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________________ जिन सूत्र भाग: 2 बनाया; हमें मालूम है। लेकिन उन दोनों में एक बात समान है। कि जानते हैं। जैनों का जो सबसे बड़ा आग्रह है, वह खयाल में दोनों कहते हैं, हमें मालूम है। रखो। वह है कि जैन साधना-पद्धति से गुजरकर जो व्यक्ति गोशालक कहता है, किसको पता? कौन जानता है? कैसे परम स्थिति को पहुंचता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है। यह जैनों का कोई जान सकता है? इतना निश्चित है, कभी अगर बनाया हो सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत है-सर्वज्ञ। किसी ने, तो हम तो मौजूद न थे। क्योंकि हम तो बनाने के बाद तो गोशालक से ठीक बिलकुल विपरीत हो गई बात। ही मौजूद हो सकते हैं। हम तो बनाये गए। हम तो मौजूद न थे, गोशालक कहता है जो जानता है, वह तो जानता है कि कुछ भी जब बनाया गया होगा। तो अब उपाय कहां है जानने का, कि नहीं जानता। गोशालक से सुकरात की दोस्ती बन जाती है। किसने बनाया? और अगर किसी ने बनाया तो जिसने बनाया गोशालक से सार्च और कामू की और काफ्का की दोस्ती भी बन वह तो मौजूद ही रहा होगा बनाने के पहले। तो कुछ तो था ही। जाती है। नीत्से भी गोशालक के पास बैठता तो मैत्री अनुभव प्रश्न हल नहीं होता। बनानेवाले को किसने बनाया? करता। लेकिन जैन तो कैसे मैत्री अनुभव कर सकते हैं? यह तो गोशालक कहता है, उत्तर नहीं है, प्रश्न व्यर्थ है। प्रश्न निरर्थक | उनसे ठीक विपरीत है। है। तुम कृपा करो और प्रश्न को गिर जाने दो। तुम जरा देखो कि जैनों का तो आग्रह यही है कि जब कोई व्यक्ति परम तुमने एक ऐसा प्रश्न पूछ लिया है, जिसके कारण तुम झंझट में जागरूकता को उपलब्ध होता है तो वह सर्वज्ञ हो जाता है। सब पड़ोगे। या तो आस्तिक बन जाओगे या नास्तिक बन जाओगे। जानता है। तीनों काल जानता है। जो हुआ, वह जानता है। जो दोनों हालत में तुम जीवन के विराट को इंकार कर दोगे। दोनों | हो रहा है, वह जानता है। जो होगा, वह जानता है। उसके लिए हालत में जीवन का रहस्य टूट जाएगा। तुम बीच में सिद्धांत की कुछ भी अज्ञात नहीं रह जाता। एक दीवाल खड़ी कर लोगे। दोनों हालत में तुम अपने अज्ञान इसका अर्थ हुआ कि जो व्यक्ति जैनों के हिसाब से समाधि को को छिपा लोगे। उपलब्ध होता है, उसके लिए कुछ रहस्य नहीं रह जाता। सब गोशालक कहता है, कुछ पता नहीं बनाया, नहीं बनाया! | रहस्य खुल गया। पोथी पूरी खोलकर देख ली, पढ़ ली।। सच तो यह है, यह भी पक्का नहीं है कि है भी? हो सकता है | गोशालक कहता है, पोथी का पहला पाठ ही पढ़ना असंभव सपना ही हो। है। पोथी खुलती ही नहीं। इसमें पहली लकीर क, ख, ग भी तो गोशालक कोई दर्शन नहीं देता, एक दृष्टि देता है। उत्तर | समझ में नहीं आते। तो सर्वज्ञ का दावा तो व्यर्थ है। सर्वज्ञता तो देखने की एक समझ देता है। इसलिए परंपरा हो नहीं सकती। यहां तो हम उसी को जाननेवाला कहेंगे, जिसने नहीं बनी। और ऐसे व्यक्ति के पीछे कैसे अनुयायी इकट्ठे हों? | जान लिया कि कुछ जानने का उपाय नहीं है। हां, कुछ लोग गोशालक जिंदा था तो इकट्ठे हो गए थे। वह चूंकि यह सर्वज्ञता से बिलकुल विपरीत दृष्टि थी, जैन बड़े उसके व्यक्तित्व की गरिमा रही होगी। उसके उत्तर तो थे ही नहीं नाराज हुए। जैन जितने नाराज गोशालक से हुए, किसी से भी कुछ। कुछ हिम्मतवर लोग उसके साथ हो लिए होंगे। लेकिन | नहीं हुए। वह चमत्कार रहा होगा उसके अपने होने का; जिसको करिश्मा इससे एक बात तो यह भी सिद्ध होती है कि महावीर के सामने. कहते हैं। वह उसका प्रसाद रहा होगा। | विशेष कर महावीर के अनुयायियों के सामने जो सबसे बड़ा इसलिए जैन शास्त्र विरोध भी करते हैं और उसे विलक्षण भी प्रतिद्वंद्वी रहा होगा वह गोशालक था। और भी बड़े विचारक कहते हैं। विलक्षण तो पुरुष था ही। क्योंकि बिना सिद्धांत के, मौजूद थे। बौद्ध ग्रंथों में छह विचारकों के नाम उल्लेख किए गए बिना उत्तर दिए अगर लोग आकर्षित हो गए थे तो आदमी में कुछ हैं-अजित केशकंबल, पूर्णकाश्यप, प्रबुद्ध कात्यायन, संजय जादू तो था ही। वह जादू बौद्धिक नहीं था, वह जादू व्यक्तित्व वेलट्ठीपुत्त, मक्खली गोशाल और निगंठनाथ पुत्त। निगंठनाथ का था, अस्तित्व का था। पुत्त महावीर का नाम है। लेकिन इनमें से किसी का भी विरोध जैन शास्त्र उसके विरोध में हैं, क्योंकि जैन शास्त्र तो जानते हैं जैन शास्त्रों में नहीं है। सिर्फ गोशालक का विरोध है। . 394 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340151
Book TitleJinsutra Lecture 51 Goshalak Ek Aswikrut Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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