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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ-વિશેષાંક
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अवंती नरेश चंडप्रद्योतन इसके रूपमें मोहित होकर दासी और प्रभुप्रतिमा-इन दोनों को लेकर रातोरात वापस चला गया।
पाठक इतना ध्यान रखें कि चंडप्रद्योतन प्रभुप्रतिमा के सदृश ही नवीन प्रतिमा बनवाकर साथ ले आया था, उस प्रतिमा के स्थान में नवीन प्रतिमा को स्थापन करके ले गया था ।
प्रातःकाल महाराजा उदयन यह वृत्तांत जानकर चिंतातुर हुए । १० मुकुटबद्ध महाराजाओं के साथ अवंती पर धावा कीया । अवंतीपति चंडप्रद्योतन को हराकर बंधवाकर जेलखाने में डलवा दीया और उसके ललाट पर 'ममदासीपति' यह अक्षरावली खुदवा दी । बादमें चैत्यालय में (जहां वो प्रभुप्रतिमा थी वहां) जाकर दर्शन करके प्रभुस्तुति की एवं प्रभुप्रतिमा को उठाने का प्रयत्न किया तो अधिष्ठायक देवने रोका और कहा कि 'हे नृप ! तव पत्तनं पांशुवृष्टया स्थलं भावि' हे राजन् ! आपका नगर धूलकी वर्षासे दब जायगा, अतः प्रभु वहां न पधारेंगें। इस बातसे महाराजा उदयन उदास होकर वापस लौटे । वापस लौटते हुए वर्षाऋतु रास्ता में आजानेसे छावणी डाल कर वहां ही रह गये । पर्वाधिराज श्रीपर्युषणापर्व आने पर महाराजा उदयनने पौषह लिया तब सूद (रसोई करनेवालेने )ने जाकर चंडप्रद्योतनसे प्रश्न किया की आज आपके लिए क्या रसोइ बनाउं? चंडप्रद्योतनने कुछ सोच कर पुछा 'क्यों भाई आज क्या बात है?' 'आज पर्वाधिराज श्रीपर्युषणापर्व है। महाराजाने पौषधलिया है, आपके लिए रसोई बनानी है' सूदने कहा । 'अहो, मुझे तो पता न था, अच्छा हुआ पता लग गया, आज मेरे भी उपवास है' चंडप्रद्योतनने खुलासा किया । सूदने ज्योंका त्यों वृत्तांत महाराजा को सुना दिया। इससे महाराजा बडे प्रसन्न हुए, और विचारने लगे कि यह मेरा साधार्मिक बंधु है, इसके साथ खमतखामणा किये बिना मेरे श्रीपर्युषणापर्व पूरी तौर से आराधित कैसे हो सक्ते हैं ? जाऊ इसके साथ खमतखामणा करलू । यह निश्चय करके स्वयं महाराजाने जाकर चंडप्रद्योतन से खमतखामणा कीये, और ममदासीपति इन अक्षरों की छिपाने के लिए सुवर्णका एक पट्ट बनवा कर ललाट पर बांध दिया व उसका सारा ही राज्य उसको वापस दे दिया, विशेष में देवकृत उस प्रभुप्रतिमा की भक्ती के निमित्त १२००० हजार गांव दिये । वर्षाऋतु बीतने पर महाराजा उदायन वापस अपने वीतभयपत्तन में पधारे । जिसं स्थान में छावणी डाली थी उस स्थान में १० राजे साथ में होनेसे वहां दशपुर नामा नगर वसा जिसको अभि मंदसौर कहते हैं। चंडप्रद्योतन स्थापन की हुई नवीन प्रभुप्रतिमा की उसी तरह से भावभक्ति करने लगे।
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