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________________ जिन सूत्र भाग : 2 रुष्ट न हुए तो ही सम्हल पाएगी। और बोकोजू कहता है, वही बात उसके जीवन को तो जो व्यर्थ की बातें हैं उनके कारण हम रुष्ट होते हैं. अपने को बदलनेवाली बन गई। जो चीज टट गई. उसने सोचा. समय आ बिगाड़ते हैं। और जो सार्थक बातें हैं, रुष्ट होकर उन बातों को | गया था। जो साथी छूट गए। उसने सोचा, समय आ गया था। बिगाड़ लेते हैं। जो प्रियजन चल बसे, उसने सोचा, समय आ गया था। कोई क्रोध में कब कौन आदमी सम्यक व्यवहार कर पाया? रुष्ट | नाराज हो गया तो उसने समझा, समय आ गया था। बोकोजू ने होकर आदमी तो मदांध हो जाता है। उस अंधेपन में कौन ठीक | कहा कि यह बात मेरे लिए सूत्र बन गई। यह अहर्निश मेरे मन में चल पाया? जितनी कठिन समस्या हो सामने, उतनी ही शांत रहने लगा कि वही होता है, जिसका समय आ गया था। चित्त की अवस्था चाहिए. तो ही तम उसे हल कर पाओगे। धीरे-धीरे-धीरे कोई भी चीज फिर शोकाकल न करती। लोग कहते हैं बड़ी समस्या में उलझा हआ हूं इसलिए बड़ा | '...अति शोकाकुल होना, अत्यंत भयभीत होना, ये कापोत बेचैन हूं। बेचैन हो तो समस्या सुलझेगी कैसे? सुलझाएगा | लेश्या के लक्षण हैं।' कौन? यह तो तुम बड़ा उलटा कर रहे हो। जब कोई समस्या न | हिंदू शास्त्रों में वचन है : 'साहसे श्री वसति।' साहस में श्री हो तब बेचैन हो लेना, कोई हर्जा नहीं। जब समस्या हो तब तो | बसती है, श्रेय बसता, श्रेयस बसता-अभय में। बड़े चैन में हो जाओ। तब तो बड़े शांत हो जाओ क्योंकि हल | __जीवन को साहस से पकड़ो। ये कंपते हुए हाथ बंद करो। ये तुम्हें करना है। शांत हृदय से हल आ सकेगा। हाथ व्यर्थ कंप रहे हैं। इन हाथों के कंपने के कारण तुम जीवन पर 'दोष लगाना, निंदा करना, अति शोकाकुल हो जाना...।' पकड़ ही नहीं उठा पाते। तुम जीवन को सम्हाल ही नहीं पाते। छोटी-छोटी चीजों पर-फाउंटेनपेन ठीक नहीं चल रहा, | तुम्हारे भय के कारण ही यह चेतना की लौ कंपती जाती है। ये खर्र-खर्र की आवाज कर रहा है, शोकाकुल हो गए। अपने झकोरे तुम्हारे भय से आते हैं, किसी और पवन से नहीं। व्यवहार को जांचते रहो, देखते रहो।। और जब तक तुम इन तीन पर्दो के पार न हो जाओ तब तक बोकोजू झेन फकीर हुआ; वह जब अपने गुरु के पास था, | तुम्हें सुकून, शांति का कोई अनुभव न होगा। छोटा बच्चा था, उसका काम था गुरु का कमरा साफ करना। सुकून-ए-दिल जहाने-बेस-ओ-कम में ढूंढने वाले कमरा साफ कर रहा था कि गुरु के पास एक बड़ी बहुमूल्य मूर्ति यहां हर चीज मिलती है सुकून-ए-दिल नहीं मिलता थी, बड़ी बहुमूल्य मूर्ति थी बुद्ध की, वह गिर गई। वह चकनाचूर यहां हृदय की शांति नहीं मिलती-इस संसार में। और यह हो गई। वह बहुत घबड़ाया। गुरु को उस मूर्ति से बड़ा लगाव जो संसार तुम जानते हो, इन तीन पर्यों में निर्मित है: कृष्ण है। वह रोज़ दो फूल उस मूर्ति के चरणों में चढ़ा जाता है। और लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या। इनके पार धर्म का सदियों पुरानी मूर्ति है। गुरु के गुरु के पास थी, और गुरु के गुरु जगत शुरू होता है। के पास थी। और पीढी दर पीढी वसीयत की तरह मिली है। यह 'त्याग, कार्य-अकार्य का ज्ञान, श्रेय-अश्रेय का विवेक, क्या हो गया? सबके प्रति समभाव, दया, दान में प्रवत्ति. ये पीत या तेजो लेश्या वह घबड़ा ही रहा था कि तभी गुरु कमरे में आ गया। तो उसने के लक्षण हैं।' मूर्ति अपने दोनों हाथों के पीछे छिपा ली और उसने गुरु से कहा, 'कार्य-अकार्य का ज्ञान'-क्या करने योग्य है, क्या करने एक बात पूछनी है। जब कोई आदमी मरता है तो क्यों मरता है? | योग्य नहीं है। जो भी करते हो सोचकर करो, तो उसके गुरु ने कहा, उसका समय आ गया। तो उसने कहा कि जो न करने से चल जाए उसे करो मत। जिसके किए चल ही न यह आपकी मूर्ति का समय आ गया था। सके, उसी को करो। संरक्षित करो अपनी ऊर्जा को, व्यर्थ मत गुरु हंसा और उसने कहा, जो तू मुझे समझा रहा है, अपने गंवाओ। इस ऊर्जा से हीरे खरीदे जा सकते हैं, तुम जीवन में याद रखना। क्योंकि तेरे जीवन में बहुत मूर्तियों का कंकड़-पत्थरों पर गंवा रहे हो। समय आएगा। जब टूटे तो याद रखना, समय आ गया था। कार्य-अकार्य का ज्ञान'—क्या है करने योग्य ? जिससे Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340154
Book TitleJinsutra Lecture 54 Shat Pardo ki Oat me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size43 MB
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