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________________ हवे दसमी शताब्दीमां रचायेली धनंजयना दशरूपक उपरनी धनिकनी अवलोक टीकानी एक हस्तप्रतमा चोथा प्रकाशनी ६६मी कारिका उपरनो जे पाठ मळे छे तेमा प्रवासविप्रयोगमा प्रवासचर्चान नीचे एक उदाहरण मळे छे. (ए ज पद्य ई.स. १२५८ मां रचायेल जल्हणकृत 'सूक्तिमुक्तावलि मां पण मळे छ) : नीरागा शशलांछने मुखमपि स्वे नेक्षते दर्पणे त्रस्ता कोकिलकूजितादपि गिरं नोन्मुद्रयत्यात्मनः । चित्रं दुःसह-दुःख-दायिनि कृत-द्वेषाऽपि पुष्पायुधे मुग्धा सा सुभग ! त्वयि प्रतिकलं प्रेमाणमापुष्यति ।। स्पष्टपणे आ बे अपभ्रंश अने संस्कृत पद्योमान कोई एक बीजानो चोख्खो अनुवाद ज छे. कयु पूर्ववर्ती अने कयु पश्चाद्वर्ती एनो निर्णय दुष्कर छे. आनुषंगिक नोंध : उपर छंदोनुशासन मां आपेलां जे द्विभंगीप्रकारोनां उदाहरणोनो निर्देश कर्यो छे तेना प्रा. वेलणकरना संपादनमां आपेला पाठमां केटलाक सधारा करवा इष्ट छे. ते नीचे प्रमाणे छ : १. त्रीजा प्रकारनं उदाहरण : पहेली पंक्तिमा किनरि विक्खरहि ने बदले कि न रि विक्खिरहि (पाठांतर) जोईए. २. चोथा प्रकारनं उदाहरण : उपर सूचव्यं छे तेम बीजी पंक्तिमा कलयंठि-गिर (कविदर्पण नो पाठ) अने मन्निवि (पाठांतर) जोईए, अने अर्थने अनुसरीने कुसुमसर जोईए. ३. पांचमं उदाहरण : पहेली, त्रीजी अने पांचमी पंक्तिने आरंभे जइ अ के जइ छे त्यां जइअ (= यदा) जोईए. आने एक पाठांतरनं पण समर्थन छे. टीकाकारे पण संपादकनी जेम यदि अर्थ कर्यो छे ते वरावर नथी. सिद्धहेम८-४-३६५ नीचे यदाना अर्थमां प्राकृतमा जाहे, जाला, जइआनो प्रयोग थतो होवार्नु नोंध्यु छे. बीजी पंक्तिमा कुसुमदलम्मि पाठ करता दलग्गि पाठ वधु सारो छे. पांचमी पंक्तिमां वयणगुंफने बदले उकार जाळवतो वयणगुंफ पाठ वध सारो रे.. ४. छठं उदाहरण : करिहि ने बदले करहि, इच्छि मन्छ इ पणयमुहं ने बदले इच्छि म इच्छि पणयउ-सुहु (कविदर्पण नो पाठ), अने अंतिम क्ति माणिक्किमणंसिणि करिव वलु, हेल्लि खेल्लि ता जूउ तुहं ने बदले माणिक्कि मणंसिणि करि ठवलु, हेल्लि खेल्लि ता जूउ तुहं जोईए. आ छेल्ली पंक्तिनो अर्थ टीकाकार पण खोटा पाठने कारणे समज्यो नथी. तेणे तदा हे हस्तिगमने प्रणतमुखं भर्तृमुखं इच्छि दृट्वा हे मानक-मनस्विनी हे सखि बलं अपि कृत्वा क्रीडितुं युक्तं तव । एवो अर्थ को छे, जे तद्दन प्रान्त छे. मानम् एकं (श्लेषथी माणिक्यम्) हे मनस्विनि कृत्वा दायम्, हे सखि रमस्व तावत् द्यूतं त्वम् । अहीं ठवलु एटले 'जुगारनी बाजीमा जे होडमा मुकाय ते, दाव. ए अर्थमा ठउलु [२२] --Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520502
Book TitleAnusandhan 1993 00 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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