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________________ जन सत्र भाग: 2 maniaRITERNESS ऐसे गोपी नाचते-नाचते-नाचते पास आती जाएगी। मंडल कथा मधुर है। परमात्मा एक है, खोजी अनंत हैं। मंजिल एक छोटा होता जाएगा। नाच तीव्र होता जाएगा। गोपी धीरे-धीरे है, रास्ते बहुत हैं। रास्तों पर चलनेवाले यात्री बहुत हैं। खोती जाएगी, लीन होती जाएगी। मंडल और छोटा होता कृष्ण एक हैं। सोलह हजार गोपियां हैं। सोलह हजार तो सिर्फ जाएगा। रास और सघन हो उठेगा। मध्यरात्रि आ जाएगी। चांद प्रतीक हैं, हजारों गोपियां हैं। लेकिन हजारों गोपियों को एक सिर पर होगा। नाचते-नाचते-नाचते-नाचते गोपी कृष्ण में लीन कृष्ण ने लुभा लिया। कोई वैमनस्य भी नहीं है। कोई ईर्ष्या भी हो जाएगी। कृष्ण हो उठेगी। नहीं है। प्रत्येक गोपी कृष्ण से सीधे जुड़ गई। दूसरी गोपी की मंडल तब बिलकुल समाप्त हो गया। कोई चिंता भी नहीं है। प्रत्येक गोपी को ऐसा लगने लगा, कृष्ण रास पूर्ण हुआ। उसी के साथ नाच रहे हैं। तुमने ऐसे चित्र देखे होंगे, जिसमें मिलन हुआ। कृष्ण अनेक रूप ले लिये हैं। सब गोपियों के साथ नाच रहे हैं। पुराणों में कथा है। राधा के नाम का कोई उल्लेख नहीं है | परमात्मा जब तुम्हें मिलेगा, तो 'तुम्हें मिलेगा। यह कोई शास्त्रों में पुराने शास्त्रों में। सिर्फ इतना ही उल्लेख है कि सार्वजनिक चीज नहीं होगी। यह बिलकुल निजी और वैयक्तिक कृष्ण के पास एक गोपी ऐसी भी थी, जो छाया जैसी थी। उसका होगी। जब परमात्मा तुम्हें मिलेगा तब यह परमात्मा बिलकुल कोई नाम नहीं है। वह छाया की तरह उनके पीछे लगी रहती थी। तुम्हारा होगा। यह तुम्हारी आत्मा होगा। मगर इससे मिलने के छाया की तरह...यही तो राधा होने का ढंग है। अच्छा किया कि लिए गोपी की भावदशा चाहिए। नाम नहीं लिया। नाम तो बाद में दिया, बहुत बाद में-मध्ययुग तुझे न देख सकूँ मैं तो कुछ मलाल नहीं में। कवियों ने नाम दिया क्योंकि कवि को बिना नाम दिए न | यही बहुत है कि तू मुझको देख सकता है चलेगा। नाम लेकिन बड़ा प्यारा दिया। प्रतीकात्मक है राधा। दार्शनिक तो कहता है, मुझे परमात्मा को देखना है। धारा के विपरीत-राधा। धारा को उल्टा कर लो तो राधा। जैसे इसलिए तो हम दर्शनशास्त्र कहते हैं दार्शनिक की खोज गंगा गंगोत्री की तरफ बहने लगे तो राधा हो गई। को—देखने की चेष्टा। भक्त कहता है, मैं तुझे न देख सकू तो मूलस्रोत की तरफ बहने लगे तो गोपी-भाव का जन्म हुआ। कुछ मलाल नहीं। जब अपना नाम भी भूल जाए तो राधा का जन्म हुआ। जब तुझे न देख सकूँ मैं तो कुछ मलाल नहीं अपना अलग होने का कोई खयाल ही न रह गया, कृष्ण की यही बहुत है कि तू मुझको देख सकता है छाया बन गए। जहां जाने लगे वे...छाया क्या करे? छोड़ भी यह क्या कम है कि तेरी आंख मुझ पर पड़ रही है? हो गई नहीं सकती पीछा। छुड़ाना भी चाहें कृष्ण, तो भी पीछा नहीं | बात। मैं अंधा हूं, मैं नासमझ हूं, मैं भटका हूं, फिक्र छोड़-तो छोड़ती। जब कृष्ण मथुरा से द्वारका चले गए तो और सब तो | कोई मलाल नहीं। तेरी दृष्टि मुझ पर पड़ रही है, बस बहुत। छूट गए होंगे, सिर्फ राधा साथ गई होगी। छाया साथ गई होगी। जैसे सूरज निकला, अंधा न देख सके सूरज को, इससे क्या छाया को तो छोड़ोगे कैसे? फर्क पड़ता है? सरज तो अंधे को नहाए जा रहा है। सरज की तो रास गहन होता है तो पहले गोपी का जन्म होता है। फिर गोपी किरण-किरण अंधे को नहाए जा रही है। धीरे-धीरे छाया हो जाती है। गोपी की पार्थिवता खो जाती है। दार्शनिक और भक्त का यही भेद है। ज्ञानी कहता है, परमात्मा सिर्फ प्रकाशरूप रह जाती है। अस्तित्व मात्र। और तब किसी को देखना है। भक्त कहता है, परमात्मा मझे देख ले। भी क्षण पतिंगा ले लेगा आखिरी छलांग शमा में। डूब जाएगा अब तुम्हें एक रहस्य की बात खयाल में ले लेनी चाहिए। और एक हो जाएगा। | गोपी का अर्थ होता है स्त्रैण चित्त। स्त्री का चित्त चाहता है प्रेमी यही मेरा मतलब था, जो हुआ। गोपियों का भाव भर गया, / | उसे देख ले। पुरुष का चित्त चाहता है प्रेयसी को देखे। प्रेयसी गोपी होने की धारणा बनी-बस, कृष्ण की तरफ पहला कदम चाहती है पुरुष देख ले। उठा। गोपी की आकांक्षा क्या है ? हजारों गोपियां हैं। कृष्ण की इसलिए तुम्हें बड़ी हैरानी होगी। मनोवैज्ञानिक बड़े चिंतन में -500 Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340155
Book TitleJinsutra Lecture 55 Aaj Laharo me Nimantran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size52 MB
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