________________ रसमयता और एकाग्रता वह बच्चा...बच्चे को आनंद आ गया। उसने कहा कि यह सकते हो बिना शर्त लगाए, तो फिर प्रेम के मार्ग से उतरो। मेरी नकल कर रहा है। तो वह और जोर-जोर से करने लगा। मिटोगे तो दोनों हालत में क्योंकि जब तक तुम न मिटोगे, तब चार घंटे में वह जो पहलवान था, उसने कहा माफी करो। वे तक परमात्मा न हो सकेगा। और जिस दिन तुम मिटोगे उस दिन हजारों डालर रखो अपने। यह तो हमारी जान ले लेगा। आठ | तुम्हें चाहे पता न भी चले कि तुम मिट गए हो, सारी दुनिया को घंटे में हम मर ही जाएंगे। क्योंकि उचकता, कूदता, चिल्लाता, पता चल जाएगा कि तुम मिट गए हो। जिनके पास भी आंखें हैं चीखता। और जो वह करे, वही उसे करना है। उन्हें पता चल जाएगा कि तुम मिट गए हो। तुम्हारा शून्य बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रयोग करके देख रहे थे कि छोटे बच्चे में कितनी मुखर होता है! ऊर्जा है, फिर भी थकता नहीं। कारण क्या होगा? छोटा बच्चा शून्य बड़ा संगीतपूर्ण होता है। शून्य का सन्नाटा सुनाई पड़ने अभी अपने को सम्हालता नहीं। अभी जो घटता है, उसके साथ लगता है। जो लोग भी मिट गए हैं, उनके पास लोग भागे चले हो लेता है। अगर बच्चा गिरता है, तो वह गिरने में सहयोग आते हैं, खिंचे चले आते हैं। समझ में भी नहीं आता कि क्या करता है। तुम गिरते हो तो विरोध करते हो। तुम्हारे विरोध के आकर्षण है। आकर्षण इतना ही है कि जहां कोई मिट गया वहां कारण हड्डी टूट जाती है। हड्डी गिरने के कारण नहीं टूटती। हड्डी शून्य पैदा हो गया। तुम्हारे विरोध के कारण टूटती है। वैज्ञानिकों से पूछो, हवा चलती है, क्यों चलती है? यह हवा अगर तुम गिरने में साथ हो जाओ, अगर जब तुम गिरने लगो | अभी चल रही है, यह गुलमोहर का वृक्ष कंप रहा है। यह हवा तो गिरने से तुम्हारे बचने की कोई आकांक्षा न हो, तुम गिरने के क्यों चल रही है? तो वैज्ञानिक कहते हैं, हवा के चलने का एक साथ सहयोग कर लो, तुम गिरने से एक कदम आगे गिर जाओ, | कारण है, एक ही कारण है। जब कहीं जोर की गर्मी पड़ती है तो तुम कहो, लो राजी; तो चोट न खाओगे। तो तुम ऐसे गिर | वहां की हवा विरल हो जाती है। वहां शून्य पैदा हो जाता है। उस जाओगे....बिना किसी प्रतिरोध के। तुम पृथ्वी की गोद में गिर शून्य को भरने के लिए आसपास की हवा दौड़ने लगती है। जाओगे। चोट न खाओगे। | क्योंकि शून्य को प्रकृति बर्दाश्त नहीं करती। उसको भरना पड़ता शराबी चोट नहीं खाता। ऐसे ही भक्त भी चोट नहीं खाता। है। आसपास की हवा उस शुन्य को भरने के लिए दौड़ती है, वह गिरता है; बड़ी ऊंची छलांग है उसकी। मगर वह शराबी इसलिए हवा चलती है। इसलिए गर्मी में बवंडर उठते हैं, तूफान है। उसने प्रेमरस पीया है। उसने प्रेम की सुरा पी ली। उठते हैं। क्योंकि शून्य पैदा हो जाता है। सूरज की गर्मी के कारण मगर तुम अगर नहीं हो शराबी और तुम्हारा स्वभाव वैसा नहीं हवा विरल हो जाती है, फैल जाती है। जगह खाली हो जाती है। है तो करना मत। तुम अपनी सीढ़ियां उतरना। छोटी-छोटी उसे भरने हवा आती है। सीढ़ियां-सीढ़ियां बनाकर उतरना। कोई जल्दी भी नहीं है क्योंकि ठीक ऐसा ही परमात्मा के आत्यंतिक लोक में भी घटता है। दोनों तरह से लोग पहुंच जाते हैं। जब कोई व्यक्ति मिट जाता है, खाली हो जाता, तो प्रकृति या तो मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तुम इसमें से एक को अपनी परमात्मा शून्य को बर्दाश्त नहीं करता। उस शून्य को भरने के स्वभाव की, प्रकृति की अनुकूलता बिना देखे चुन लो। इसलिए लिए चेतना की लहरें चल पड़ती हैं। मैं भक्ति की भी बात करता हूं, ध्यान की भी बात करता हूं। मैं तुम चेतना की लहरों की तरह यहां आ गए हो। जहां कहीं कोई दोनों की बात करता हूं क्योंकि तुममें दोनों तरह के लोग हैं। व्यक्ति मिटा कि चेतनाएं उस तरफ सरकने लगती हैं। ऐसा अंतिम घटना तो एक है, लेकिन उस तक पहुंचने के रास्ते बड़े व्यक्ति हिमालय पर बैठा हो तो लोग वहां रास्ता खोजते हुए, भिन्न हैं। | पगडंडियां बनाते हुए पहुंच जाते हैं। जाना ही पड़ेगा। शून्य को अगर तम्हें विचार की बड़ी पकड़ है तो तम ध्यान से चलो। परमात्मा बर्दाश्त नहीं करता। उसे भरना ही पड़ेगा। अगर तुम्हारा हृदय खुला है, तुम छोटे बच्चे हो सकते हो, या कि | जहां गुरु पैदा होगा वहां शिष्य आते चले जाते हैं। गुरु के होने तुम स्त्रैण हो सकते हो, तुम प्रेम बहा सकते हो और प्रेम में बह का एक ही अर्थ है, जहां शून्य पैदा हुआ। 585 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org