________________
[ 64]
इय संथुओ महायस ! कित्तिं दित्तिं धिई च मह पइस । वयणरसविजियपायस ! निन्नासिअदुरिअ ! हयअयस ! ॥१८॥ कलिमलमइरहिएणं भत्ती(त्ति )ब्भर निब्भरेण ही (हिअ) एणं । [सद्धाए सहिएणं मए थुओ जिण ! पणिहिएणं] ॥१९॥ ता देव ! दिज्ज बोहिं [पत्थेमि अहं तहा हिययसोहिं । तह मह दूरमबोहिं] कुणसु भवारण्णभमणोहिं ॥२०॥ अवगयपवयणनिस्संद ! भवे भवे पासजिणचंद ! । तुह पयपंकयमयरंद - भसलत्तं भवउ मह वंद! ॥२१॥ उवझायहरिसकल्लोल - सीसेणं भद्दबाहुरइयस्स। . संथवणस्स समस्सा विहिआ विबुहाण य पसंस्सा ॥२२।। इति श्रीपार्श्वस्तवनं समस्यास्तोत्रम् ॥ लिखितं दामोदर पुरुसोत्तमेन ।।
--x
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org