SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदह गुणस्थान बहुत लोग मिश्र अवस्था में होते हैं। निन्यानबे प्रतिशत तो भी वैराग्य का जन्म नहीं हो रहा है। में जीते हैं. फिर बाकी तेरह गण-स्थान तो एक प्रतिशत कम से कम एक बात तो साफ है कि वे अपने को साफ देख पा के हैं। इनमें से भी बहुत-से सासादन में ही डोलते रहते रहे हैं; जो कि काफी बहुमूल्य है। दृष्टि तो साफ है। दृष्टि साफ हैं–त्रिशंकु की भांति। उनमें से कुछ मिश्र तक आते हैं। दोनों है तो आचार भी उसके पीछे-पीछे चला आएगा। दृष्टि ही साफ चीजें भीतर होती हैं। सीमारेखा भी साफ होती है, लेकिन दोनों न हो तो आचरण के जन्मने का उपाय ही नहीं। साथ-साथ होती हैं। धर्म-बोध भी होता है, अधर्म में रस भी लेकिन दृष्टि ही साफ किए मत बैठे रहना। क्योंकि जो अभी होता है। पता भी होता है कि क्या ठीक है, और फिर भी गलत के साफ है, कल धुंधली हो सकती है। अगर आचरण में न लाई गई बंधन नहीं छूटते। तो ज्यादा देर साफ न रहेगी। दृष्टि जब मिले तो तत्क्षण साहस महावीर बहुत वैज्ञानिक ढंग से आगे बढ़ रहे हैं। वे तुम्हारे करके उसको आचरण में लाना क्योंकि दृष्टि के क्षण बड़े कम चित्त का एक-एक स्पष्ट विश्लेषण कर रहे हैं ताकि तुम पहचान हैं। कभी-कभी बिजली कौंध जाती है और रास्ता दिखाई पड़ता लो कहां तुम हो, और फिर किस तरफ जाना है। है। उस क्षण में चल पड़ना, ऐसे खड़े मत रह जाना। क्योंकि चौथा गुणस्थान है: अविरत सम्यकदृष्टि। साधक की चतुर्थ बिजली अभी कौंधी, सदा न कौंधेगी। कल कौंधेगी कि न भूमि; जिसमें बोध हो जाने पर भी भोगों अथवा हिंसा आदि पापों कौंधेगी क्या पता! जो पहली झलकें आती हैं, वे बिजली की के प्रति विरक्त भाव जाग्रत नहीं हो पाता। कौंध की तरह हैं, उन कौंध का उपयोग कर लेना। उपयोग करने बोध भी हो जाता है, एक दृष्टि भी मिल जाती है। ठीक-ठीक से बिजली और कौंधेगी। चल पड़े तो दृष्टि और निखरेगी। समझ में आ जाता है, क्या करने योग्य है, क्या न करने योग्य है, | करने से ही दृष्टि का निखार होता है। सिर्फ सोचते रहने से लेकिन अभी निर्णय नहीं होता। राग, लोभ, मोह, हिंसा, | धारणाएं साफ हो जाती हैं, लेकिन जीवन उलझा का उलझा रह अहंकार के प्रति अभी वैराग्य का जन्म नहीं होता। ऐसा नहीं | जाता है। होता कि अब छोड़ ही दें। दिखता है कि ठीक क्या है, लेकिन जो | दृष्टि के साफ होने का मामला ऐसा है कि तुम एक पाकशास्त्र दिखता है वह आचरण नहीं बन पाता। प्रतीति होती है. लिए बैठे हो और भखे हो। और पाकशास्त्र में सब लिखा है। साफ-साफ प्रतीति होती है कि सत्य बोलें। सत्य ही शुभ है। रत्ती-रत्ती ब्यौरा दिया है कैसे भोजन बनाना। भोजन की सामग्री लेकिन असत्य का पूर्ण त्याग कर दें, इतना साहस नहीं जुट भी मौजूद है। आटा मौजूद है, पानी मौजूद है, नमक मौजूद है, पाता। यह जानना कि क्या सत्य है, एक बात है; और सत्यमय चूल्हा जला हुआ है। तुम पाकशास्त्र लिए बैठे हो। इससे भूख हो जाना बिलकुल दूसरी बात है। यह पहचान लेना कि ठीक मिटेगी नहीं। इससे कुछ हल न होगा। रास्ता कौन-सा है एक बात है, फिर उस पर चल पड़ना बिलकुल बहुत लोग शास्त्र लिए बैठे हैं। शास्त्र की चर्चा में लीन हैं। दूसरी बात है। जनम-जनम गंवाते हैं लेकिन कभी उसका उपयोग नहीं करते। अविरत सम्यकदृष्टि का अर्थ है: जो खड़ा हो गया। पुराने | भूखे के भूखे रह जाते हैं। फिर भूख भी नहीं मिटती, तो रास्ते पर जा भी नहीं रहा है, नए का दर्शन भी होने लगा है लेकिन धीरे-धीरे भूख विस्मृत होने लगती है। ठिठका खड़ा है। नए पर जा नहीं पाता क्योंकि नए पर जाना हो यह काफी मूल्यवान है। इस सूचन को खयाल में रखना। तो पुराने का परिपूर्ण त्याग चाहिए। तुम दोनों एक साथ नहीं | अगर तुम उपवास करो तो तीन-चार दिन के बाद भूख लगनी सम्हाल सकते। एक को छोड़ना होगा। बंद हो जाती है। तीन दिन सताती है। रोज-रोज तुम्हारे द्वार पर इसमें से तुम अपने भीतर बहुत बार ऐसा ही पाओगे। मेरे पास दस्तक देती है। तुम सुनते ही नहीं तो धीरे-धीरे शरीर राजी हो लोग आते हैं, वे कहते हैं, हमें पता है कि क्रोध बुरा है। पता है | जाता है कि ठीक है, शायद तुमने आत्महत्या ही का तय कर कि कामवासना रोग है। पता है कि लोभ से कुछ न मिला, न लिया है, तो ठीक है। शरीर भी क्या करेगा? धीरे-धीरे, मिलेगा। पता है खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाएंगे। फिर धीरे-धीरे भूख भूल जाती है। जो लोग लंबे उपवास करते हैं, ____Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340156
Book TitleJinsutra Lecture 56 Chaudah Gunsthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy