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________________ छह पथिक और छह लेश्याएं यह आदमी अंधा है, जिसे वृक्ष में कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा तुम अंधे हो क्योंकि कृष्ण लेश्या की तुम अब तक सम्हाल है। सिर्फ अपनी भूख को तृप्त करने का उपाय दिखाई पड़ रहा करते रहे। उसे खाद दिया, पानी दिया। उस पर्दे में कभी छेद भी है। और अपनी भूख की तृप्ति के लिए, जो फिर लौट आनेवाली हुआ तो जल्दी से तुमने रफू किया, सुधार लिया। तुम जब-जब है, कोई शाश्वत तृप्ति हो जानेवाली नहीं है, वह इस वृक्ष को | दूसरे पर नाराज होते हो, तब-तब तुम खयाल करना, किसी | जड़मल से काट देने के लिए उत्सुक हो गया। यह आदमी अर्थों में वह तम्हारे कृष्ण लेश्या के पर्दे पर चोट कर रहा है। बिलकुल अंधा है। ऐसे आदमी तुम्हें सब तरफ मिलेंगे। ऐसा तुम्हारे अहंकार को चोट लगती है, तुम नाराज हो जाते हो। आदमी तुम्हें स्वयं के भीतर भी मिलेगा। कल मैं एक कहानी पढ़ रहा था। अमरीका में टेक्सास प्रांत के कितनी बार नहीं तुमने अपने छोटे-से सुख के लिए दूसरे को लोग बड़े अभद्र, हिंसक समझे जाते हैं। एक सिनेमागृह में एक विनष्ट तक कर देने की योजना नहीं बना ली। कितनी बार, जो टेक्सास प्रांत का आदमी अपनी बंदूक सम्हाले इंटरवल के बाद मिलनेवाला था वह ना-कुछ था, लेकिन तुमने दूसरे की हत्या | वापस लौटा। बाहर गया होगा। अपनी सीट पर उसने किसी कर दी; कम से कम हत्या का विचार किया। जमीन के लिए, दो आदमी को बैठे देखा। उसने पूछा-टेक्सास के आदमी इंच जमीन के लिए; धन के लिए, पद के लिए, तुमने प्रतिस्पर्धा ने—कि महानुभाव! आपको पता है, यह सीट मेरी है। वह जो की। दूसरे की गर्दन को काट देना चाहा। इसकी बिलकुल भी | आदमी बैठा था, मजाक में ही कहा, थी आपकी। अब तो मैं चिंता न की, कि जो मिलेगा वह ना-कुछ है। और जो तुम बैठा हूं। सीट किसी की होती है? विनष्ट कर रहे हो, उसे बनाना तुम्हारे हाथ में नहीं। तुम एक बस, उसने बंदूक तानी और गोली मार दी। भीड़ इकट्ठी हो गई जीवन की समाप्ति कर रहे हो। एक परम घटना के विनाश का | और उसने लोगों से कहा कि इसी तरह के लोगों के कारण कारण बन रहे हो। एक दीया बुझा रहे हो। एक तुम जैसा ही टेक्सास के लोग बदनाम हैं। प्राणवंत, तुम जैसा ही परमात्मा को सम्हाले हुए कोई चल रहा है, पर बहुत बार तुम्हारे मन में भी—चाहे तुमने गोली न मारी हो, वसर को विनष्ट कर रहे हो। और तम्हें कछ भी यह कहानी अतिशयोक्तिपर्ण मालम होती है. लेकिन बहत बार मिलनेवाला नहीं। तुम्हें जो मिलेगा, वह थोड़ी-सी क्षणभंगुर की गोली मार देने का मन तो हो ही गया है। बहुत छोटी बातों तृप्ति है। घड़ीभर बाद फिर भूख लग आएगी। | पर—कि कोई तुम्हारी सीट पर बैठ गया है-गोली मार देने का कृष्ण लेश्या से भरा आदमी महत हिंसा से भरा होता है। जब मन तो हो ही गया है। भी तुम्हारे मन में अपने सुख के लिए दूसरे को दुख देने तक की महावीर कहते हैं, मन भी हो गया तो बात हो गई। तैयारी हो जाए तो तत्क्षण समझ लेना, कृष्ण लेश्या में दबे हो। इस कहानी में वे यह नहीं कह रहे हैं कि पहले आदमी ने वृक्ष पर्दा पड़ा। इस पर्दे को अगर तुम बार-बार भोजन दिए जाओगे तोड़ा; सिर्फ सोचा। तो यह मजबूत होता चला जाएगा। | '...भूख लगी, फल खाने की इच्छा हुई, वे मन ही मन जागना। जब ऐसा मौका आए कि अपने छोटे सुख के लिए विचार करने लगे।' / दसरे को दख देने का खयाल उठे. तब सम्हलना। तब अपने ऐसा कछ किया नहीं है अभी: ऐसी भाव-तरंग आयी, ऐसा हाथ को खींच लेना। क्योंकि असली सवाल यह नहीं है कि | विचार आया। लेकिन महावीर कहते हैं, विचार आ गया तो बात तमने दूसरे को दुख दिया या नहीं दिया: असली सवाल यह है हो गई। जहां तक तुम्हारा संबंध है, हो गई। जहां तक वृक्ष का | कि दूसरे को दुख देने में तुमने अपनी कृष्ण लेश्या पर पानी | संबंध है, अभी नहीं हुई; लेकिन तुम्हारा संबंध है, वहां तक तो सींचा। उसकी जड़ों को मजबूत किया। उसी में तुम्हारा | हो गई। आत्मतत्व खो गया है। उसी में खो गया जीवन का अभिप्राय। जब तुम ने सोचा किसी को मार डालें, ऐसी मन में एक उसी से पता नहीं चलता कि जीवन में कुछ अर्थ भी है ? पता नहीं | कल्पना भी उठ गई तो बात हो गई। दूसरा अभी मारा नहीं गया। चलता कौन हूँ मैं? कहां जा रहा हूं? क्यों जा रहा हूं? अपराध अभी नहीं हुआ, पाप हो गया। 417 ___ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340152
Book TitleJinsutra Lecture 52 Chah Pathik aur Chah Leshyaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size46 MB
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