________________ MAHESE जिन सत्र भागः2 अगर आत्महत्या करते हुए पकड़ लिए जाओ, तो सरकार तुमको का हो गया और मरना चाहता है...क्योंकि करोगे क्या? रोज मार डाले। यह भी कोई बात हुई ? तुम खुद ही मर रहे थे। अब उठना वही, रोज सोना वही, रोज खा-पी लेना वही। फिर सब तुमको और मारने की क्या जरूरत है ? तुम तो खुद ही अपराध | अपने संबंधी जा चुके, मित्र-प्रियजन जा चुके और एक आदमी भी कर रहे थे, दंड भी दे रहे थे। निपटारा हुआ जा रहा था। जिंदा है। उसकी सारी दुनिया जा चुकी। वह सौ साल पहले पैदा लेकिन अगर पकड़ लिए गए-मर गए तो ठीक, अगर अपराध हुआ था, वह दुनिया जा चुकी। सब बदल गया। वह बिलकुल कर गजरे तो फिर कोई दंड नहीं है लेकिन अगर करते हए। अजनबी है। जैसे किसी और लोक में जबर्दस्ती उसको लाकर पकड़ लिए गए और अपराध पूरा न हो पाया तो दंड है। खड़ा कर दिया। बच्चों से कोई तालमेल नहीं रहा। बच्चे यह अब तक तो ठीक था। हमारे नियम और कानून भी कारण | बिलकुल दूसरी दुनिया में जी रहे हैं। वह करे भी क्या जीकर? से होते हैं। जीवन बड़ा मुश्किल रहा है, बड़ा असंभव रहा है। सार भी क्या है? कष्ट होता है, शरीर दुखता है, अर्थराइटिस है, | सत्तर साल, अस्सी साल जीना बड़ा मुश्किल रहा है। जितनी हजार बीमारियां हैं। करे क्या जीकर? / खोजें हुई हैं दुनिया में जमीन के नीचे पड़ी हुई मनुष्य की हड्डियों और जी रहा है क्योंकि मेडिकल साइंस ने जीने की सुविधा की, तो ऐसा लगता है पांच हजार साल पहले चालीस वर्ष जुटा दी है। जी सकता है। अब हम आदमी को खींच सकते हैं, आखिरी उम्र थी। क्योंकि पांच हजार वर्ष पहले की कोई भी हड्डी | दो सौ साल तक भी। उसको मरने ही न दें। उसको अस्पताल में नहीं मिली है, जो चालीस वर्ष से ज्यादा पुराने आदमी की हो। रखकर हम जिंदा रख सकते हैं। अब अस्पताल में डाक्टरों की और पीछे जाने पर, कोई सत्तर और पचहत्तर हजार साल पुरानी भी बड़ी कठिनाई है। क्योंकि अगर वे आक्सीजन बंद करें तो जो पेकिंग में हड्डियां मिली हैं, वे तो बताती हैं कि आदमी उसका मतलब है, उन्होंने इसको मारा। पुराने नियम से वे हत्यारे मुश्किल से पच्चीस साल जीता था। तो जीवन बड़ा मुश्किल | हैं। उनका पुराना शास्त्र कहता है, किसी को मारना नहीं, बचाने रहा है। और पच्चीस साल भी, एक घर में अगर एक दर्जन बेटे की कोशिश करना। अगर वे इसको ग्लूकोज न दें तो यह मर पैदा हों तो दो बच जाएं, बहुत। क्योंकि दस बच्चों में नौ बच्चे जाएगा। लेकिन तब मारने का जुम्मा उनके ऊपर पड़ेगा। अभी मर जाते थे। कानून इसका मौका नहीं दे रहा है, लेकिन कानून को यह मौका तो जीवन की बड़ी मुश्किल थी। जीवन बड़ा न्यून था। देना पड़ेगा। मुश्किल से मिलता था। जीवन का बड़ा अवसर था। सभी को महावीर की बात समझ में आने जैसी है। महावीर कहते हैं, नहीं मिल जाता था। तो सौ साल जीने का हम आशीर्वाद देते थे, जब कोई आदमी ऐसी जगह आ जाए, जहां शरीर से अब कुछ वह ठीक है। अब जीवन बड़ा सुगम है। कम से कम पश्चिम में भी ध्यान में गति न होती हो, समाधि की तरफ यात्रा न होती हो; तो सुगम हो गया है। लोग सौ साल तक पहुंच रहे हैं। ध्यान से, धर्म से, समाधि से परमात्मा का अब कोई अनुभव में सत्तर-अस्सी साल औसत उम्र हो गई है। अस्सी साल का होना | विकास न होता हो, कोई लाभ न होता हो....यह महावीर का कोई बहुत बूढ़ा होना नहीं है। लाभ ठीक से समझना। यह जैनियों का लाभ नहीं है कि अब इसलिए हम चौंकते हैं, यहां जब अखबार में कभी खबर आती कोई धन कमाने की सुविधा न रही, कि रिटायरमेंट हो गया, अब है कि नब्बे साल के बूढ़े ने विवाह कर लिया तो हम बहुत चौंकते जीकर क्या करें? हैं। यह भी क्या पागलपन है? नब्बे साल का बूढ़ा, और महावीर जब कहते हैं, नए-नए लाभ के लिए जीवन को विवाह? लेकिन पश्चिम में शरीर की उम्र लंबा रही है। नब्बे सुरक्षित रखे, तो वे यह कहते हैं, रोज-रोज परमात्मा का साल का बूढ़ा भी विवाह करने की हालत में है। अधिकतम अंश अनुभव में आने लगे तो तो जीवन का कोई सार तो एक नया सवाल उठना शुरू हुआ है कि आदमी को मरने है। लेकिन कभी अगर ऐसा हो जाए कि जब जीवन तथा देह से का हक होना चाहिए। यह जन्मसिद्ध अधिकार होना चाहिए। लाभ होता दिखाई न दे तो परिज्ञानपूर्वक शरीर का त्याग कर दे। सभी विधानों में। क्योंकि एक आदमी अगर एक सौ दस साल यह शर्त सोचने जैसी है : 'परिज्ञानपूर्वक।' महावीर कहते हैं, 5601 ___Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org: