________________ याद घर बुलाने लगी ण वि मरणं ण वि जणणं, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।। उसी-उसी वृक्ष के नीचे आकर बैठोगे। फिर अगर कोई 'जहां न दुख है न सुख, न पीड़ा है न बाधा, न मरण है न लकड़हारा किसी दिन उस वृक्ष को काटने आ गया तो तुम लड़ने जन्म, वहीं निर्वाण है।' को तैयार हो जाओगे कि मत काटो। यह मेरा वृक्ष है। अब यह भी कछ कहना हआ? यह तो 'नहीं' से कहना भागोगे कहां? जहां जाओगे...संसार तो संसार है, वहां तो हुआ, नकार से कहना हुआ। क्या नहीं है वहां, यह कहा। क्या हमेशा दो हैं। है, यह तो कहा नहीं। क्या है उसे कहा भी नहीं जा सकता। इसलिए संन्यास का अर्थ होता है; अकेले होने की क्षमता। यह तो ऐसे ही हुआ, कि किसी स्वस्थ आदमी को हमने कहा अकेला होना नहीं, अकेले होने की क्षमता। जहां भी हो, यह कि, न टी. बी. है, न कैंसर है उसमें, न मलेरिया लगा है, न स्मरण बना रहे कि 'मैं अकेला हूं।' तब बीच-बाजार में तुम प्लेग हुई; स्वस्थ है। स्वास्थ्य को बताया, बीमारियां नहीं हैं संन्यासी हो। गृहस्थ होकर संन्यासी हो। पत्नी है, बच्चे हैं, इससे। यह कोई स्वास्थ्य की परिभाषा हुई? बीमारियों का दुकान है, बाजार है-तुम संन्यासी हो। इतनी याद बनी रहे कि अभाव स्वास्थ्य है? लेकिन बस यही निकटतम परिभाषा है। मैं अकेला हूं।' स्वास्थ्य तो ज्यादा है बीमारियों के अभाव से। स्वास्थ्य की तो तुम अपने को दो में बांटने की आदत छोड़ दो। अपनी विधायकता है। स्वास्थ्य की तो अपनी उपस्थिति है। 'जहां न दुख न सुख, न पीड़ा न बाधा, न मरण न जन्म, वहीं खयाल किया? सिरदर्द न हो तो जरूरी नहीं है कि सिर स्वस्थ | निर्वाण है।' हो। जैसे सिरदर्द नकार की तरफ ले जाता है, पीड़ा की तरफ ले नदियां दो-दो अपार, बहती हैं विपरीत छोर जाता है, ऐसा सिर का स्वास्थ्य आनंद की तरफ ले जाएगा। दर्द कब तक मैं दोनों धाराओं में साथ बहूं का न होना तो मध्य में हुआ, दोनों के मध्य में हुआ। दर्द का होना ओ मेरे सूत्रधार! एक अति, स्वास्थ्य का होना एक अति, दोनों के मध्य में हुई नौकाएं दो भारी अलग-अलग दिशा में जाती इतनी-सी बात कि दर्द नहीं है। कब तक मैं दोनों को साथ-साथ खेता रहूं अगर कोई तुमसे पूछे, कैसे हो? तुम कहो, दुखी नहीं हैं, तो एक देह की पतवार! वह भी थोड़ा चिंतित होगा। तुम यह नहीं कह रहे हो कि सुखी | दो-दो दरवाजे हैं अलग-अलग क्षितिजों में हो, तुम इतना ही कह रहे हो कि दुखी नहीं हूं। जरूरी नहीं कि कब तक मैं दोनों की देहरियां लांघा करूं तुम सुखी हो। दुख का न होना सुख के होने के लिए शर्त तो है एक साथ! लेकिन सुख के होने की परिभाषा नहीं है। पर मजबूरी है। छोटी-सी मेरी कथा, छोटा-सा घटना क्रम उस परम सत्य को हम इतना ही कह सकते हैं कि संसार नहीं हवा के भंवर-सा पलव्यापी यह इतिहास है। निर्वाण संसार नहीं है। इन सारे सूत्रों में अलग-अलग ढंग टूटे हुए असंबद्ध टुकड़ों में बांट दिया तुमने से महावीर यही कहते हैं कि संसार नहीं है। ओ अदृश्य विरोधाभास! न वहां दुख, न सुख। सुख और दुख संसार है। द्वंद्व संसार | जैसे आदमी दो नावों पर साथ-साथ सवार हो और दोनों नावें है। दो के बीच सतत संघर्ष संसार है। इसलिए संन्यासी का अर्थ विपरीत दिशाओं में जाती हों, ऐसा है संसार। जैसे आदमी दो होता है, जिसने अकेला होना सीख लिया। इसका यह अर्थ नहीं दरवाजों से एक साथ प्रवेश करने की कोशिश कर रहा हो और होता कि जंगल भागकर अकेला हो गया। क्योंकि इस संसार में दोनों दरवाजे इतने दूर हों जैसे जमीन और आकाश, ऐसा है अकेले होने का तो कोई उपाय नहीं है। संसार। जैसे कोई एक ही साथ जन्मना भी चाहता हो और मरने जंगल में रहोगे तो भी अकेले नहीं हो। बैठोगे वृक्ष के नीचे, से भी बचना चाहता हो, दो विपरीत आकांक्षाएं कर रहा हो और .कौआ बीट कर जाएगा। संबंध जुड़ गया क्रोध का। बैठोगे वृक्ष दोनों के बीच उलझ रहा हो, परेशान हो रहा हो, ऐसा है संसार। के नीचे, वृक्ष छाया देगा। संबंध जुड़ गया राग का। फिर हमारी सभी आकांक्षाएं विपरीत हैं। इसे थोड़ा समझना। 635 __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org