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________________ [४०] શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ-વિશેષાંક [१५४ उसकी चर्चा इतिहासज्ञों में प्रारम्भ कर दी, एक निश्चित समय पर सेंकडों पुरातत्त्व वेत्ता युरोपियन एकत्रित हुए परंतु वे भी उसका रहस्य जानने में असफल हुए। उससे बाद यह कार्य भारत सरकार ने अपने हाथ लिया और उसी समय से भारतवर्षीय पुरातत्वज्ञ विद्वान भी इसके संबंध निरन्तर खोज करते रहे। ई. सन् १८६६ में भगवानलाल इंद्रजीने सर्व प्रथम इसका लेख प्रकाशित किया, जिससे उसका कुछ महत्व प्रतीत हुआ, परंतु बहुतमी बातें विवादास्पद थीं। उक्त विद्वानों के अतिरिक्त केशवलाल हर्षदराय ध्रुव, राखालदास बेनर्जी, और श्रीकाशीप्रसादजी जायसवाल के प्रयत्न से उसकी कठिनाइयां सुलझती गई । सन् १८१७ में यह निश्चय हुआ कि यह लेख महाराजा खारवेल का है, परंतु फिर भी इससे सम्बंधित अन्य बातों में इतिहासज्ञों में मतभेद रहा । उन सब समस्याओं के समाधान के अनंतर ई. सन् १८२७ में सब विद्वान एक मत हो गये और श्री काशीप्रसादजी जायसवाल महोदयने वह लेख दिसम्बर १८२७ की बिहार पत्रिका में प्रकाशित कराया ।। श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल अपने लेख में लिखते हैं कि "हाथी गुफावाला महामेघवाहन राजा खारवेल का लेख जैनधर्म की पुरातन जाहोजलाली पर अपूर्व एवं अद्वितीय प्रकाश डालता है। श्रमणभगवान महावीर देव प्रतिबोधित पंथ के अनुयायियों में किसी भी प्राचीन से प्राचीन नृपति का नाम यदि शिलालेख पर मिलता है तो केवल इस अकेले प्रतापी नृपति खारवेल का ही है।+ क्यों कि यह लेख दो हजार वर्ष से अधिक प्राचीन है इस लिये सर्दी गर्मी और वर्षा के थपेड़ों से उसके बीचबीच में कई अक्षर अस्पष्ट हैं कुछ बिगड़ चुके हैं, परंतु फिर भी सौभाग्य से सब इतिहास स्पष्ट प्रतीत हो जाता है। शिलालेख के आधार से यह कहा जाता है कि महाराजा खारवेल का जन्म ई. सन् १९७ पूर्व चत्रवंशी तृतीय राजवंश में हुआ था। इनके पिता का नाम बुद्धराज और पितामह का नाम खेमराज था । महामेघवाहन परम्परागत उपाधि थी । महाराजा खारवेल के १५ वर्ष तो बालवय में व्यतीत हुए और ९ वर्ष युवराज अवस्था में । इस प्रकार २४ वष की आयु में महाराजा खारवेलने राज्यशासन चलाना प्रारम्भ किया। उनकी दो स्त्रियां थी १-वजिर घरवाली, २-सिंहप्रस्थ की सिंधुड़ा (धूसी)। शिलालेख में जो संवत् दिया है, वह महावीर संवत् ही है, इससे + जैन साहित्य संशोधक में दिये गये लेख से । * देखो प्राचीन भारतवर्ष (गुज), ले. डा. विभुषमदास ल. शाह. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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