SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P गोशालकः एक अस्वीकृत तीर्थंकर तिनका भी नहीं। डूबने का खतरा है। लेकिन उस खतरे और जोखिम से गुजरे तो असहाय अवस्था तो नकारात्मक है। अशरण अवस्था | बिना कोई परम मंजिल तक पहुंचता नहीं है। तो अशरण। विधायक है। अशरण का अर्थ कि मेरे पास अपने पैर हैं। अब डर यही है कि अशरण का तुम यह अर्थ मत समझ लेना अशरण का अर्थ हुआ कि तैरूंगा, नाव चाही ही नहीं, तिनके का कि किसी से कुछ सीखना ही नहीं है। तैरना तो सीखना है। वह कोई सवाल ही नहीं। किसी तैरनेवाले से सीख लो। जिसको तुमने सागर में तैरते देखा जो अशरण भाव को उपलब्ध हुआ है, उसे तुम नाव बताओ हो, उससे सीख लो। फिर तैरकर ही जाना। फिर तैरनेवाले के भी, तो वह कहेगा कि नहीं, क्षमा करें। धन्यवाद! हम तैरकर | | कंधे का सहारा मत मांगना। निकल जाएंगे। क्योंकि कोई बाहर का सहारा क्या लेना! जब | इसलिए महावीर कहते हैं, शिष्य तो बनो, लेकिन शरण को तैर सकते हैं तो नाव में क्या बैठना! धन्यवाद! बड़ी कृपा, मत गहो। शरणागति नहीं। सीखने के लिए तैयारी रखो, मन को आपने याद किया। लेकिन हम तैरकर चले जाएंगे। बंद मत करो। सीखते ही, जो जान लिया उसका उपयोग करो। अशरण का अर्थ है तैरने पर बल।। जो जान लिया उसके सहारे चलो। और कोई सहारा मत मांगो। असहाय का अर्थ है : खोजते थे नाव, मिलता नहीं तिनका। | अपने सहारे जो चलता है, धीरे-धीरे बलशाली होता जाता है। भ्रम रखने को भी कुछ आसरा नहीं रहा। तो असहाय अवस्था में धीरे-धीरे उसके भीतर से भय गिर जाते हैं, असुरक्षा गिर जाती आदमी रोता है, चीखता-चिल्लाता है, पुकारता है। अक्सर है, शंकाएं गिर जाती है। और एक, जिसको गुरजिएफ ने कहा असहाय अवस्था में आदमी प्रार्थना करने लगता है, पूजा करने है, आत्मिक केंद्रीकरण, क्रिस्टलाइजेशन उपलब्ध होता है। लगता है। भगवान की याद करने लगता है। यह भगवान केवल आत्मश्रद्धा ही अंततः आत्मा को पाने का द्वार बनती है। भय पर आधारित है। आत्मश्रद्धा पर बल देने के लिए महावीर कहते हैं, अशरण अशरण भावना में आदमी में ध्यान जगता है। और अशरण | भावना। लेकिन जिन्होंने आत्मा को पा लिया हो उनसे सीखने भावना में आदमी अपने बल पर इस भांति आश्वस्त हो जाता है, | को बहुत कुछ है। सच तो यह है, जो उनकी शरण गह लेते हैं आत्मविश्वास ऐसा सजग हो जाता है, स्वयं पर श्रद्धा ऐसी गहन उनको सीखने को कुछ भी नहीं है। क्योंकि वे कहते हैं, सीखकर हो जाती है कि सागर कितना ही बड़ा हो, ये दो हाथ सागर से क्या करेंगे? अब आप तो हैं। ज्यादा बड़े मालूम होते हैं। आकाश कितना ही बड़ा हो, ये दो मैंने सुना है एक आदमी अंधा था। उसके आठ लड़के थे, पंख सारे आकाश को पार कर लेंगे, ऐसे भरोसे से भरे होते हैं। आठ बहुएं थीं। चिकित्सकों ने कहा कि तुम्हारी आंख ठीक हो जो व्यक्ति अशरण को उपलब्ध हुआ उसे तुम प्रसन्न पाओगे, सकती है, आपरेशन करना होगा। उसने कहा, क्या करेंगे? नाचता हुआ पाओगे। असहाय को तुम दुखी, परेशान, तलाश फायदा क्या है? मेरी पत्नी के पास दो आंखें हैं, मेरे आठ करता हआ पाओगे। फिर कोई सपना मिल जाए, फिर कोई लड़कों के पास सोलह आंखें हैं, मेरी आठ बहुओं के पास सहारा मिल जाए। सोलह आंखें हैं। ऐसी चौतीस आंखें मुझे उपलब्ध हैं। दो न हुईं महावीर कहते हैं, असहाय मत बनना, अशरण बनना। मेरी, क्या फर्क पड़ता है? असहाय अवस्था में तो हम हैं। इसीलिए हम कहीं भी सहारे लेकिन संयोग की बात! जिस दिन उसने यह इंकार किया उसी खोजते हैं—मंदिर में, मस्जिद में, शास्त्र में, पुराण में, कुरान में, रात घर में आग लग गई। वे चौतीस आंखें भागकर बाहर गुरु में। कोई मिल जाए जो हमें कह दे, कि तुम घबड़ाओ मत। निकल गईं। अंधा चिल्लाता रहा, टटोलता रहा रास्ता। लपटों कहीं ताबीज, गंडा मिल जाए, बांध लें और निश्चित हो जाएं। में जल-भुनकर गिरकर मर गया। मरते वक्त एक ही भाव उसके महावीर कहते हैं, सत्य इतना सस्ता नहीं। खोजना होगा। मन में था, अपनी आंख अगर आज होती... ! जो बाहर कीमत चुकानी होगी। भागकर निकल गए-पत्नी, बेटे, बहुएं, उनको याद आयी तैरना होगा इस विराट झंझावात से भरे सागर में। लहरें हैं, | उसकी, लेकिन बाहर जाकर याद आयी। जब अपने प्राण संकट 409 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibran.org
SR No.340151
Book TitleJinsutra Lecture 51 Goshalak Ek Aswikrut Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy