SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सत्र भागः तो मैं इसकी समझ तुम्हारे भीतर एक दीये को जन्म दे देगी। एक तरफ | मांगते हैं। तुम चाहते हो, दूसरे लोग मुझे सम्मान दें और दूसरी तरफ तुम मैंने सुना है, शेख फरीद से एक धनपति ने कहा, यह बड़ी चाहते हो, कोई अपमान न करे। साधारणतः दिखाई पड़ता है इन अजीब बात है। मैं तुम्हारे पास आता हूं तो सदा ज्ञान की, आत्मा दोनों में विरोध कहां? की, परमात्मा की बात करता हूं। तुम जब कभी आते हो तो तुम इन दोनों में विरोध है। यह तुम दो नौकाओं पर सवार हो गए। सदा धन मांगते आते हो। तो सांसारिक कौन है? इसका विश्लेषण करोः तुम चाहते हो, दूसरे मुझे सम्मान दें। शेख फरीद ने कहा, मैं गरीब हूं इसलिए धन मांगता हूं। तुम ऐसा चाहकर तुमने दूसरों को अपने ऊपर बल दे दिया। दूसरे अज्ञानी हो इसलिए ज्ञान मांगते हो। जो जिसके पास नहीं है वही शक्तिशाली हो गए, तुम कमजोर हो गए। अपमान तो शुरू हो मांगता है। मैं तो तुम्हारी याद ही तब करता हूं जब गांव में कोई गया। अपमान तो तमने अपना कर ही लिया। दूसरे जब करेंगे। तकलीफ होती है, मदरसा खोलना होता है, अकाल पड़ जाता है, तब करेंगे। तुम अपमानित तो होना शुरू ही हो गए। यह कोई कोई बीमार मर रहा होता उसको दवा की ज सम्मान का ढंग हुआ? जहां दूसरे हमसे बलशाली हो गए। आता हूं। मैं दीन हूं, दरिद्र हूं। यह मेरा गांव गरीब और दरिद्र दूसरों से सम्मान चाहा इसका अर्थ है कि दूसरों के हाथ में है। स्वभावतः मैं कोई ब्रह्म और परमात्मा की बात करने तुम्हारे तुमने शक्ति दे दी कि वे अपमान भी कर सकते हैं। और निश्चित पास नहीं आता। वह तो हमारे पास है। ही अपमान करने में उन्हें ज्यादा रस आएगा। क्योंकि तुम्हारे तुम जब मेरे पास आते हो तो तुम धन की बात नहीं करते अपमान के द्वारा ही वे सम्मानित हो सकते हैं। वे भी तो सम्मान क्योंकि धन तुम्हारे पास है। तुम ब्रह्म की बात करते आते हो, जो चाहते हैं, जैसा तुम चाहते हो। तुम किसका सम्मान करते हो ? | तुम्हारे पास नहीं है। तुम सम्मान मांगते हो। वे भी सम्मान मांग रहे हैं। वे तुम्हारा इसे थोड़ा सोचना। जिससे तुमने धन मांगा, तुमने घोषणा कर सम्मान करें तो उन्हें कौन सम्मान देगा? | दी कि तुम निर्धन हो। धन मांगनेवाला निर्धन है। पद मांगा, प्रतिस्पर्धा है। एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हो तुम। तुम जब दूसरे घोषणा कर दी कि तुम हीन हो। मनोवैज्ञानिक कहते हैं पद के से सम्मान मांगते हो तब तुमने उसे क्षमता दे दी, हाथ में कुंजी दे आकांक्षी हीनग्रंथि से पीड़ित होते हैं—इनफीरियारिटी दी कि वह तुम्हारा अपमान कर सकता है। अब सौ में निन्यानबे काम्पलेक्स। सभी राजनीतिज्ञ हीनग्रंथि से पीड़ित होते हैं। होंगे मौके तो वह ऐसे खोजेगा कि तुम्हारा अपमान कर दे। कभी ही; कोई दूसरा और उपाय नहीं है। जब तुम सिद्ध करना चाहते मजबूरी में न कर पाएगा तो सम्मान करेगा। सम्मान तो लोग हो कि मैं शक्तिशाली हूं तो तुमने अपने भीतर मान रखा है कि मजबूरी में करते हैं। अपमान नैसर्गिक मालूम पड़ता है। सम्मान तुम शक्तिहीन हो। अब किसी तरह सिद्ध करके दिखा देना है बड़ी मजबूरी मालूम पड़ती है। झुकता तो आदमी मजबूरी में है। कि नहीं, यह बात गलत है। अकड़ना स्वाभाविक मालूम पड़ता है। कमजोर बहादुरी सिद्ध करना चाहता है। कायर अपने को वीर तो जैसे ही तुमने सम्मान मांगा, अपमान की क्षमता दे दी। सिद्ध करना चाहता है। अज्ञानी अपने को ज्ञानी सिद्ध करना और दूसरा भी सम्मान की चेष्टा में संलग्न है। वह भी चाहता है, चाहता है। हम जो नहीं हैं उसकी ही चेष्टा में संलग्न होते हैं। अपनी लकीर तुमसे बड़ी खींच दे। जैसा तुम चाहते हो वैसा वह और जो हम नहीं हैं, हमारी चेष्टा से प्रगट होकर दिखाई पड़ने चाहता है। लगता है। पीड़ा और बढ़ती चली जाती है। अब अड़चन शुरू हुई। सम्मान देगा तो भी तुम सम्मानित न जन्म तो हम मांगते हैं, जीवन तो हम मांगते हैं, मौत से हम हो पाओगे क्योंकि सम्मान देनेवाला तुमसे बलशाली है और डरते हैं। हम चिल्लाते हैं, मौत नहीं। और सब हो, मृत्यु नहीं। अपमान करेगा तो तुम पीड़ित जरूर हो जाओगे। मृत्यु की हम बात भी नहीं करना चाहते। लेकिन जन्म के साथ तुमने धन मांगा, तुमने अपनी निर्धनता की घोषणा कर दी। हमने मृत्यु मांग ली। क्योंकि जो शुरू होगा वह अंत होगा। क्योंकि निर्धन ही धन मांगता है। जो हमारे पास नहीं है वही हम | मृत्यु जन्म के विपरीत नहीं है, जन्म की नैसर्गिक परिणति है। 636 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340162
Book TitleJinsutra Lecture 62 Yad Ghar Bulane Lagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy