________________ - जिन सूत्र भागः 2 के भक्त पाओगे। जैसे ही कोई राजनेता पद से उतरता है कि अदालत जाना है, कि दफ्तर जाना है; कि संसार की याद आ तत्क्षण सत्संग में लग जाता है। तत्क्षण गुरुओं की खोज में गई। कई बार तो तुम घड़ी किसी कारण से भी नहीं देखते, सिर्फ निकल पड़ता है। फिर इलेक्शन जीतना, फिर चुनाव लड़ना। पुरानी देखने की आदत से देखते हो। कितना समय हो गया। फिर किसी का आशीर्वाद चाहिए। यह रुचि धर्म की रुचि नहीं | कितना समय खो गया। इतनी देर संसार में कुछ कर लेते। इतनी है। यह रुचि मौलिक रूप से अधार्मिक हैं। देर गंवा दी। महावीर कहते हैं इससे उठो, तो पहला कदम उठा। | एक लहर मन में आ गई। यह भी स्वाभाविक है। दूसरा चरण, दूसरा गुणस्थान है : सासादन। | छूटते-छूटते चीजें छूटती हैं। छोड़ते-छोड़ते घटना घटती है। महावीर कहते हैं इतनी जल्दी, एकदम से न उठ जाओगे। बार-बार पुरानी आदतें पकड़ती हैं। पुराने राग, पुराने रंग, पुरानी उठते-उठते उठोगे। बहुत बार तो निकल आओगे इसके बाहर, स्मृतियां, पुराने सुख फिर-फिर आह्वान देते हैं, फिर-फिर बुलाते और फिर-फिर खींचने का मन हो जाएगा। फिर-फिर परानी हैं, फिर-फिर निमंत्रण भेजते हैं। आदतें वापस बुला लेंगी। सासादन दूसरा गुणस्थान है। जो हममें से मिथ्यात्व से ऊपर सासादन का अर्थ होता है, जो व्यक्ति मिथ्यात्व के बाहर उठने की चेष्टा में लगते हैं उनकी दशा सासादन की है। पहले से निकलने की चेष्टा में संलग्न है लेकिन पुरानी आदतों के कारण, | बेहतर। कम से कम चलो बाहर से ही सही, छोड़ा तो! बाहर से पुराने कर्मोदय के कारण वापस खींच लिया जाता है। फिर-फिर | छोड़ा तो भीतर से भी छूटेगा। इतना होश तो आया कि अब पुराने राग में रस आने लगता है। क्षणभर को भी सही, बार-बार अहंकार का आग्रह न रखेंगे। लेकिन बेहोशी के क्षण आते हैं। फिर सोचने लगता है उन्हीं दिनों की बात; जब धन था, पद था, | उन बेहोशी के क्षणों का नाम सासादन है। प्रतिष्ठा थी। दिवास्वप्न देखने लगता है। तुमने तय कर लिया, अब क्रोध न करेंगे। और किसी आदमी सासादन का अर्थ है, व्यक्ति मिथ्यात्व के बाहर निकला तो: का पैर बाजार की भीड में तम्हारे पैर पर पड गया। उस एक क्षण लेकिन अभी मिथ्यात्व की सूक्ष्म तरंगें उठती हैं। फिर-फिर में तुम भूल ही गए कि तुमने तय कर लिया था अब क्रोध न मर्छा के क्षण में वापस संसार के सपने देखने लगता है। करेंगे। याद ही न आयी। क्रोध हो ही गया। या न भी हआ, उस मिथ्यात्व-अभिमुख हो जाता है, यद्यपि साक्षात मिथ्यात्व में आदमी से तुमने कुछ न भी कहा, तो भी तुम्हारे भीतर क्रोध प्रवेश नहीं करता। झलक गया। एक क्षण को भीतर लपट उठ गई। तो सासादन का अर्थ हुआ : सपने संसार के देखता है, यद्यपि | तो पहले मिथ्यात्व से मुक्त होना है, फिर सासादन के भी पार बाहर से संसार से अपने को रोक लिया है। जाना है। जैसे कोई आदमी घर छोड़कर त्यागी हो गया। मंदिर में बैठा तीसरी अवस्था है : मिश्र। सम्यकत्व एवं मिथ्यात्व की मिश्रित ध्यान कर रहा है, माला हाथ में है। और सब भूल गया मंदिर स्थिति। कुछ-कुछ सत्य की झलक बनने लगती है। कुछ-कुछ और माला, पत्नी की याद आ गई—तो सासादन। मिथ्यात्व से | सत्य का अवतरण होने लगता है और कुछ-कुछ अतीत संस्कारों विरत होने की चेष्टा की है। श्रम किया है, मंदिर तक चला आया के कारण असत्य का अंधेरा भी घिरा रहता है। है, माला हाथ में ले ली, प्रार्थना में लीन है, लेकिन क्षणभर को जैसे दीया जलाते हो, छोटा-सा टिमटिमाता दीया। एक कोने प्रार्थना खो गई, मंदिर खो गया, माला खो गई, पत्नी सामने खड़ी में रोशनी भी हो जाती है, बाकी कमरा अंधेरा भी बना रहता हो गई। किसी और को दिखाई न पड़ेगी यह स्थिति। यह प्रत्येक | है-मिश्र, खिचड़ी अवस्था। व्यक्ति को स्वयं ही निरीक्षण करनी होगी। बहुत बार सासादन | सम्यकत्व एवं मिथ्यात्व की मिश्रित अवस्था; दही और गुड़ के की घटना घटती है। | मिश्रित स्वाद जैसी। ऐसा जैन शास्त्र दृष्टांत लेते हैं-दही और यहां भी तुम मेरे पास बैठे हो, सुनते-सुनते अचानक घड़ी गुड़ के मिश्रित स्वाद जैसी। देखने लगते हो-सासादन! घड़ी देखी, मतलब कि कहीं | जो सासादन के पार जाता है उसकी मिश्र अवस्था बनती है। 512 Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org