SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ट भारत और जैनधर्मके चमकते सितारे [सम्राट् चन्द्रगुप्त, बिंदुसार, सम्पति तथा खारवेलका परिचय ] लेखक न्यायतीर्थ, विद्याभूषण पं० ईश्वरलालजी जैन, विशारद हिन्दी रत्न. १ चन्द्रगुप्त भगवान महावीर से पूर्व, भारत की धार्मिक और राजनैतिक दशा अत्यन्त शोचनीय थी, चारों ओर अन्याय और अत्याचार के कारण त्राहि त्राहि मची हुई थी । ब्राह्मणों द्वारा उत्पन्न किये गये ऊंच नीच के भाव प्रबल हो उठे थे, धर्मके नाम पर निरपराध प्राणियोंकी हत्या, स्त्री और शूद्रों का अपमान तो साधारण बात थी । परन्तु भगवान महावीर के शान्तिदायक उपदेश के कारण अन्याय और अत्याचारकी ज्वालाय शान्त होने लगीं, उदार विचारोंका स्रोत बहने लगा, अहिंसा के संदेशसे प्राणियों के हृदय शान्त हुए। परन्तु भगवान महावीर के पश्चात् भारतको अपनी उन्नत अवस्था से पतित करनेवाला एक क्षय रोग अपना विस्तार करने लगा, भारतदेश छोटे बड़े अनेक राज्यों में विभक्त होगया । छोटे से छोटा राज्य भी अपनेको सर्वोच्च समझकर अभिमान में लिप्त एवं सन्तुष्ट था । वे छोटे बड़े राज्य एक दूसरे को हड़पजाने की इच्छा से परस्पर ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि जलाते, फूट के बीज बोते, लड़ते झगड़ते और रह जाते । सैन्यबल और शक्ति तो परिमित थी, परन्तु उन्हें संगठित होने की आवश्यकता प्रतीत न हुई, यदि एक भी शक्तिशाली राष्ट्र उस समय उन पर आक्रमण करता तो सब को ही आसानीसे हड़प कर सकता था। यद्यपि कोशल आदि राज्योंने अपनी कुछ उन्नति की, परन्तु वे भी विशाल राष्ट्र न बना सके। www.jainelibrary.or For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy