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________________ रानि हि जाइवि क वसग देइ, मासह पाखह सो पारे इ. x x x x x x x x x x x x x x x x x वाउ वाइ तह कोरणु धणउ, मुणिवर अंगहि पडियइ तिणउ, सोनवि हत्थिहिं दे ठउ करए, खरउ ‘दुहेल उ आंखित हझूरए. १३. पूरिय अवधि चलिउ तहि ठाए, कवणह नयरिय विहरण जाए, अवरि न गइयउ चंपा पइठउ, अंखहि झरं ती सुभदा दीठउ. सुभद्रा मणइ माह चिंतिं ती, आविउ मुणिवरु तह विहरं ती, वडिय भगति कीयउ विहरणउ, सुभदा अंखहि झडपिउ तिणउं' सासू हू ती जीमत बै ठी, त्रिणं उ लिपंति स भद्रा दीठी, विकलपु वसि यउ मन्नह मांहिं, वहुडी रहिसिमपीहरि जाहि सुभद्रा ए भणई संभलि माए, नीकर वयणु कि सहणउ जाए. कवणि काजि तम्हि कीन्हउ रोसो, अम्हह काई चढावि दोसो वं दइ देव गुणइ नवकारा, नीर गलं ती त्रन्नि वे वारा, महसइ महसइ कहइ न आए, पाच्छिय लोवण देहरि जाए. १८. अम्हि दीठउ तुम्हारउ चरिउ, धमियउ सोनउ फूकह हरिउ, तउ महसइ निंदइ अप्पाण, ता किवे पहेविदि ऊगेइ भाण. १९. सुभद्रा भणइं जइ वरतइ धंमु, पाणिउ अन्नु अनेरइ जम्मु . स भद्रा भणइं न पीहरि जाउं, महरि चडाविउ एवड़ नाउ. २०. सासू ससरासु न मिले हो, भणइ महासइ मई सु कहे हो, खूणो भी तरि छइ लंघती, सासू नणदउला लजंती. २१. [८०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520502
Book TitleAnusandhan 1993 00 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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