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वली चउपई
(सत्यवती - प्रसंग) एक दिवस वलि स्यांतन-राउ तिहां गयु जिहां जमणा-ठाउ । जमणा-तडि दिठी इक डुअरि रूपवंति बोलती चतुरि ॥ ९० राइ कुंअरि बोलावी वली कवण-तणी धीअ कां एकली ।। कुमरि भणइ सांभलि मझ वात अछइ नावडु माहरु तात ॥ तीह-रई धरम-तणु मनि भाव तस आदेसि वहादुं नाव । विसु पायकु लीजइ नहीं सत्यवती हुं नामिइं सही ॥ ९२
वली बोली ईसी वार्ता सांभली सत्यवती-नुं रूप देखी करी राजा अनुराग-चित्त हूउ छड् । जइ पोतइ भाग्य हुइ तु ए कंन्या-नुं पाणि-ग्रहण करुं । ते नावडा बेडी-वाहा-नुं घर-मंदिर पूछी बेडी-वाडा-नइ घरि गिउ छइ । बेडी-वाहु सांम्ह ऊठिउ । प्रणांम नींपजाविउ । आसण-बइसण मांडियां । राजा बइठु । नावडु-नावडी हाथ जोडी ऊभा रहियां कहई छई। स्वामिन, ए कुण वार्ता ? करीर-नइ गृहांगणि कल्प-वृक्ष आविउ ?
वली चउपई राजा भणइ सुणु तम्हि वात माहरां वचन म करिसिउ चात्र । धीअ तम्हारी दीठी अम्हे ते मझ घरि परणावु तम्हे ॥ राय-पाइ बेई जण पडी भणइ नावडु नइ नावडी । सालि दालि घी जे आहरई खल-नी साद्र कांइ ने करई ?॥ जे वइसई पूठि-नी पवंग तीह नर रासिभ-सिउं कुण रंग ? । जीह-नइ घरि गंग गोरडी ते नर नवि परणइं नावडी ॥ ९५ जइ अति आदर करिसिउ. तम्हे तम्ह दीकरी न देसिउं अम्हे । जइ कि-वार ए तम्ह घर वासि विषइ-सुख भोगवइ विलासि ॥ जे एह-नइ पुत्र जनमीअई. तम्ह पूठिई ते राजि न थीअइं । गांगेउ राज-तणउ धणी ते बापडा रुलई रेवणी ॥
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