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________________ पंडितमरण सुमरण है तो काफी। सुख तो कौन किसको दे पाया? एक-दूसरे के लिए परिज्ञानपूर्वक शरीर का त्याग कर दे।' फूल, बिछाए... बिछे तो नहीं, चेष्टा की बहुत। एक-दूसरे के | यह महावीर की अनूठी बात है। सिर्फ महावीर ने कही है सारे रास्ते से थोड़े कांटे बीन लिए, पर्याप्त। इतना ही बहुत है। यह मनुष्य-जाति के इतिहास में। महावीर ने भर अपने संन्यासी को भी असंभव है। यह भी हो गया, चमत्कार है। स्वेच्छा-मरण की आज्ञा दी है। लेकिन कौन किसका है? अजनबी को अजनबी जानो। जो महावीर कहते हैं, जीवन तो साधन है; अपने आप में साध्य बच्चा तुम्हारे घर पैदा हुआ, वह भी अजनबी है। एक अज्ञात नहीं है। तुमसे कोई पूछे, किसलिए जीते? तो तुम कहोगे, जीने आत्मा न मालूम कहां से, न मालूम किन लोकों से, न मालूम के लिए जीते हैं। तुमसे कोई पूछे कि सौ साल जीना चाहते हो? किन ग्रह-नक्षत्रों से, न मालूम किन पृथ्वियों से, न मालूम किन तुम कहोगे, जरूर जीना चाहते हैं। जीवन-पथों से होकर तुम्हारे द्वार आ गई है। अपना मानने की क्या करोगे? सौ साल नहीं, हजार साल भी जीकर करोगे भूल मत करो। क्या? होगा क्या? तुम कहोगे, होने का सवाल कहां है? बस धन है तो ठीक, नहीं है तो ठीक। आसक्ति को थोड़ा शिथिल जीना ही बहुत है। हम लोगों को आशीर्वाद देते हैं, सौ साल करो। मुट्ठी खोलो। और ऐसा मत कहो कि जब मौत आएगी जीयो। कोई फिक्र ही नहीं करता कि सौ साल जीकर यह बेचारा तब निपट लेंगे। करेगा क्या? इसकी भी तो कुछ सोचो! तुमने तो आशीर्वाद दे तोड़ लेंगे हरेक शै से रिश्ता दिया। तुम तो मुफ्त में देकर मुक्त हो गए, अब यह फंस गया। तोड़ देने की नौबत तो आए यह लटका रहेगा किसी अस्पताल में। हाथ-पैर उल्टे-सीधे बंधे हम कयामत के खुद मुंतजिर हैं. होंगे। नाक में आक्सीजन जा रही होगी। शरीर में ग्लूकोज का पर किसी दिन कयामत तो आए इंजेक्शन लगा होगा। इसकी भी तो सोचो। तुमने तो दे दिया –आएगी मौत, तब निपट लेंगे। आशीर्वाद कि सौ साल जीयो। तोड़ लेंगे हरेक शै से रिश्ता सिर्फ जीना अपने आप में मूल्य थोड़े ही है! इसलिए महावीर तोड़ देने की नौबत तो आए ने इस बात को बड़ी हिम्मत से लिया। महावीर की बात आज लेकिन जब नौबत आएगी तो एक पल में घट जाती है। पल के नहीं कल दनिया में स्वीकार करनी पड़ेगी। छोटे-से खंड में घट जाती है। तुम्हें अवसर न मिलेगा। तुम | पश्चिम में बड़े जोर से इस पर आंदोलन चला है। हालांकि जाग भी न पाओगे और मौत तम्हें उठा ले जाएगी। उनको किसी को महावीर का पता नहीं क्योंकि महावीर पश्चिम नहीं, इस तरह टालो मत, स्थगित मत करो। मौत आ रही है, के लिए बिलकुल अपरिचित हैं। पश्चिम में इसका बड़ा चिंतन आ ही गई है। नौबत आ ही गई है। नौबत आती ही रही है। चल रहा है क्योंकि पश्चिम अब, सौ साल के करीब जीने की कयामत कल नहीं है, कयामत आज है, अभी है, यहीं है। तुम्हें | सुविधा उसको उपलब्ध हो गई है। यहां तो हम आशीर्वाद ही देते जो करना हो, अभी कर लो।। रहे। आशीर्वाद से ही कोई जीता है? लेकिन पश्चिम के विज्ञान चीजों को सीधा-सीधा देखो। आंखों में भ्रम मत पालो। तो | ने आशीर्वाद को पूरा कर दिया। जीवन भी पंडित का जीवन हो जाता है और मृत्यु भी पंडित की | अब लोग जी रहे हैं। सौ साल के पार पहुंच गए हैं कुछ लोग। मृत्यु हो जाती है। | अब वे बड़ी मुश्किल में हैं। वे कहते हैं, हमें मरने का हक 'साधक पग-पग पर दोषों की आशंका, संभावनाओं को चाहिए। पश्चिम में बूढ़ों की जमातें हैं, जो आंदोलन चला रही ध्यान में रखकर चले। छोटे से छोटे दोष को भी पाप समझे हैं। जो कह रही हैं, हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है कि हमें मरना उससे सावधान रहे। नए-नए लाभ के लिए जीवन को सुरक्षित चाहिए। हमें तुम बचा नहीं सकते। हमको मरने का मौका दो। रखे।' मगर अब तक इसकी कोई दुनिया के किसी कानून में व्यवस्था 'जब जीवन तथा देह से लाभ होता दिखाई न दे तो नहीं है। आत्महत्या बड़ा अपराध है। बड़े मजे की बात है। 559 ___JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340158
Book TitleJinsutra Lecture 58 Pandit Maran Sumaran Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size30 MB
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