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________________ २४ १-२ ] જૈન આગમ સાહિત્ય [१९७१] १७ आसीविस भावणा । १८ दिट्ठीविसभावणा । १९ दिट्टिवायनामंग । २० सर्वश्रुत | प्रश्नव्याकरणका अन्वेषण - अंग ग्रंथों में प्राचीन प्रश्नव्याकरण अप्रकाशित है और वर्तमानसे भिन्न होना चाहिये । पाटणके भंडारोंमें इससे भिन्न असली प्रश्नव्याकरण उपलब्ध होनेका सुना गया है । यदि हो तो सर्व प्रथम उसे प्रकाशित करके अंगभूत मानना चाहिये। कई ग्रंथ असली नहीं मिलते तब नकली बनाकर कई लोग उसे असली प्रमाणित करनेका प्रयत्न करते हैं, जैसे विवाहचूलिकाके स्थान पर स्थानकवासी समाजकी ओरसे विवाहचूलिका नामक नवीन ग्रंथ छपा है । नंदी और आगमसंख्या - नंदीरचना के समय आगमसाहित्य बडा अस्तव्यस्त हो गया था, फिरभी उसमें निम्न रूपसे आगमोंके नाम पाये जाते है : अंगप्रविष्ट श्रुत आवश्यक ( छे भेद ) अंगबाह्य आवश्यकातिरिक्त कालिक ( ३१ भेद ) उत्कालिक ( २९ भेद ) अंगप्रविष्ट - - १ आयारो, २ सुयगडो, ३ ठाणं, ४ समवाओ, ५ विवाहपन्नत्ति, ६ नायाधम्मकहाओ, ७ उवासगदसाओ, ८ अंतगडदसाओ, ९ अणुत्तरोववाइ अदसाओ, १० पण्हावागरण, ११ विवागसु १२ दिट्टिवा । आवश्यक - १ सामाइयं, २ चउवीसत्थवो, ३ बंदणगं, ४ पडिक्कमण, ५ काउस्सग्गो, ६ पञ्चक्खाणं । कालिक - १ उत्तरज्झयणाई, २ दसाओ, ३ कप्पो, ४ ववहारो, ५ निसीह, ६ महानिसीहं, ७ इसिमासिआई, ८ जंबूदीवपन्नत्ती, ९ दीवसागर पन्नत्ती, १० चंदपन्नत्ती, ११ खुड्डि आविमाणपविभत्ती, १२ महल्लि आविमाणपविभत्ती, १३ अंगचूलिआ, १४ वग्गचूलिआ, १५ विवाहचूलिआ, १६ अरुणोववार, १७ वरुणोववार, १८ गरुलोववाए, १९ धरणोववार, २० वेसमणोववाप २१ वेलंधरोववाए, २२ देविंदोववाए, २३ उट्ठाणसुए, २४ समुट्ठाणसुप, २५ वागपरिआवणिआओ. २६ निरयावलिआओ, २७ कप्पिआओ, २८ कप - वर्डिसिआओ, २९ पुष्फिआओ, ३० पुप्फचूलिआओ, ३१ वण्हीदसाओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520001
Book TitleJain Journal 1938 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Bhawan Publication
PublisherJain Bhawan Publication
Publication Year1938
Total Pages646
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, India_Jain Journal, & India
File Size32 MB
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