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(११) 'मूलशुद्धिवृत्ति'मांगें एक सुभाषित एक जाणीतुं कहेवत-पद्य नीचे प्रमाणे छ :
एक नूर आदमी, हजार नूर कपडां,
लाख नूर टापटीप, करोड नूर नखरां. आनी साथे पद्युम्नसूरिकृत 'मूलशुद्धि-प्रकरण' (स्थानक-प्रकरण) (११मी शताब्दी) उपरनी देवचंद्रसूरिनी वृत्तिमां (इ.स. १२९०) मळती नीचेनी गाथा सरखावी शकाय :
वाया सहस्समइया, सिणेह-निज्झाइयं सय-सहस्सं । सब्भावो सज्जण-माणुसस्स कोडिं विसेसेइ ।। (पृ. १५१, पद्यांक २९७)
'सज्जननी वाणीनुं मूल्य एक हजार जेटलं, ते स्नेहपूर्वक दृष्टि के तेनुं मूल्य एक लाखनु, अने तेना सद्भाव, मूल्य एक करोडथी पण वधु'.
एक कहेवतरूप उक्तिनं पगेरं कान्तिलाल व्यासे नोंध्युं छे तेम ('वसंतविलास', त्रीजी आवृत्ति, १९५९ पृ. ६५), कालिदासकृत 'रधुवंश'(९,४७)मां वसंतवर्णनमां कोकिलना टहुकानी उत्प्रेक्षा करतां कविए कह्यु छे, 'कोकिल कहे छे, हे मानिनी, तुं मान तजी
दे, केम के रमणीय ,यौवन वीत्या पछी पार्दा आवतुं नथी'. आ ज भावनो . राजशेखर कविनी प्राकृत रचना 'कर्पूरमंजरी सट्टक'ना एक पद्यमां (१, १८) पडघो पड्यो छे. तेमां कडं छे : 'कोयले वसंतोत्सवमा पोताना टहुकारथी कामदेवनी आण घोषित करी : हे मानिनी तुं मान तजी दे. तारुण्य तो मात्र पांचदस दिवस ज टके छे (तारुणं दियहाई पंच दह वा)'. प्राचीन गुजराती फागुकाव्यमां आना ज अनुवादरूपे कवि कहे छे :
'मान रचउ किस्या कारण, तारुणु दीह बि-च्यारि'(२४). एटले के 'तुं मान शुं काम ग्रहण करे छे ? तारुण्य मात्र बेचार दिवस ज टकतुं होय छे.'
आ उक्ति 'जुवानी तो मात्र पांचदस दिवसनी' कहेवतरूप बनी गई जणाय छे, 'चार दिवसनी चांदनी' नी जेम. 'आख्यानकमणिकोश-वृत्ति'मां (इ.स. ११३३) एक प्रसंगे कहेवायुं छे (पृ. २७४, गाथा ५१):
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