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अनुक्रमणिका ० 'हीरसौभाग्य'नी स्वोपज्ञवृत्तिमां प्रयुक्त ___तत्कालीन गुजराती-देश्य शब्दो : डॉ. प्रहलाद ग. पटेल 5 ० 'सालिभद्र-धन्ना-चरित्र'ना कर्ता तथा एने.
अनुषंगे केटलुंक : जयंत कोठारी ० ट्रॅक नोंध : (१) वाचक उमास्वातिजीना पद्य विशे :
मुनि महाबोधिविजय (२) वाचक उमास्वातिजीनुं एक वधु पद्य, (३) धर्मसार, (४) केटलांक प्रसिद्ध पद्योनां समान्तर जूनां स्वरूप, (५) एक गाथाना पाठ विशे, (६) 'तूतीनामा'नां बे जैन चित्रो : पं. शीलचन्द्रविजय गणि 16-23 (७) अपभ्रंश छंद भ्रूवक्रणक, (८) झंबडक-गीत, (९) उद्दाम दंडक छंदनु एक प्राकृत उदाहरण, (१०) बे प्राचीन सुभाषितो उत्तरकालीन साहित्यमां, (११) 'मूलशुद्धिवृत्ति'मानुं एक सुभाषित, (१२) एक कहेवत उक्तिनुं पगेरुं, (१३) 'नीलीराग जैन', (१४) 'सातवाहनक-शास्त्र', (१५) 'पुष्पदूषितक', 'नंदयंती,, 'भद्राभामिनी', : हरिवल्लभ भायाणी
23-33 ० उपधान-प्रतिष्ठा-पञ्चाशक-प्रकरणमः । संपा. पं. पद्युम्नविजयजी गणी
34-38 ० शब्दप्रयोगोनी पगदंडी
39-47 (१) चाउरि, गब्दिका, गर्त : हरिवल्लभ भायाणी (२) प्रा. छेअ- 'अंत, हानि', बगेर ० 'श्री हीरविजयसूरिना चार प्राकृत स्वाध्याय' सं. पं. शीलचन्द्रविजय 48 ० घवळी विशे : खोडीदास परमार ० पूरक नोंध : ह. भायाणी ० प्रकाशन माहिती
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