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________________ वली बोली तेना वडां-तणी वार्त्ता सांभली राजा स्यांतन विच्छाय हूउ छइ । मनइमाहि विमासिवा लागु छन् । ए बापडां साचीअ - इ जि वात कहई छ । (२ख) जींह- नइ गांगेउ सरीखु बेटु हुइ, तां बेडी-वाहा - नी बेटीनां बेटां- नई राज न हुई । मोटा राय - ना बेटा नीच कर्म्म करता लाजई । एक माहूरुं मुहत जाइ । बीजुं तीह - नुं इ मुहत जाइ । एह कारण इह - नई लाभ कांई न हुइ । राजा कालुं मुह करी पाछु वलिउ । श्लोक कूपच्छाया सरंग धूली च ( ? ) । भाग्यहीन - मनोरथाः || वन- कुसुमं कृपण- श्रीं एतानि विलयं यान्ति स्याम - वणि मुहि राजा बीजइ दिवसि सभां बइसेइ कय पर - चक्रागम थिउ अगालि लोपी आंण किणिहि सीमालि । वलिउ जांणे किरि सीकोतरि - छलिउ । मषी - वर्ण दीठु गांगे ॥ १०० अ- भगति कइ हूई माहरी जां राय- नुं न लाभई मंत्र मंति अमायत पूछिया कुमरि गयु नावडां-तणइ अवासि भणइ नावडु नइ नावडी आगे अम्हि अणमांनिउ राउ मन-नी वात सवे वलि कही रा दीकिरी देसिउं सही ॥ वली वात सांभलि गांगेउ जर किवार राजसन पडइ समरी - गलइ छाजइ नवि हार सावधान सांभलि एतलं इक अकुलीणां अधुं अम्हे उ । किम कारेली सुर-तरी चडइ ॥ किम नावडी राउ भरतार | झूझिया - पांहइ लूविउ भलुं ॥ वली बोली Jain Education International कइ रांणी गंगा सांभरी ॥ तां मई नवि करिवुं भोजन । जांणि वात सवे तिणि स-धरि ॥ करइ वींनती तीह बिहु - पासि । धीअम मागिसि भइ अम्ह - तणि ॥ हव तम्ह मागेवा नवि ठाउ । ९८ नावडां-तणां क्वन सांभली जां कांई हुं माहरा बाप - नु करिवा नीम । वली जे तम्हे वार्ता कहु छु, ते वात सघलीअ - इ साची । [82] १०५ गांगेउ - कुमर कहइ छ । भई सांभाळ वात । मनोर्थ पूरी न सकुं, तां कांई मझ भोजन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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