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________________ जिन सूत्र भाग: 2 S गया। तो शैलेशी अवस्था। यह चौदहवीं अवस्था भी साधक की आखिरी अवस्था है। इन चौदहों के जो आगे चला गया, उसको सिद्ध कहते हैं। तो सिद्ध की अवस्था गुणातीत है—गुणस्थान-मुक्त। सिद्ध परिभाषा के बाहर है। जो हिंदू शास्त्रों में ब्रह्म की परिभाषा है, वही जैन शास्त्रों में सिद्ध की परिभाषा है-सच्चिदानंदरूप। चूंकि ब्रह्म का तो कोई शब्द जैनों के पास नहीं है—सिद्ध। क्योंकि जैनों की तो सारी खोज स्वयं की खोज है। तेरहवीं अवस्था से व्यक्ति भगवान की अवस्था को उपलब्ध होता है। भगवत्ता अनुभव हो जाती है, कि जीवन भगवतस्वरूप है। लेकिन एक आखिरी बात रह जाती है—देह का पर्दा / चौदहवें पर वह पर्दा भी गिर जाता।। फिर पंद्रहवीं में क्या होता है? पंद्रहवें पर यात्रा समाप्त हो गई। उसके पार कुछ भी नहीं है। उसको पंद्रहवां भी नहीं कहते। चौदह गुणस्थान हैं, पंद्रहवीं अवस्था तुम्हारा स्वभाव है। चौदह को पार करके कोई स्वयं को उपलब्ध होता है। महावीर के इस गणित को स्मरण रखना। इसमें तत्क्षण तुम्हें समझ में आ सकेगा कि तुम कहां खड़े हो। और पता चल जाए कि मैं कहां हूं तो ही यात्रा सुगमता से होती है। तुम हो तो पहली अवस्था में, और सोच रहे हो सातवीं अवस्था में, तो तुम चल न पाओगे। चलोगे तो पहली से ही चलना पड़ेगा। जहां हो वहीं से यात्रा शुरू होगी। तुम जहां नहीं हो वहां से यात्रा शुरू नहीं हो सकती। इसलिए ठीक-ठीक अपने को पहचानना। और मैं कहता हूँ कि महावीर के अतिरिक्त किसी व्यक्ति ने कभी भी इतना सूक्ष्म तौलने का उपाय नहीं दिया है। यहां एक-एक बात साफ कर दी गई है। अड़चन न होगी। तुम अपने को ठीक-ठीक जांच पाओगे, कहां हो। और तुम कहां हो यह जानना अत्यंत जरूरी है, तो ही तुम वहां पहुंच सकोगे जहां पहुंचना है। अगर स्मरणपूर्वक इस यात्रापथ का उपयोग किया, इस यात्रामार्ग-निर्देश का उपयोग किया तो किसी न किसी क्षण में वह अपूर्व, विलक्षण, अलौकिक घटना घटती है, जब तुम अपने घर आ जाते हो। आज इतना ही। 522 _JalmEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340156
Book TitleJinsutra Lecture 56 Chaudah Gunsthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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