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________________ जिन सूत्र भाग : 2 तक आ गये, आ गये, लौटना तो होगा नहीं; और आगे जाना बेदिलों की हस्ती क्या, जीते हैं न मरते हैं नहीं चाहते, तो सारी ऊर्जा तुम्हारे भीतर उमड़ने-घुमड़ने लगेगी। ख्वाब है न बेदारी, होश है न मस्ती है उससे विक्षिप्तता पैदा हो सकती है। धर्म के जगत में या तो मृत्यु कुछ भी नहीं हैको घटने दो, या पागल हो जाओगे। ख्वाब है न बेदारी, होश है न मस्ती है इसलिए मैं कहता हूं-मरो। बेदिलों की हस्ती क्या जीते हैं न मरते हैं पूछा है—हे प्रभो! उस घड़ी में क्या करना चाहिए?' कुछ | तुम जिसे जीवन कहते हो, वह जीवन नहीं है। जीवन और करना नहीं चाहिए। चुपचाप सरक जाना चाहिए सागर में। जैसे मृत्यु के बीच में अटके हो। तुम जिसे मृत्यु कहते हो वह मृत्यु ओस की बूंद, घास की पत्ती से सरककर पृथ्वी में गिर जाती है, नहीं है, तुम जिसे जीवन कहते हो वह जीवन नहीं है। मृत्यु तो खो जाती है, ऐसे चुपचाप सरक जाना चाहिए और गिर जाना केवल उन्होंने ही जानी, जो समाधि में मरे। तुम जिसे मृत्यु कहते चाहिए। गिरकर तुम पाओगे कि पहली दफे जाना तुम कौन हो। हो, वह तो एक बीमारी का दूसरी बीमारी में बदल जाना है। वह मिटकर तम पाओगे कि हए। शन्य होकर पाओगे कि पर्ण उतरा तो वस्तओं का परिवर्तन है। घर बदल लेना है। भीतर के सब तुममें। इधर तुम गये कि उधर परमात्मा आया। प्रकाश तो उसके रोग वही के वही रहते हैं, घर बदल जाता है। तुम जिसे जीवन आगमन की खबर है। जैसे सुबह सूरज निकलने के पहले एक कहते हो, अगर वही जीवन है, तो फिर परमात्मा की खोज व्यर्थ लाली छा जाती है क्षितिज पर, प्राची सुर्ख होने लगती है—सूरज | है। परमात्मा को हम खोजते इसीलिए हैं कि जिसे हमने अब तक की अगवानी में यह सूरज का पहला संदेश हुआ। आता ही है | जीवन जाना है, वह धीरे-धीरे सिद्ध होता है कि जीवन नहीं था, सूरज अब। अब देर नहीं। पक्षी चहकने लगते हैं, हवाएं फिर भ्रांति थी। माया थी, एक सपना था। गतिमान होने लगती हैं, प्रकृति जागने लगती है, प्राची लाल हो | परमात्मा की खोज का इतना ही अर्थ है कि यह जीवन, जीवन गयी, सूरज आता ही है अब। सिद्ध नहीं हुआ, अब हम महाजीवन को खोजते हैं, किसी और जब ध्यान के आखिरी चरण में प्रकाश बचे, तो समझना कि जीवन को खोजते हैं। प्राची लाली हो उठी, लाल हो उठी, अब सूरज आता ही है। अब लेकिन जिन मित्र ने पूछा है, उनका प्रश्न बिलकल ही मंत्रमुग्ध, नाचते, अहोभाग्य मानकर गिरने को तैयार हो जाना, अनिवार्य है। सभी ध्यानियों को घटता है, इसलिए चिंता मत मिटने को तैयार हो जाना। ध्यान का अंतिम चरण मृत्यु है। लेना। डर लगे, तो अपराध-भाव भी मत पैदा होने देना, इसीलिए ध्यान के बाद जो घटना घटती है, उसे हम समाधि स्वाभाविक है। कोई भी उस घड़ी आकर ठिठक जाता है। यहीं कहते हैं। समाधि का अर्थ, महामृत्यु। जो मरने योग्य था, मर तो गुरु की जरूरत हो जाती है। उस घड़ी अगर गुरु न हो, तो तुम गया; जो नहीं मर सकता था, वही बचा। मर्त्य गया, अमृत लौट जाओगे। या कम से कम वहीं अटके रह जाओगे। गुरु के बचा। मरणधर्मा से छुटकारा हुआ, अमृत से गांठ बंधी। बिना इस घड़ी में पागल होने की पूरी संभावना है। गुरु का और जिसे तुम जिंदगी कहते हो, उसमें बचाने-जैसा भी क्या | केवल इतना मतलब है कि वह तुम्हें आश्वस्त कर सके कि मत है! क्या है बचाने को तुम्हारे पास? तुम व्यर्थ ही बचाने की डरो, देखो मैं खो गया हूं, फिर भी हूं। बहुत होकर हूं। अनंत चिंता में लगे रहते हो, बचाने को कुछ भी नहीं! हालत वैसी ही है | होकर हं। शाश्वत होकर है। आ जाओ, ले लो छलांग। डरो जैसे कोई नंगा नहाता नहीं, क्योंकि कहता है कि नहाऊंगा तो मत। झिझको मत। संदेह न करो। उतर आओ। गुरु हाथ बढ़ा कपड़े कहां सुखाऊंगा? नंगा है, कपड़े सुखाने की चिंता के दे, खींच ले, मरने की हिम्मत दे दे, मिटने का बल दे दे, तो कारण नहाता नहीं! तुम्हारे पास है क्या? तुम्हारे हाथ बिलकुल उतरते से ही तुम्हें पता चलेगा कि नाहक परेशान थे। खाली हैं। तुम्हारे प्राण खाली हैं, तुम रिक्त हो। इस रिक्तता को मैंने सुना है, एक आदमी एक अंधेरी अमावस की रात में पहाड़ भी नहीं छोड़ पाते! नहीं है कुछ, तो भी मुट्ठी नहीं खोल पाते! पर भटक गया। अंधेरा गहन। हाथ को हाथ न सूझे। किसी | अगर कुछ होता, तब तो बड़ी मुश्किल हो जाती। तरह टटोल-टटोलकर वह रास्ता खोज रहा था कि एक खड़ में 316 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340147
Book TitleJinsutra Lecture 47 Guru Hai Dwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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