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________________ शापित अप्सरा होवानो कथाघटक - एम घj जोडी देवामां आव्युं छे. आ नोंध तो तेमां मळतां मात्र बे प्राचीन पद्योनां रूपांतरने लगती ज छे. मुनि जिनविजय संपादित 'प्रबंधचिंतामणि'मां (पृ. ३२, पद्य ५२) तथा 'पुरातन प्रबंध संग्रह'मां (पृ. १८, पद्य ५३) संगृहीत भोजराजाने लगती दंतकथाओमां एक दिगंबर साधु कुलचंद्रने लगता प्रबंधमां कुलचंद्रनी गृहस्थ जीवननी स्पृहा व्यक्त करती प्राकृत भाषामां उक्ति नीचे प्रमाणे छे : (प्रचि.मां अर्ध ऊलयंसूलयं छे, अने माणियाने बदले वाहिया, गलिने बदले कंठि एवां नोंधपात्र पाठांतर छ : तिक्खा तुरिअ न माणिआ, भड-सिरि(१२) खग्ग न भग्ग । एहु जम्मु नग्गहं गयउ, गोरी गलि (?गलइ) न लग्ग ॥ 'न तेजी तोखारनी सवारी माणी, न तो संग्राममां सुभटोनां मस्तक खड्ग वडे भांग्यां : नग्नावस्थामा रही रहीने ज आ जनम एळे गयो -- कोई गोरी पण मारे गळे न वळगी.' (आ दुहामां त-त, भ-भ अने गगनी वयण-सगाई छे ए नोंधपात्र छे.) 'जसमाना वेश'मां सिद्धराज जयसिंहने बारोट कहे छे : तीखा तूरी न पलाणिया, खांडा खडग न लग्गां, तेनो जनमारो एळे गयो, आवी गोरी कंठे न वळगां. मम्मटना 'काव्यप्रकाश'मां (११मी शताब्दी) आपेलुं दीपक अलंकारनुं पहेलुं उदाहरण नीचे प्रमाणे छे : किवणाणं धणं णाआणं फणमणी केसराई सीहाणं । कुलबालिआणं थणआ कुत्तो छिप्पंति अमुआणं ॥ 'कृपणोनुं धन, नागोनो फणामणि, सिंहनी केशवाळी अने कुळवंतीना स्तन - ए जीवतां होय त्यां सुधी क्याथी स्पर्शी शकाय ?' शामळ भट्टनी 'नंदबत्रीशी'मां आनुं ज रूपांतर मळे छे (पद्यक्रमांक २८९): सिंहमूछ, भोरिंगमणि, करपी-धन, सती नार, परहरे प्राण परहथ जशे, पड पासा पोहोबार. 'जसमानो वेश'मां जसमा बारोटने कहे छे : 'केसरी-मूछने भोरंग-मणि, शरणागत ने शूरा, करपी-धन ने सती नार, पर-हाथ पडशे मूआ'. [27] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520504
Book TitleAnusandhan 1995 00 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages96
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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