SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भागः ध्यान का अर्थ है: ऐसी जागरूक चेतना, जो कृत्य के साथ इतनी नहीं है। साक्षी होने में कुछ खर्च नहीं हो रहा है। लेकिन अपना तादात्म्य नहीं करती। जब भूख पीड़ा की तरह चुभे, छाती में गहरी उतरती जाए, राह चलते हो तुम, लेकिन भीतर कोई जागकर देखता रहता है रोआ-रोआं चीखने-चिल्लाने लगे, तब ध्यान रखना कठिन कि मैं नहीं चल रहा हूं, शरीर चल रहा है। मैं तो देख रहा हूं कि होता चला जाएगा। शरीर चल रहा है। महावीर ने उपवास को सिर्फ ध्यान की प्रक्रिया समझा। ऐसी भूख लगती है, भीतर कोई देखता रहता है, भूख मुझे नहीं लगी | घड़ी आती है, जहां भूख अपने प्रचंड वेग में खड़ी होती है कि है, शरीर को लगी है। भोजन किया जाता है, शरीर में भोजन आदमी पागल हो जाए; कि आदमी कुछ भी खा ले; कि चोरी डाला जा रहा है, कोई भीतर जागकर देखता रहता है। तृप्ति हो कर ले, कि हत्या कर दे। जाती है, भूख मिट जाती है, कोई भीतर साक्षी की तरह रेगिस्तान में चलनेवाले लोगों का अनुभव है कि कभी प्यास अवलोकन करता रहता है कि अब भूख मिट गई, शरीर तृप्त है। | ऐसी लग आती है कि आदमी अपनी पेशाब पी जाता है, पानी न लेकिन किसी भी स्थिति में अपने को जोड़ता नहीं कृत्य से। मिले तो। ऊंट की पेशाब पी जाता है, अगर पानी न मिले तो। कृत्य से तोड़ लेने का नाम ध्यान है। ऐसी प्यास लग सकती है रेगिस्तान में कि आदमी को होश ही न चौबीस घंटे कृत्य हो रहे हैं। कुछ न भी करो, खाली बैठे रहो | रह जाए, साक्षी की तो बात और। यह भी खयाल न रहे, मैं क्या | तो भी श्वास चलती है; तो भी कृत्य हो रहा है। तुम कहते हो कि पी रहा हूं। मैं श्वास ले रहा हूं। हालांकि तुमने कभी सोचा नहीं कि इससे ये तो सब सुविधा की बातें हैं कि तुम कहते हो, जल शुद्ध है या ज्यादा झूठी बात क्या होगी, कि तुम कहते हो, मैं श्वास ले रहा | नहीं? छना है या नहीं? ये तो सुविधा की बातें हैं कि तुम कहते हूं। जब श्वास न आएगी तब ले सकोगे? जब रुक जाएगी तब हो कि प्राशुक है? उबाला गया है, या किसी गंदी नाली से भर तुम कहोगे, कोई फिक्र नहीं, मैं तो लेना जारी रखूगा? जो श्वास लाए हो? ये सुविधा की बातें हैं। रेगिस्तान में जब प्यास पकड़ी बाहर गई और न लौटी तो तुम लौटा सकोगे? हो, सामने नाली भी पड़ जाए गंदगी से बहती, तो भी आदमी पी उस वक्त पता चलेगा कि श्वास भी मैं नहीं ले रहा था, श्वास | लेगा। महावीर ने इसको महत्वपूर्ण प्रयोग बनाया। क्योंकि भूख चल रही थी। और चलने की क्रिया के साथ मैंने नाहक ही अपने बड़ी गहरी बात है। सबसे गहरी बात है। को कर्ता की तरह जोड़ लिया था। भूख तुम्हें लगी है? भूख | आदमी के जीवन में दो बातें सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं : एक है तुमने लगाई है? लग रही है, सच है; लेकिन तुम नाहक बीच में | कामवासना और एक है भूखवासना। कामवासना से समाज जुड़ जाते हो। तुम दूर खड़े देख सकते हो। भूख शरीर में जीता है। कामवासना समाज का भोजन है। अगर तुम घटनेवाली घटना है। कामवासना को रोक लो तो तुमने समाज की एक शाखा को तोड़ महावीर ने इसीलिए उपवास पर बड़ा जोर दिया। वह उपवास दिया। अब आगे कोई संतति पैदा न होगी। तुम्हारी कामवासना आत्मदमन के लिए नहीं था; जैसा जैन मुनि करते रहे। महावीर | से तुम्हारे बच्चे जीते हैं। तुम्हारी कामवासना से जीवन जीता है, का उपवास शरीर को पीड़ा देने के लिए नहीं था। महावीर का | संसार चलता है। उपवास तो सिर्फ एक भीतर अवकाश पैदा करने के लिए था कि तो कामवासना संसार के लिए भोजन है। उसके बिना संसार चेतना जागकर देखती रहे। जैसे-जैसे भूख सघन होती जाए, | मरेगा। अगर सभी लोग ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाएं तो संसार वैसे-वैसे संभावना बढ़ती है कि तादात्म्य पैदा हो जाए। जब तत्क्षण रुक जाएगा। भूख बहुत जोर से हो तो तुम भूल ही जाओ कि मैं साक्षी हूं। भूख इसलिए पश्चिम के एक बहुत बड़े विचारक इमेन्युएल कांट ने थोड़ी-थोड़ी लगी हो, भोजन पास में हो, फ्रिज के पास ही बैठे ब्रह्मचर्य को पाप कहा। उसकी बात में बल है। वह कहता है, हो, चौके से सुगंध आ रही है, तब शायद तम ध्यान की बातों का ब्रह्मचर्य तो एक तरह की हिंसा है। तम मजा भी ले लो। तुम कहो, कहां भूख ! मैं तो साक्षी हूं। भूख रोक रहे हो। तो किसी को जिंदा रहकर मारो या पैदा होने से B701 Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340150
Book TitleJinsutra Lecture 50 Dhyanagni se Karm Bhasmibhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy