________________ C. . COS बाल SS जे इंदियाणं विसया मणुण्णा, न तेसु भावं निसिरे कयाइ। न याऽमणुण्णेसु मणं पि कुज्जा, समाहिकामे समणे तवस्सी।।१२३।। सुविदियजगस्सभावो, निस्संगो निब्भओ निरासो य। वेरग्गभावियमणो, झाणंमि सुनिच्चलो होइ।।१२४।। देहविवित्तं पेच्छइ, अप्पाणं तह य सव्वसंजोगे। देहोवहिवोसग्गं निस्संगो सव्वहा कुणइ।।१२५।। ___णाहं होमि परेसिं ण मे परे संति णाणमहमेक्को। इदि जो झायदि झाणे, सो अप्पाणं हवदि झादा।।१२६।। णातीतमटुं ण य आगमिस्सं, अटुं नियच्छंति तहागया उ। विधूतकप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता खवगे महेसी।।१२७।। मा चिट्ठह, मा जंपह, मा चिंतह किं विजेण होइ थिरो। अप्पा अप्पम्मि रओ, इणमेव परं हवे झाणं।।१२८।। न कसायमुत्थेहि य, वहिज्जइ माणसेहिं दुक्खेहिं। ईसा-विसाय-सोगा इएहिं, झाणोवगयचित्तो।।१२९।। चालिज्जइ बिभेइ य, धीरो न परीसहोवसग्गेहिं। सुहुमेसु न संमुच्छइ, भावेसु न देवमायासु।।१३०।। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org