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(२)
उपरोक्त हस्तप्रतमां आर्य समुद्राचार्यनी एक गाथा छे. ए गाथा पण अंजनशलाकाविधि अंगेज छे, अने ते प्राकृतभाषामा छे :
"आर्यसमुद्राचार्योऽप्याह
सदसेण धवलवत्थेण वेढियं वासधूवपुप्फेहिं ।
अभिमंतियं तिवारा, सूरिणा सूरिमंतेण ||"
आ. श्रीपादलिप्तसूरि (सत्तासमय : संभवतः विक्रमनो प्रथम शतक) ए रचेल प्रतिष्ठाकल्प “निर्वाणकलिका” (प्र.इ. १९२६)मां आ गाथा आ रीते उध्धृत थयेली जोवा मळे छे : " तथा चागमः
सदसनवधवलवत्थेण, छाइउं वास - पुप्फ - धूपेणं । अहिवासिज्ज तिन्नि वाराओ, सूरिणो सूरिमंतेण || "
आ पाठनी तुलनामां हस्तप्रतिमांथी मळतो- उपरवाळो पाठ वधु शुद्ध छे, ते तो स्पष्ट छे. परंतु पादलिप्ताचार्ये पण जो आ गाथाने आगमगत गाथा तरीके वर्णवी होय तो तेमनी समक्ष समुद्राचार्ये रचेली कोइ आगम-कृति हशे अने तेमां प्रतिष्ठाविधिनुं पण निरूपण हो, तेवी अटकल, हस्तप्रतिना उल्लेखना संदर्भमां, करी शकाय. 'नंदीसूत्र' ना आरंभे वर्णवाली पट्टावलीमां आर्यसमुद्राचार्यनुं वर्णन आ रीते मळे छे :
"तिसमुद्दखायकित्तिं दीवसमुद्देसु गहियपेयालं ।
वंदे असमुदं अक्खुभियसमुद्दगंभीरं ||" ('नंदिसुत्त' ६ गा. २७) संभवतः आ. अने उपरोक्त (आगमिक) पद्यवाळा समुद्राचार्य एक ज होय तो ते बनवाजोग छे. समुद्राचार्यनी एक पण कृति आजे आपणी पासे छे नहि, ते स्थितिमां आ गाथानुं मूल्य घणुं बधुं छे.
२. स्थूर विशे
सिद्धहेम- अष्टमाध्यायगत १- २५५मां “ स्थूले लो रः " सूत्रमां स्थूलतादर्शक 'स्थूल' अने 'स्थूर' एम बे शब्दो जोवा मळे छे. प्राकृतमां 'थूल,' 'थुल्ल' अने 'थोर' जेवा शब्दो पा. स.म.मां नोंधाया छे. ते ज रीते 'स्थूल' अने 'स्थूर' एवा शब्दो संस्कृत कोशोमां पण नोंधाया छे. जो के “शब्द रत्नमहोदधि'' मां 'स्थूर' शब्द 'बळद, सांढ, मनुष्य' अर्थवाचक होवानुं जोवा मळे छे.
परन्तु 'स्थूल' अर्थवाला 'स्थूर' शब्दनो साहित्यिक वपराश लगभग नहिवत् छे, अने प्रायः अत्यार सुधी प्रगट थएला साहित्य-ग्रंथोमां तेनो प्रयोग जोवा मळतो जणायो नथी. पण, जैन ग्रन्थोमां एकथी वधु वार 'स्थूर'नो प्रयोग थतो जोवा मळे छे, ते दर्शाववानो आ नोंधनो आशय छे. एवां स्थानो आ प्रमाणे छे :
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