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________________ गोशालकः एक अस्वीकृत तीर्थंकर तो एक बात तो निश्चित है कि गोशालक ठीक विपरीत ध्रुव की चरित्र का अर्थ ठीक से समझ लेना। चरित्र का अर्थ होता है: भांति महावीर के सामने खड़ा हुआ होगा। दावा भी उसका है कि अभ्यासजन्य जीवन की शैली। एक आदमी चेष्टा कर-करके, कुछ जाना नहीं जा सकता। अज्ञान का इतना बड़ा समर्थक कभी चेष्टा कर-करके रोज पांच बजे सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ आता है। कोई हुआ ही नहीं। तो जैनों को सबसे ज्यादा कष्ट इस आदमी अभ्यास बना लेता है। ऐसा जड़ अभ्यास बना लेता है कि किसी से रहा होगा। इसको जैन कहते हैं, उदंड, कलहप्रिय, विवादी। दिन अगर पड़ा भी रहना चाहे बिस्तर पर, तो भी पड़ा नहीं रह यह जैनों की व्याख्या है। यह कहलप्रिय जैनों को मालूम हुआ सकता। पुरानी आदत उसे उठाकर खड़ाकर देती है। होगा। क्योंकि जैन दावा कर रहे थे कि हमारा गुरु सर्वज्ञ है। इसका अर्थ हुआ कि चरित्र केवल अभ्यास है, आदत है। जो और यह आदमी कह रहा था सर्वज्ञ? अल्पज्ञ होना भी संभव व्यक्ति बोधपूर्वक जीता है, वह चरित्र से नहीं जीता, वह बोध से नहीं, अज्ञ होना भी संभव नहीं। जीता है। आदत से नहीं जीता, सहजता से जीता है। आज सुबह _ और इसकी बात में वजन है। इसकी बात में गहराई है। तो यह | अगर उठने का लगता है उसे, आज का ब्रह्ममुहूर्त अगर उसे विवादी मालूम पड़ा होगा। यह उइंड मालूम पड़ा होगा। लेकिन | जगाता है तो जगता है। लेकिन आज की घड़ी अगर सोने जैसी साथ-साथ उन्हें स्वीकार तो करना ही पड़ा कि इसके पास लगती है तो सोता है। विचक्षण प्रतिभा है। प्रतिपल चीजें बदलती रहती हैं। कभी कोई स्वस्थ है, कभी प्रतिभा तो थी। बिना सिद्धांत के लोग आकर्षित हुए। और अस्वस्थ है। कभी वर्षा है, कभी शीत है, कभी ताप है। कभी इस आदमी के पास कोई चरित्र भी नहीं था। यह भी थोड़ा सोच कोई जवान है, कभी कोई बूढ़ा है। कभी कोई रात देर से सोया लेने जैसा है। | है, कभी कोई जल्दी सोया है। कभी दिन में बहुत श्रम किया और गोशालक के पास कोई लोकमान्य चरित्र नहीं था कि कोई कह ज्यादा सोने की जरूरत है। और कभी दिन में उतना श्रम नहीं सके कि इस आदमी की जीवन-व्यवस्था अनुशासन की है, किया, कम सोने से चल जाएगा। सत्य की है, अहिंसा की है, योग की है, ध्यान की है; ऐसा कहने तो जो व्यक्ति बोध से जीता है, वह तो प्रतिपल तय करता है का भी कोई कारण नहीं था। जिसको हम चरित्रहीन कहें, ऐसा कि कैसे जीऊं। जीना प्रतिपल तय होता है। जो व्यक्ति आदत से व्यक्ति है गोशालक। जीता है, वह प्रतिपल तय नहीं करता। तय तो उसने सदा के लिए लेकिन तुम समझ सकते हो, आधुनिक युग में मनोविज्ञान ने कर लिया है। उसने तो लकीर खींच दी है चरित्र की। अब एक बड़ी ऊंची खोज की है, बड़ी गहरी खोज की है कि जो इस उसका अनुगमन करना है। विल्हेम रेक कहता है कि चरित्रवान जगत में सर्वाधिक चरित्रवान लोग होते हैं, वे साधारण अर्थों में व्यक्ति—जिनको हम चरित्रवान कहते हैं—अक्सर मुर्दा चरित्रहीन होते हैं। जीसस भी चरित्रहीन मालूम पड़े लोगों को। व्यक्ति हैं, जो मर चुके। अब तो सिर्फ मरी हुई लाश चल रही इसीलिए तो सूली लगी। सुकरात पर यही तो जुर्म था कि वह है। एक नियम जिंदा हो गया है, आदमी तो मर चुका। आत्मा तो खुद तो भ्रष्ट है ही, दूसरों को भ्रष्ट कर रहा है। उसकी बातें | मर चुकी, सिद्धांत जिंदा हो गया है। प्रभावशाली हैं और दूसरे लोग भी उसकी बातों में आकर भ्रष्ट | गोशालक का कोई चरित्र नहीं है। विल्हेम रेक गोशालक से हो रहे हैं। मिल जाता तो तत्क्षण सिर झुकाकर नमस्कार करता। इस सदी का एक बहुत बड़ा विचारक विल्हेम रेक अमरीका के जैन नाराज हैं। क्योंकि जैनों का तो सारा आधार चरित्र है. कारागृह में मरा। अमरीका में उसे जबर्दस्ती पागल करार दे दिया अभ्यासजन्य। इंच-इंच हिसाब बांधकर चलना है। जरा-सी गया। क्योंकि वह कुछ ऐसी बातें कह रहा था, जो नीतिवादियों | भूल-चूक न हो जाए। सिद्धांत से यहां-वहां चित्त न हो जाए। के बड़े विपरीत थीं। उसके बुनियादी सिद्धांतों में एक था, | सब सम्हालकर लीक पर चलना है। इसलिए जैन मुनि से मुर्दा जिसका गोशालक से मेल हो सकता है। वह कहता था, चरित्र | आदमी तुम दुनिया में दूसरा नहीं खोज सकते। वह बिलकुल केवल उन्हीं के पास होता है, जो मुर्दा होते हैं। मरा हुआ है। उसका कोई भविष्य नहीं है। उसका सिर्फ अतीत ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340151
Book TitleJinsutra Lecture 51 Goshalak Ek Aswikrut Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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