SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [9] एयाए अवसप्पिणीए जं समयं केवलनाणी तित्थगरे, तस्स पासे बंभलोइंद पुच्छा कस्स तित्थे मझं निव्वाणं भावि? । अरिष्टनेमितित्थे वरदिन्नो गणहरो होऊण मुक्खं गमिस्सइ । एवं सुच्चा अरिझुरयणमई पडिमा कया । तं गिण्हिऊण बंभलोए कप्पे पूई(इ)या। एगूणवीसकोडाकोडी अयराण, जा या चेव भरहेसरस्स समप्पिया। उज्जिलसि (ह )रम्मि सोवन्नमए चेईहरणे(हरे) रूप्पमई सोवन्नमई अवरा । तं चेईहरं असंखउद्धारेहि अवसोहियं । छव्वीस वीसा(स)सोलस दस दुग जोयण धणुस्सयपमाणे । अवसप्पिणीए य वुट्टि(ड)गुणं एयं...(?) अणंताणंत तित्थगर सेविए तित्थे अरिष्टरयणपडिमा नेमिस्स उड्ड(ड्ड)अहं तिरियलोए अनन्नसरिसे इमं महातित्थं जस्स वि सुमरणमित्ते भव्वा मुच्चंति दुक्खाउ। वै(वे)माण जोइवणभुवणजंतगा जं थुगंति पूर्यति । सासयचेई(इ)या(थं ?)भे चवणायारं पसंसंति ॥ जे उ ज(उण ?) अट्ठावय-विमलमि (म्मि ?)उ संघो अणुमा(मो ?) ईउ सु(मु?)हेण सक्कत्थवस्स अंते जे(चे)इयथुइकित्तणं कुणइ । गोसे सुमरणपुव्वं अन्नत्थ व्वि(ठि)उ वि अट्ठाहिय- अद्धमी(मा)स-मासखवण दुमास-तिमास-चउमास-छम्मासअट्ठमास- वरिस-बारसवासाई तवो फल(लं)गंठिसहियाई(इ) पवड्डमाण पच्चक्खाणेणं, जत्थ वा वंदणेणं समरणेणं पुहत्तमुक्खो विहिणा तित्थवंदणेणं उच्चागोयं जइ न वड्ढाओ(बद्धाऊ)। न च्छटुं भवग्गहणमइक्कमई । तित्थं वंदणयाए पडि गयस्स जइ कालं करेइ सव्वसुद्धो आराहगो भन्नइ । जइ वि भव्वो तित्थं वंहंणद्ध(वंदणट्ठ) याए मुहारंभा संघरक्खणट्ठा(ट्ठया)ए आसत्त(न ?)भव से (सि)द्धिया । जहा बलमित्त - भाणुमित्ता पइट्ठाणपुराउ एगो तिथिट्ठयाए अन्नो विद्धण(ण) याए । पहे पुलिंदए संम(समं)विणट्ठा । एगो एगावयारो अन्नो भमनमा(तमतमा)ए । दो वि उज्जेणीए बंधवा चाउवन्नसंघपरिवुडा उज्जिलसिहरम्मि पइट्ठिया। एगो अट्ठाहियाए मग्गे कालगउ । अवरो उज्जिलसिहरम्मि । दो वि सव्वट्ठसिद्धे उववन्ना । विदेहे सीमंधर र)-जुगंधर सामिणो उववन्ना । जो पुंडरीयं वंदइ नमसइ अन्नत्थ वि तिसंघं (झं?) आराहित्ता वेमाणिउ चाउवत्र समणसंघं पुंडरियं वंदावेइ इंदो वा चक्की वा तई(इ)य भवे मुक्खो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520506
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy