________________ ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत वे चकित न होंगे, क्योंकि उनकी कोई अपेक्षा नहीं है। क्षण में ही ज्ञान होता है। शायद वे अपने भीतर दोहराएंगे कि देखा, संसार कैसा थिर तो उस फकीर ने कहा कि जब वेदना का बहुत गहरा क्षण हो, है! सब अनित्य है। यहां मित्र भी अपना नहीं। यहां शत्रु भी तब इसे खोलना। यह वेद का सूत्र है। यह वेद है। इसे हर घड़ी पराया नहीं। यहां किसी का भरोसा, गैर-भरोसा करने का कोई में खोल लोगे तो बेकाम है। क्योंकि तुम तैयार ही न होओगे। कारण नहीं। तुम्हारा इससे तालमेल न बैठेगा। तुम जब बिलकुल वेदना में एक बड़ी प्रसिद्ध सूफी कहानी है, एक सम्राट ने अपने सारे जल रहे हो, चिता में बैठे हो और सब तुम्हारे सांसारिक उपाय बुद्धिमानों को बुलाया। और उनसे कहा कि मैं कुछ ऐसा सूत्र व्यर्थ हो जाएं-क्योंकि तुम सम्राट हो, तुम्हारे पास बहुत उपाय चाहता हूं-छोटा हो। बड़े शास्त्र नहीं चाहिए। मुझे फुर्सत भी हैं तो इसको मत खोलना। जब तुम पाओ कि तुम दीन-दरिद्र, नहीं बड़े शास्त्र पढ़ने की—ऐसा सूत्र चाहता हूं, एक वचन में सम्राट नहीं; असहाय-लकड़ी के टुकड़े की तरह सागर में पड़े पूरा हो जाए। और हर घड़ी काम आए। दुख हो कि सुख, जीत तरंगों के हाथ में-कहां ले जाएं, पता नहीं; तब इसे खोलना। हो कि हार, जीवन हो कि मृत्यु, सूत्र काम आए। तो तुम एक | उस वेदना के क्षण में इसका वेद-सूत्र तुम्हारे काम आ जाएगा। ऐसा सूत्र खोज लाओ। सम्राट ने अंगूठी पहन रखी। वर्षों बीत गए। कई दफे खयाल उन्होंने बड़ी मेहनत की, बड़ा विवाद किया। कुछ निष्कर्ष नहीं भी आया–लेकिन शर्त पूरी करनी थी। वचन दिया था तो हो सका। तो उन्होंने कहा कि हम बड़ी मुश्किल में पड़े हैं। बड़ा | खोला नहीं। कई दफे जिज्ञासा भी हुई। फिर सोचा कि खराब न विवाद है, संघर्ष है। कोई निष्कर्ष नहीं हो पाता। अच्छा | हो जाए कहीं। हो....कि हमने सुना है एक सूफी फकीर गांव के बाहर ठहरा है। फिर घड़ी भी आ गई। वर्षों बाद सम्राट हार गया। दश्मन जीत कहते हैं बड़ा प्रज्ञा को उपलब्ध, संबोधि को उपलब्ध व्यक्ति है। गया, उसके राज्य को हड़प लिया। वह भागा एक घोड़े पर, हम उसी के पास चलें। | अपनी जान बचाने को। राज्य तो गया. संगी-साथी भी थोडी देर उस सूफी फकीर ने अपनी अंगूठी पहन रखी थी अंगलि में, | बाद उसे छोड़ दिए। दो-चार सैनिक, उसके रक्षक साथ थे; वे वह निकालकर सम्राट को दे दी और कहा कि इसे पहन लो। इस भी धीरे-धीरे हट गए क्योंकि अब कुछ बचा ही न था तो रक्षा पत्थर के नीचे छोटा-सा कागज रखा है, उसमें सूत्र लिखा हुआ करने का भी कोई सवाल न था। है। वह मेरे गुरु ने मुझे दिया था। मुझे तो जरूरत भी न पड़ी तो दुश्मन पीछा कर रहा है, वह एक पहाड़ी घाटी से भागा जा रहा मैंने तो अभी तक खोलकर देखा भी नहीं। शर्त उन्होंने एक ही | है अपने घोड़े पर। पीछे घोड़ों की आवाजें आ रहीं हैं, टापें सुनाई रखी थी कि जब कछ और उपाय न रह जाए, सब तरफ से पड रहीं हैं। प्राण संकट में हैं। और अचानक उसने पाया कि निरुपाय हो जाओ, तब इसे खोलकर पढ़ना। ऐसी कोई घड़ी न रास्ता समाप्त हो गया। आगे तो भयंकर गड्ड है। लौट भी नहीं आयी। उनकी बड़ी कृपा है। इसलिए मैं तो इसे खोलकर पढ़ा सकता। पीछे दुश्मन पास आ रहा है। आगे जा भी नहीं नहीं लेकिन जरूर इसमें कुछ राज होगा। आप रख लो। लेकिन सकता। एक क्षण को किंकर्तव्यविमूढ़, हतप्रभ खड़ा रह गया! शर्त याद रखना—इसका वचन दे दो कि जब कोई और उपाय न | क्या करे? रह जाएगा, सब तरफ से निरुपाय, असहाय हो जाओगे, तभी याद आयी अचानक, खोली अंगूठी, पत्थर हटाया, निकाला अंतिम घड़ी में इसे खोलना। क्योंकि यह सूत्र बड़ा बहुमूल्य है कागज, उसमें एक छोटा-सा वचन लिखा था H 'दिस टू विल और साधारणतः खोला गया तो अर्थहीन है। बड़ी प्रखर वेदना पास-यह भी बीत जाएगा।' की स्थिति में इसे खोलना। सूत्र को पढ़ते ही मुस्कुराहट आ गई उसे। एक बात खयाल में यह शब्द वेदना-सुनते हो, बड़ा बहुमूल्य है। यह उसी से आयी, सब तो बीत गया-सम्राट न रहा, साम्राज्य गया। सुख बना है, जिससे वेद बना। वेदना के दो अर्थ होते हैं। एक तो बीत गया। तो जब सुख बीत जाता है तो दुख भी थिर तो नहीं हो अर्थ होता है, दुख। और एक अर्थ होता है ज्ञान। गहरे दुख के सकता। शायद सूत्र ठीक ही कहता है। अब करने को भी कुछ 379 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|