________________ जिन सूत्र भाग : 2 धनुषबाण तो रखो महाराज ! इसे साथ लेकर चलो तो आदिवासी तक अज्ञान के कारण बड़े उपद्रव होते हैं। परमात्मा के नाम पर मालूम पड़ते हो। और फिर धनुषबाण का वक्त गया। | लाभ तो कुछ हुआ दिखाई पड़ता नहीं, हानि बहुत हुई मालूम लेकिन उस दिन शौर्य की प्रतिष्ठा थी, बल की पूजा थी, वीर्य होती है। कितने दंगे-फसाद! कितना खून-खराबी! कितना की पूजा थी तो हमने धनुषबाण दिया था। धनुषबाण के बिना रक्तपात! सारा इतिहास धर्म के नाम पर बलात्कारों से भरा पड़ा राम जंचते ही न उस दिन। उस दिन कबूतर का किसी को खयाल | है। मस्जिद-मंदिर ने लड़वाया ही ज्यादा। आदमी काटे। संदर ही नहीं था कि शांति के कपोत उड़ाओ। बहाने दिए गलत कामों के लिए। खूबसूरत नारे दिए वीभत्स वक्त बदल जाता है, खदा की शकल बदल जाती है। समय प्रक्रियाओं को छिपा लेने के लिए। बदल जाता है, सोचने के ढंग बदल जाते हैं, मापदंड बदल जाते | अगर हिंदू को काटो तो पुण्य हो रहा है। अगर तुम मुसलमान हैं, धारणाएं बदल जाती हैं। तो परमात्मा का रूप हम बदलते हो तो हिंदुओं को काटने में पुण्य है। या हिंदुओं को जबर्दस्ती चले जाते हैं। | मुसलमान बना लेने में पुण्य है। अगर तुम हिंदू हो तो बात बदल यहूदियों का परमात्मा बहुत क्रुद्ध है। जरा-सी बात पर नाराज जाती है। अगर तुम ईसाई हो तो येन-केन-प्रकारेण कैसे भी हो जाए, जला दे, राख कर दे। ईसाइयों का परमात्मा अति लोगों को ईसाई बना डालो! खरीद लो रोटी से, धन से, किसी दयालु है। वक्त बदल गया था। यहूदी जहां से गुजर रहे थे, भी उपाय से। वहां बड़े सख्त और कठोर परमात्मा की जरूरत थी। जहां से अब तक आदमी ने धर्म के नाम पर जो किया है वह धार्मिक तो जीसस ने परमात्मा की कहानी को पकड़ा, वहां सख्त, कठोर नहीं मालूम होता। लेकिन यह स्वाभाविक है। आदमी जो भी परमात्मा बेहूदा मालूम होने लगा था। थोड़ा अमानवीय मालूम करेगा उसमें आदमी की ही छाया पड़ेगी। अगर हम हिंसक हैं तो होने लगा था। तो प्रेमपूर्ण परमात्मा। तो जीसस ने कहा, | हमारा धर्म हिंसक होगा। अगर हम मांसाहारी हैं तो हमारे धर्म में परमात्मा प्रेम है। मांसाहार के लिए हम कोई उपाय खोज लेंगे। अगर लड़ने की, ऐसी शकल बदलती जाती है। लेकिन महावीर ने कहा कि ईर्ष्या की, जलन की वृत्ति है, तो हम अपने धर्म के आधार बना ऐसा कब तक करते रहोगे? यह तुम अपनी ही शकल को | लेंगे, जिनसे हम लड़ेंगे, झगड़ेंगे। आदमी बड़ा चालाक है, बड़ा झांककर देखते रहते हो। यह बात ही बंद करो। इसमें समय मत कपट से भरा है। वह जो करना चाहता है, उस के लिए अच्छे गंवाओ। परमात्मा को खोजने की फिकर ही छोड़ो। क्योंकि वह बहाने खोज लेता है। वह बहानों की आड़ में फिर सारे बुरे काम खोज में तुम अपनी ही शकल को निर्मित करते हो। बेहतर हो, करते चला जाता है। तुम अपनी ही शकल के भीतर उतरो और अपने को खोज लो। / ये मुसलसल आफतें, ये यूरसें, ये कत्ले-आम यह महावीर का बुनियादी सूत्र है। परमात्मा की खोज आदमी कब तक रहे औहामे-बातिल का गुलाम आत्मखोज बननी चाहिए। क्योंकि तुम जो परमात्मा बनाओगे | ये निरंतर होते धर्म के नाम पर आक्रमण, ये लगातार होते हुए | वह तुम्हारी ही प्रतिछवि होनेवाली है। इसलिए इसको बनाने में अनाचार! आदमी कब तक मिथ्या भ्रमों का शिकार रहे! व्यर्थ जाल में मत पड़ो। यह तुम्हारा ही खिलौना होगा। तुम अगर आज दुनिया में नई पीढ़ियां धर्म के प्रति तिरस्कार से भरी अपने भीतर जाओ। उसे खोजो, जिसने सारे परमात्मा बनाए। हैं तो इसका कारण नई पीढ़ियां नहीं हैं, अब तक धर्म के नाम पर उसे खोजो, जिसने सारे मंदिर निर्मित किए। उसे खोजो, जिसने | जो हुआ है उसका बोध। महावीर को यह बात ढाई हजार साल सारी प्रार्थनाएं गढ़ी और रची। वह जो तुम्हारा चैतन्य का स्रोत पहले दिखाई पड़नी शुरू हुई कि धर्म के नाम पर जो भी हो रहा है. वह जो तम्हारा मलाधार है, उस गंगोत्री की तरफ बहो। है, वह किसी दिन दुनिया में अधर्म ही लाएगा; धर्म उससे अपने को जान लो। अपने को बिना जाने तुम जो भी परमात्मा | आनेवाला नहीं है। इसलिए महावीर ने कुछ सीधी-सीधी बातें के संबंध में सोचोगे, तम्हारा अज्ञान ही प्रतिफलित होगा। कहीं, जिनका मंदिर और मस्जिद, करान और बाइबल से कोई यह खोज कैसे हो? और जब तक यह खोज न हो जाए तब लेना देना नहीं। कुछ छोटे-से सूत्र प्रगट किए, जो मनुष्य के 594 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org