुं व्यक्त करी दीधुं छे. बाकी, शीख वगेरे संप्रदायोमा जेम कोई पण गादीपतिनी रचना आद्य गुरुनी रचना ज गणाय छे, तेम आ दाखलामां पण, रचना पोतानी छतां तेने हरिभद्राचार्यनी रचनानी जेम ज रजू करी होय तो ते अभयदेवसूरिजीनी लघुता अथवा नम्रनातानो ज दाखलो गणाय. मुनि प्रेमविजयजीनी टीपना गुजराती शब्दो ___ - मुनि भुवनचन्द्र अनुसंधान-६मां छपायेली 'मुनि प्रेम विजयजीनी टीप'मां घणा शब्दो एवा छे के जे श्री जयंत कोठारीना 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश'मां नोंधाया नथी। आमांना मोटा भागना शब्दो जैन परंपरामां आजे पण प्रचलित होय एवा छे; बीजा एवा पण शब्दो छे जे आजनी गुजरातीमां होय, किन्तु मध्यकालीन गुजरातीमां कंइक जुदा स्वरूपे व्यवहारमा हता एवं सूचित करे छे । आवां रूपो शब्दोनां मूळ शोधवामां सहायक बनी शके । प्रस्तुत सूचिमां, शब्दनी पछी अत्यारे प्रचलित रूप आप्युं छे । ते पछी तेनो अर्थ अने कौंसमां संस्कृत के देश्य मूळ आपेल छे । आ शब्दोनी विचारणामां पू. आचार्य श्री वि. प्रद्युम्नसूरिजीए रसपूर्वक भाग लीधो छे तेनी नोंध लेतां आनंद थाय छे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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