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________________ [ २३८ ] શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ [१५ (२) दुसरे नम्बर की गुफा जो पाँच पाण्डव की गुफा कहलाती है वह प्रवेशद्वार से पीछे की दीवार तक १५० फीट लम्बी है। इसके अन्दर के दालान में चार कतारों में २० स्तम्भों का निर्माण किया हुआ है, जो कि प्रत्येक १२ फीट ऊँचा और ४ फीट मोटा है । इसमें पूर्व से पश्चिम की ओर छोटे छोटे बीस और दक्षिण की तरफ ५ कमरे बने हुए हैं जो सम्भवतः बौद्ध विद्यार्थियों अथवा भिक्षुओं के रहने और उनका सर सामान रखने के लिये थे । दक्षिणी मध्य कमरे में विशाल बौद्धस्तूप है जिसको यहाँ के निवासी “मही का मटका" कहते हैं । बुद्ध के निर्वाण स्थान या उसकी स्थापना के स्थान पर ऐसे स्तूप बनाने की प्रथा बौद्धधर्म में अब भी प्रचलित है । स्तूपवाले कमरे में द्वार की उपरी दीवार पर रंगीन चित्रकारो का काम बहुत हो बढ़िया है। इसी के पूर्वपश्चिम तरफवाली दीवार में खड़े आकार की स्त्री पुरुषों को आठ मूर्तियां खुदी हुई है, जिनको लोग पाँच पाण्डव तथा कुन्ती माता की मूर्तियां कहते हैं, किन्तु वास्तव में इनके मध्य की मूर्ति जो झोली लिये हुए है वह गणधर (बुद्ध आर्हत्) की और शेष उनके अनुचर भिक्षु-भिक्षुणियों की है । इसका बाहिरी भाग जो छ स्तम्भों पर बना हुआ था, नष्ट हो गया है और उसके भग्नावशेष भी इतस्ततः बिखरे पड़े हैं। (३) तीसरी गुफा हाथीखाने के गाम से प्रसिद्ध है। इसकी दीवारों एवं छतों पर हाथी, शेर और बौद्ध भक्तों की वन्दन करती हुई मूर्तियों रंगोम चित्रों में बनी हुई हैं। जिनमें हाथी के चित्र अधिक होने के कारण ही लोग इसको हाथीखाना कहते हैं, किन्तु वास्तव में यह हाथीखाना नहीं है बौद्ध भिक्षुओं की अभ्यासशाला है। इसमें भी दक्षिण पश्चिम और पूर्व में २४ कमरे हैं-जिनमें कोई कमरा अष्ट कोण का भी है जो शान्ति पूर्वक एक ओर बैठ कर अभ्यास, समाधि अथवा ध्यान करने के योग्य है। इसके बाहर का बहुतसा भाग प्रायः नष्ट हो गया है। जो कुछ भी अवशिष्ट है उसको भी मरम्मत (रिपेयरिंग) की आवश्यकता है। (४) चौथी गुफा रंगमहल के नाम से प्रसिद्ध है। यह रंगीन चित्रकारी में बहुत ही बढ़ी चढ़ी है। तीसरी और इसके दरम्यान की छत एक सिरे से दूसरे सिरे तक २५० फीट लम्बी और बिल्कुल प्राचीन अवस्था म है। इसका बाह्य भाग २२० फीट लम्बा, २२ स्तम्मों पर आश्रित है जो पीछे से बना मालूम होता है, जिसका कुछ भाग गिर चुका है और अवशेष भाग भी गिरने जैसा ही है। इसके बीच का कमरा ९४ फीट लम्बा और उसमें २४ स्तभ्मों के बजाये ४४ स्तभ्म लगे हैं। जिसमें दो कमरे हैं। लेकिन दूसरे नम्बर का कमरा जमीन में फंस गया है। इसके तीन प्रवेशद्वार और दो खिडकियां हैं। बीच में हॉल है जो www.jainelibrarya For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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