________________
आर्यखपटाचार्यप्रबंधनी विचारणा ग्रेनोफे करी छे.
१७. Jainism and Prakrit in Ancient and Medieval India : Essay for Prot. Jagdish Chandra Jain. संपादक : एन. एन. भट्टाचार्य. १९९४.
प्राध्यापक जगदीशचंद्र जैनना आ अभिनंदनग्रंथमां प्राकृत अने जैन साहित्य विषयक ४६ संशोधनलेखोनो समावेश थयो छे.
१८. The Absent Traveller : Prakrit Love Poetry from the Gathasaptashati of Satavahana Hala. Selected and Translated by A.R. Mehrotra. 1991
हालनी 'सत्तसई' (के 'गाथासप्तशती')माथी पसंद करेल अनुरागविषयक २०७ गाथाओनो मूळ प्राकृत पाठ साथे अंग्रेजी काव्यानुवाद, मर्था एनसेल्बीना परिचयात्मक अनुवचन अने टिप्पण साथे.
सामयिकोमा प्रकाशित लेख वगेरे. (१) ओस्ट्रियानी विएना युनिवर्सिटीना भारतीय विद्याने लगता संस्थाननी निश्रामां संस्कृत अध्ययनोना आंतरराष्ट्रीय मंडळ द्वारा आयोजित सातमी संस्कृत विश्वपरिषद (ओगस्ट २७ - सप्टेम्बर २, १९९०)मां प्रस्तुत थयेला निबंधोनो जे सार प्रकाशित थयो छे तेमां थोडाक जैन तथा प्राकृत साहित्यने लगता निबंधो पण छे : Riddles in Jaina Literature (जैन साहित्यमा समस्या-प्रहेलिका) (N. Balbir); नयवाद (P. Balserawiz); Morphogical and Syntactic Change in Late Middle Indo-Aryan (अपभ्रंशमां थयेल रूपतत्त्व अने वाक्यतत्त्वने लगतुं परिवर्तन) (V.Bubenik); Dravya, Guna and Paryaya in Jaina Thought (जैन दर्शनमां द्रव्य, गुण, पर्याय)
(२) फ्रांसना संस्कृत अध्ययनोने लगता मंडळ तरफथी प्रकाशित संशोधन सामयिक Bulletin d"Etudes Indiennesना नवमा ग्रंथमा (१९९१) 'विविधतीर्थकल्प' गत जैन आचार्योनां चरित्रो विशे Christine Chojnackiनो लेख (फ्रेन्च भाषामां), Stanley Inslerनो लेख Prakrit Studies-1 (अंग्रेजीमा), Thomas Oberliesनो प्राकृत यणवट्टने लगतो लेख (जर्मनमा), प्रकाशित थयेल छे. ए अंकमां प्रकाशित पुस्तकावलोकनोमां (१) L.S. Schwarzschildना भारतीय - आर्यने लगता १९५३थी १९७९मा प्रकाशित संशोधनलेखोना संग्रह(१९९१)कोलेत कय्यानु, (२) ह. भायाणीना Studies in Desya Prakrit (१९८८)नुं नलिनी बलबीरनु, (३) सातमी संस्कृत विश्वपरिषद मां प्रस्तुत मध्यम भारतीय-आर्य अने जैन अध्ययनोने लगता निबंधोना कोलेत कैय्यासंपादित संग्रह (१९९०)
[50]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org