SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - mmmmmmmmmmmost -- द्वार निर्विकल्प हुए, तब घटता है। इसकी आकांक्षा करो। इस पर प्रकाश प्रभुरूप है। प्रभु प्रकाश की आभा है। इस प्रकाश में तुम भरोसा करो। क्योंकि श्रद्धा न होगी, तो यह कभी भी न घटेगा। | भी मत बचो। इसीलिए तो घबड़ाहट लगती है। सब गया, तो यह मानकर तो चलो कि परमात्मा ने जिन्हें बनाया है, उनकी आखिर में लगता है, अब मैं भी जाऊंगा। क्योंकि तुमने अब तक अंतिम नियति परमात्मा ही हो सकता है। परमात्मा ने जिसे सृजा अपना जो रूप जाना है, वह उसी सभी का जोड़ था। वह सब तो है, उसका अंतिम निखार परमात्मा ही हो सकता है। और तुम | गया, अब तुम कैसे बचोगे? तुम्हारा सब गया, तो तुम भी जब तक परमात्मा न हो जाओगे, तब तक तुम वापिस-वापिस जाओगे। इससे घबड़ाहट पैदा होती है। भेजे जाओगे। क्योंकि परमात्मा तब तक राजी न होगा, जब तक | ध्यान के अंतिम चरण में मृत्यु घटेगी है। उसको घटने देना है तम उसके जैसे ही होकर चरणों में नैवेद्य न बन जाओ। तब तक स्वागत से घटने देना है। सहर्ष घटने देना है। राजी न होगा, जब तक तुम ठीक उस जैसे न हो जाओ। इसीलिए | उपलब्ध हो जाएगी। अगर डर-डरकर वापिस लौटते रहे, तो मैं कहता हूं, स्मरण रखो इस बात का कि तुम अभी बंद कली हो, यह यात्रा तो ऐसी हुई कि गंगा गयी सागर तक और ठिठककर खिलना है। तुम बंद परमात्मा हो, खिलना है। तुम छिपे खड़ी रह गयी और लौटने लगी गंगोत्री की तरफ। सागर तक परमात्मा हो, प्रगट होना है। गये हैं, तो गिरना ही होगा। फिर यह गंगा कहे कि नहीं, अब मैं गिरना नहीं चाहती, मैं तो मिलने आयी थी, गिरने थोड़े ही आयी दुसरा प्रश्न : सक्रिय-ध्यान के तीसरे चरण में काफी शक्ति थी; मैं तो सागर होने आयी थी, मिटने थोड़े ही आयी थी, तो लगाने पर वहां प्रकाश के सिवाय कुछ भी नहीं बचता है। फिर क्या कहोगे तुम गंगा से? तुम कहोगे, सागर होने का एक ही भय पकड़ता है कि मरा! हे प्रभो, उस घड़ी में क्या करना उपाय है कि सागर में खो जाओ। तुममें सागर तभी खो सकता चाहिए? है, जब तुम सागर में खो जाओ। तुम मिटो, तो सागर हो जाए। ध्यान की आखिरी घड़ी में तुम्हारी गंगा सागर के किनारे आकर उस घड़ी में मरना चाहिए। मरे बिना थोड़े ही चलेगा। उस खड़ी हो जाती है, तब मन घबड़ाता है, स्वाभाविक है। मैं समझ घड़ी में अपने को बचाने की चेष्टा ही फिर तुम्हें वापस लौटा सकता हूं। सभी का घबड़ाया है। कोई बुद्ध, कोई महावीर, कोई लायेगी। उस घड़ी में खुद को खो देना। उस घड़ी तो कहना- नानक, कोई कबीर उस घबड़ाहट से बचा नहीं। वह सभी का अंतिम यह अभिलाष हृदय में! घबड़ाया है। वह मनुष्य का स्वाभाविक रूप है। अब तक जिसे जीवन दीप जलाकर मेरा, अपना जाना था, जीवन जाना था, वह सब छूटता लगता है, चाहे कोई हरे अंधेरा; बिखरता लगता है। सारा अतीत शून्य में लीन होता मालूम किंतु बुझे यदि दीप कभी तो पड़ता है, भविष्य का कुछ पता नहीं है, तो मृत्यु मुंह बाकर खड़ी बुझे तुम्हारे कोमल कर से, हो जाती है। उस क्षण नाचते हुए मृत्यु में समा जाना। लौटकर अंतिम यह अभिलाष हृदय में! पीछे मत देखना। लौटकर पीछे देखा कि मुश्किल में पड़ परमात्मा के हाथ से अगर तुम्हारा दीया बुझता हो, तो और जाओगे। लौट भी न पाओगे और गिर भी न पाओगे, त्रिशंकु हो क्या सौभाग्य हो सकता है! जाओगे। बड़ी दुविधा में पड़ जाओगे, बड़े द्वैत में पड़ जाओगे। किंतु बुझे यदि दीप कभी तो, उधर सागर बुला रहा होगा, इधर पीछे का अतीत बुला रहा बुझे तुम्हारे कोमल कर से होगा। उधर भविष्य खींचेगा, इधर अतीत खींचेगा। तुम दोनों के अंतिम यह अभिलाष हृदय में! बीच खिंचकर पिस जाओगे। पूछा है कि ध्यान के अंतिम चरण में केवल प्रकाश बचता है। बहुत बार ऐसा हुआ है कि जिन लोगों ने ध्यान की इस घड़ी में और क्या चाहते हो? कुछ और की भी इच्छा है? प्रकाश का तो | मरने से विरोध किया, वे विक्षिप्त हो गये हैं। क्योंकि लौट भी अर्थ हुआ, जो बचना चाहिए वही बचा अब। शुद्धतम बचा। नहीं सकते अब; अब गंगोत्री तक जाना कैसे संभव है? जहां 315 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340147
Book TitleJinsutra Lecture 47 Guru Hai Dwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy