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________________ कर्या छे. ८. Avasyaka Studies. Introduction Generale et Traductions. Nalini Balbir. १९९३. १८९७मां Ernst Leumann द्वारा Avasyaka Erzahlungen प्रकाशित थयुं. तेमां प्रथम वार 'आवश्यक सूत्र', नियुक्ति, चूर्णि, वृत्ति वगेरेमांथी केटलीक कथाओ जू करवामां आवी हती. नलिनी बलबीरे ए कथाओनो रोमनलिपिमां पाठ, फ्रेन्च अनुवाद, पाठांतरी, सविस्तर टिप्पणो, ए कथाना जैन परंपरामां मळतां उत्तरकालीन रूपांतरो, वगेरेने लगती नोंधो, तिलकाचार्यनी लघृवृत्तिमांथी उपर्युक्त कथाओनो पाठ, सविस्तर भूमिका (मोटा कदनां बसो उपरांत पृष्ठ ) अने अंग्रेजीमा संक्षिप ग्रंथसार आप्यां छे. बलबीरे १९८४मां आवश्यक साहित्यनुं ऊंडुं अध्ययन तेमना हजी पुस्तकरूपे अप्रकाशित डी. लिट. उपाधि माटेना शोधप्रबंधां रजू कर्तुं छे (Etudes d'exegese Jaina Les Avasyaka). उपरांत जैन प्राकृत साहित्यने लगता विविध शोधनिबंध प्रकाशित कर्या छे. ९. Avasyaka Studien : Glossar ausgewahlter Worter. E. Leumanns Die Avasyaka Erzahlungen, Thomas Oberlies. १९९३. लोय्माने तेमना उपर्युक्त पुस्तकमा आपेल पसंद करेल शब्दोना कोशनुं, ते ते शब्द विषयक मळता अद्यावधि विवरण, अने जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजीमां शब्दार्थ साथै संपादन. " १०. धर्मरत्नकरण्डक : वर्धमानसूरिकृत. संपादकः मुनिचंद्रविजयगणि. १९९४. जैन धर्म अने आचारने लगता अनेक विषयोनुं २० अधिकारोमां विविध दृष्टांतकथाओ साथै निरूपण करता, ई.स. १११६मां रचायेला वर्धमानसूरिना संस्कृत ग्रंथनुं कर्तानी वृत्ति सहित छ हस्तप्रतोने आधारे संपादन. ११. धर्मबिन्दुप्रकरण : हरिभद्रसूरिकृत, मुनिचंद्रसूरिकृत वृत्ति सहित. संपादकः मुनि जंबूविजयजी. १९९४. हरिभद्रसूरिना एक महत्त्वना प्रकरणग्रंथनुं अने तेना परनी वृत्तिनुं छ हस्तप्रतोने आधारे पाठसंपादन, गुजराती अने संस्कृतमां सविस्तर प्रस्तावना अने अनेक संस्कृतप्राकृत ग्रंथोमाथी घणा अंशोनां मूळ के समान संदर्भोनो निर्देश. १२. रिट्ठणेमिचरिय (हरिवंसपुराण): स्वयंभूदेवकृत. भाग १ : जायव-कंड, भाग २ ( १ ) : कुरु-कंड. संपादक : रामसिंह तोमर. १९९३. नवमी शताब्दीना उत्तरार्धमा थयेला अपभ्रंश महाकवि स्वयंभूदेवना अरिष्टनेमिचरितने लगता ११२ संधि (१८००० ग्रंथाग्र) नुं प्रमाण धरावता महाकाव्यना पहेला बे कांड (कुल ३२ संधि)नो मूळ पाठ. Jain Education International [48] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520503
Book TitleAnusandhan 1994 00 SrNo 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1994
Total Pages54
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
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