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________________ सुभद्रा हू या तिन्नि उपवास, गुणि नवकार ह लकळ सहस्स सासणे दे व ति आई य जक्ख, अंबिकदे वी हु इय पर तक्ख. २२. दूक्खहं रयणिं छइ अधराति, सासणदिवि अनु सुभद्रावाति, चउविह धम्मह हउं सक्खाई, महसइ चिंत म करिजहु काई २३. सासणदेवि भणिउ सत तोलि, चंपा ढाकिस चारिउ पउलि, नरह नरिंद नाही पाडि, मइ दीन्ही को सकइ उघाडि. २४. सासणदे वि ति चडिय विमाणि, जाइ देवि आपणइ सुठाणि, स भद भणइं दीठ जंजालो, एक वार जइ उतरइ आलो. २५. प्रह विहसी जउ हवउ रोलो, नयरि तणिय न उघडहि पउले, ते नवि प्राणिहि पाछी सरहिं, आरडु भरेडु गाविउ करवि. २६. सासणदेवि ति कहिउ विचारी, सूतु कंताविज कोइ कुमारी, कूवह जल चालणि काढिजे, तिन्नि पऊलि जाइवि छांटिजे. गयउ वहावउ वे गिहि रायवाला रो विहिं चंपा माहिं, पउलि न उघडहि हुयउ विहाणु, जे वेगि तोलिवि जोयउ पाणु. २८. तक्खणि नरवइ चडिउ तु खारे, महंता गुपतिय वात विचारे, धूप कडछू पले करि धरि उंहू, देवति दाणव पाछा करहू. २९. हो वे दियते वेदि ते डाव हू, नयरी माहइ होमू करावउ, जव तिल धीपइ सरिस होम, जाव न लग्गहिं गयणिहिं धूम. ३०. ते खणि महंतउ लागउ भणउ, नाही पाडु को होमहं तणउं, बुध्धि अने री कीजइ काए, पडहु दीयावहु नगरह माहे. [८९] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520502
Book TitleAnusandhan 1993 00 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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