SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जिन सूत्र भाग: 2 aanimamalinilaianimlanawwamanawanRail MHI पाप और अपराध में यही फर्क है। पाप का अर्थ है, तुम्हें जो मिल गए हैं। करना था, वह भीतर तुमने कर लिया। अभी दूसरे तक उसके | सोवियत रूस में किरलियान फोटोग्राफी के विकास ने बड़ी परिणाम नहीं पहुंचे। परिणाम पहुंच जाएं तो अपराध भी हो | हैरानी की बात खोज निकाली है कि जो तुम्हारे भीतर चेतना की जाएगा। अदालत अपराध को पकडती है. पाप को नहीं पकड | दशा होती है, ठीक वैसा आभामंडल तुम्हारे मस्तिष्क के सकती। पाप तो मन के भीतर है। अपराध तो तब है, जब मन | आसपास होता है। और किरलियान की खोज महावीर से बड़ी का विष बाहर पहुंच गया और उसके परिणाम शुरू हो गए। और मेल खाती है। जिस व्यक्ति के जीवन में हिंसा के भाव सरलता बाह्य जगत में तरंगें उठने लगीं। तब पुलिस पकड़ सकती है। से उठते हैं, उसके चेहरे के पास एक काला वर्तुल...। तब अदालत पकड़ सकती है। - संतों के चित्रों में तुमने प्रभामंडल बना देखा है, ऑरा बना देखा कानून तुम्हें तब पकड़ता है, जब पाप अपराध बन जाता है। है। वह एकदम कवि की कल्पना नहीं है-अब तो नहीं है। लेकिन महावीर कहते हैं, धर्म के लिए उतनी देर तक रुकना किरलियान की खोज के बाद तो वह कवि की कल्पना बड़ा सत्य आवश्यक नहीं है। जीवन की परम अदालत में तो हो ही गई साबित हुई। किरलियान की खोज ने तो यह सिद्ध किया कि जो बात। तुमने सोचा कि हो गई। नहीं किया, क्योंकि करने में कैमरा हजारों साल बाद पकड़ पाया, वह कवि की सूक्ष्म मनीषा बाधाएं हैं, कठिनाइयां हैं, सीमाएं हैं। करना महंगा सौदा हो | ने बहुत पहले पकड़ लिया था। ऋषियों की मनीषा ने बहुत पहले सकता है। सोच-विचार करके तुम रुक गए। होशियार आदमी | देख लिया था। हो, चालाक आदमी हो, मुस्कुराकर गुजर गए, लेकिन भीतर जब तुम्हारी दृष्टि साफ होने लगती है तो जब तुम्हारे पास कोई सोच लिया गोली मार दूं। पर जहां तक धर्म का संबंध है, बात आता है, तो तत्क्षण तुम्हें उसके चेहरे के आसपास विशिष्ट रंगों हो गई: क्योंकि तुम्हारी कृष्ण लेश्या मजबत हो गई। के झलकाव दिखाई पड़ते हैं। अगर हिंसक व्यक्ति है, लोभी कृष्ण लेश्या को मजबूत करना पाप है।। व्यक्ति है, क्रोधी व्यक्ति है, मद-मत्सर, अहंकार से भरा व्यक्ति कृष्ण लेश्या को क्षीण करना पुण्य है। है तो उसके चेहरे के आसपास एक काला वर्तुल होता है। शुक्ल लेश्या को मजबूत करना पुण्य है। और शुक्ल लेश्या | अब तो इसके फोटोग्राफ भी लिए जा सकते हैं। क्योंकि के भी पार उठ जाना, पाप और पुण्य दोनों के पार चले जाना | किरलियान ने जो सूक्ष्मतम कैमरे विकसित किए हैं, उन्होंने मुक्ति है, निर्वाण है। चमत्कार कर दिया। और ऐसा वर्तुल लोभी, हिंसक, अहंकारी, जब तुम्हारे मन में पाप का विचार उठता है, तब तुम दूसरे का क्रोधी के आसपास होता है, और ठीक ऐसा ही वर्तुल जब नुकसान करना चाहते हो—अपने छोटे-मोटे लाभ के लिए। आदमी मरने के करीब होता है, तब भी होता है। वह भी पक्का नहीं है कि होगा। लेकिन यह संभव कैसे हो पाता जो आदमी मरने के करीब है, किरलियान कहता है, छह महीने है? दुनिया में इतने युद्ध, इतनी हिंसा, इतनी हत्याएं, इतनी पहले अब घोषणा की जा सकती है कि यह आदमी मर जाएगा। आत्महत्याएं, छोटी-छोटी बात पर कलह, यह संभव कैसे हो क्योंकि छह महीने पहले उसके चेहरे के आसपास मृत्यु घटना पाता है? क्या लोग बिलकुल अंधे हैं? क्या लोगों को शुरू हो जाती है। जो छह महीने बाद उसके हृदय में घटेगी, वह बिलकुल पता नहीं चलता कि वे क्या कर रहे हैं? क्या लोगों को उसके आभामंडल में पहले घट जाती है। मूल्यों का कोई भी बोध नहीं है? इन दोनों का जोड़ खयाल में लेने जैसा है। इसका अर्थ हुआ, बोध हो नहीं सकता इस काले पर्दे के कारण, जो आंख पर पड़ा जो काला मंडल है हिंसा का, अहंकार का, क्रोध का, मत्सर का, है। महावीर कहते हैं, तुम अंधे नहीं हो, सिर्फ आंख पर पर्दा है। मद का, वही मृत्यु का मंडल भी है। इसका अर्थ हुआ, जो काले बुर्का ओढ़े हुए हो-काला बुर्का; कृष्ण लेश्या का। मंडल के साथ जी रहा है, वह जी ही नहीं रहा। वह किसी अर्थ में हमारे छोटे-छोटे कृत्य में हमारी लेश्या प्रगट होती है। तुम उसे मरा हुआ है। उसके जीवन का उन्मेष पूरा नहीं होगा। उसके छिपा नहीं सकते। और अब तो इसके लिए वैज्ञानिक आधार भी जीवन की लहर, तरंग, पूरी नहीं होगी-दबी-दबी, 4181 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340152
Book TitleJinsutra Lecture 52 Chah Pathik aur Chah Leshyaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy