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________________ जिन सत्र भागः - - जाते हो। | कि क्या मैं धूम्रपान करते समय प्रार्थना कर सकता हूं? उन्होंने आस्कर वाइल्ड ने कहा है कि दुनिया में दो तरह के लोग हैं। कहा, निश्चित। दुनिया दो विभागों में विभाजित है। एक वे लोग, जो कहते हैं 'धूम्रपान करते समय प्रार्थना कर सकता हूं?' कौन मना सत्य को हमारे साथ खड़ा होना होगा। हम जहां खड़े हों, सत्य | करेगा? लेकिन 'प्रार्थना करते समय धूम्रपान कर सकता हूं?' को वहां खड़ा होना होगा। ये मिथ्यात्व-दृष्टि लोग हैं। कौन हां भरेगा? पर बात जरा-सी फर्क की है, पर बड़े फर्क की दूसरे लोग, जो कहते हैं सत्य जहां होगा हम वहां खड़े हो है। जमीन-आसमान का फासला हो जाता है। जाएंगे। ये सम्यक-दृष्टि लोग हैं। जरा-सा ही फर्क है। शब्दों महावीर कहते हैं, सत्य के पक्ष में खड़े होना; सत्य को अपने को यहां-वहां रख दो। सत्य को मेरे साथ खड़ा होना होगा, या मैं पक्ष में खड़ा मत करना। तुम्हारे पक्ष में होने के कारण ही सत्य सत्य के साथ खड़ा होऊंगा। शब्दों में तो बड़ा थोड़ा फर्क है, असत्य हो जाता है। तुम असत्य हो। तुम्हारा जहर सत्य को भी लेकिन अस्तित्व में बड़ा गहरा फर्क हो जाता है। जहरीला कर देगा। तुम अपनी छाया सत्य पर मत डालना। तुम जमीन-आसमान जैसा फर्क हो जाता है। अपनी गंदगी सत्य पर मत डालना। तुम सत्य के साथ हो लेना जोशुआ लियेमेन ने लिखा है कि जब वह युवा था और अपने लेकिन सत्य को अपने पीछे चलने की जबर्दस्ती मत करना। गुरु के आश्रम में था तो रोज दो घंटे के लिए आश्रम के बगीचे में वहां हिंसा हो जाती है। जब तुम सत्य को अपने पीछे घसीटते घूमने और ध्यान करने का समय मिलता था। घूमने और प्रार्थना हो, सत्य मर जाता है। सत्य जीता है स्वतंत्रता में। करने का समय मिलता था। खुली प्रकृति में प्रार्थना के पंख तो तुम भूलकर भी यह चेष्टा मत करना कि मैं जो कहूं वह लगाकर उड़ने के लिए सुविधा मिलती थी। एक और युवक सत्य हो। तुम यह चेष्टा जरूर करना कि जो सत्य हो वही मैं उसका मित्र था, वे दोनों साथ ही साथ घूमते थे। दोनों को कहूं। अंतर जरा-सा है; अंतर बहुत बड़ा भी है। हम सबके मन | सिगरेट पीने की लत थी, लेकिन संकोच होता था, कि गुरु से में यह दंभ होता ही है कि जो मैं कहता हूं वह सत्य होना ही पछे बिना आश्रम में धम्रपान कैसे करें। तो उन्होंने कहा, पछ ही चाहिए। मैंने कहा। क्यों न लें? और गुरु इतना सरल है, इतना सीधा है कि शायद मैंने देखा कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने घर में दो गुल्लक रखे हुए ही इनकार करे। | है। मैंने पूछा यह किसलिए? तो वह कहता है कि मैं एक में | उन्होंने पूछा। दूसरे दिन लियेमेन जब पहंचा तो उसने देखा, असली सिक्के डालता है, दूसरे में नकली सिक्के। हर साल | | उसका साथी धूम्रपान कर रहा है। वह बहुत हैरान हुआ। उसने खोलता हूं। तो मैंने कहा, अब की बार तुम जब खोलो तो मैं कहा, क्या तुमने पूछा नहीं? मैंने तो पूछा, लेकिन मेरे पूछते ही मौजूद रहूंगा। उसने खोला, गुल्लक तोड़े, तो सब सिक्के हीं। तुमने मालूम होता है पछा नहीं, या जिसमें वह नकली सिक्के डालता, उसी गल्लक में निकले। कि पूछकर भी आज्ञा का उल्लंघन कर रहे हो? उस युवक ने असली सिक्केवाला गुल्लक तो खाली निकला। मैंने कहा, कहा, आश्चर्य! मैंने तो पूछा और उन्होंने कहा कि बिलकुल मामला क्या है? क्या सभी सिक्के नकली हैं? उसने कहा कि ठीक है, पीयो। जो हमने नहीं ढाला वह असली कैसे हो सकता है? अगर ये ही लियेमेन ने कहा कि मेरी समझ में नहीं आता कि हम दोनों को | सिक्के मैंने ढाले होते अपने घर में, तो सब असली गुल्लक में इतने विपरीत उत्तर क्यों दिए गए? उस दूसरे युवक ने कहा, होते। दूसरों के ढाले सिक्के असली हो कैसे सकते हैं? सब पहले यह कहो, तुमने पूछा क्या था? लियेमेन ने कहा, मैंने पूछा नकली हैं। था कि क्या मैं प्रार्थना करते समय धूम्रपान कर सकता हूं? दूसरे जो कहते हैं, दूसरों के कहने के कारण ही तुम कहने उन्होंने कहा, नहीं, कभी नहीं। और लियेमेन ने पूछा उस युवक लगते हो असत्य। तुम जो कहते हो, तुम्हारे कहने के कारण ही से, तुमने क्या पूछा था? कहने लगते हो सत्य। उस युवक ने कहा कि बस, बात साफ हो गई। मैंने पूछा था | सत्य की यह पूजा न हुई। सत्य का तो यह बहुत अपमान 508 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340156
Book TitleJinsutra Lecture 56 Chaudah Gunsthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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