SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्वरा से जीना ध्यान है पहुंच सकोगे। गलत को गलत मान लेना, स्वीकार कर लेना, | हवा के सर्द झोंके कल्ब पर खंजर चलाते हैं क्षमा मांग लेना, क्योंकि गलत को गलत की तरह जानते ही फिर | और हृदय प्रतिपल क्षीण हो रहा है, जैसे कि हवा का हर झोंका उसके दुबारा दोहरने का कारण नहीं रह जाता। | छुरी चला रहा हो। प्रतिपल हम मर रहे हैं। एक घड़ी गयी, एक 'अपने पूर्वकृत बुरे आचरण की गर्दा करे, सब प्राणियों से घड़ी जिंदगी गयी। एक घड़ी गयी, एक घड़ी मौत करीब आयी। क्षमाभाव चाहे।' सब प्राणियों से। महावीर कहते हैं, इसकी | | गुजश्ता इसरतों के ख्वाब आईना दिखाते हैं फिकर न करे कि किसके साथ मैंने बुरा किया, क्षमा ही मांगनी है और इंद्रियों की कामवासना है, सुखभोग की आकांक्षाएं हैं, वे तो इसमें क्या कंजूसी! इसके पीछे बड़ा राज है। क्योंकि महावीर नये-नये सपने बुने रही हैं। इधर जीवन हाथ से जा रहा, उधर कहते हैं, हम इतने जन्मों से इस पृथ्वी पर हैं कि करीब-करीब वासना सपने बुन रही है। इधर मौत पास आ रही है, उधर | हम सभी के साथ बुरा-भला कर चुके होंगे। इतनी लंबी यात्रा है वासना खींचे चली जाती है। वह कहती है, आज की रात और! | कि हम करीब-करीब सभी से मिल चुके होंगे। असंभव है यह गुजश्ता इसरतों के ख्वाब आईना दिखाते हैं बात कि कोई भी ऐसा पृथ्वी पर हो जिससे किसी जन्म में, किसी मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं मार्ग पर, किसी चौराहे पर मिलना न हुआ हो। तो महावीर कहते जमीं चीं-बर-जबीं है आसमां तखरीब पर माइल हैं, इतना लंबा अतीत है, तुम कहां हिसाब करोगे किससे क्षमा रफीकाने-सफर में कोई बिस्मिल है कोई घायल मांगें, किससे न मांगें! और फिर क्षमा ही मांगनी है, तो इसमें तआकुब में लुटेरे हैं, चट्टानें राह में हाइल क्या हिसाब-किताब रखना! सभी से क्षमा मांग लेना। मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं ‘सभी प्राणियों से क्षमाभाव चाहे। प्रमाद को दूर करे।' तंद्रा बड़ी चट्टानें हैं। बड़ी बाधाएं हैं। हजार तरह के उपद्रव हैं। को तोड़े। निद्रा को तोड़े, आलस्य को छोड़े। क्योंकि जितने ही कोई हत्यारा है, कोई घायल है, कोई दुखी है, कोई दुखी कर रहा तुम तेजस्वी बनोगे, जागरूक बनोगे, उतनी जल्दी घर करीब है। इन सबसे, इन सबके बीच से आसमान नाराज मालूम पड़ता आयेगा, उतनी जल्दी मंजिल करीब आयेगी। नींद-नींद में | है, जमीन क्रुद्ध मालूम पड़ती है, ऐसा लगता है हम अजनबी हैं लथड़ाते-लथड़ाते, किसी तरह चलते-चलते तुम मंजिल तक और हर चीज हमारी दुश्मन है। फिर भी आदमी को बढ़ते ही पहुंच न पाओगे। तुम कहीं बीच में मार्ग पर सो जाओगे। जाना है। 'और चित्त को निश्चल करके तब तक ध्यान करे जब तक | चिरागे-दैर फानूसे-हरम कंदीले-रहबानी पूर्वबद्ध कर्म नष्ट न हो जाएं।' संघर्ष है। हजार बाधाएं हैं। मन | ये सब हैं मुद्दतों से बेनियाजे-नूरे-इर्फानी के पुराने तर्क हैं। पुरानी आदतें हैं। संस्कार हैं। गलत को ठीक | न नाकूसे बिरहमन है, न आहंगे-हुदी-ख्वानी करने की चेष्टा अहंकार की चेष्टा है। दूसरा ठीक भी करे, तो | मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं हम गलत मानने को तत्पर रहते हैं। खुद गलत भी करें तो ठीक और इस सबसे भी ऊपर और एक मुश्किल खड़ी हो गयी है। सिद्ध करने का उपाय करते हैं। ये सब उपद्रव हैं। इन सब चिरागे-दैर फानूसे-हरम कंदीले-रहबानी उपद्रवों को पार कर के ही कोई ध्यान तक पहुंचता है। मंदिर का दीपक कभी का बुझ गया। काबे का फानूस मुर्दा है। फजा में मौत के तारीक साये थरथराते हैं उसमें कोई ज्योति नहीं। हवा के सर्द झोंके कल्ब पर खंजर चलाते हैं चिरागे-दैर फानूसे-हरम कंदीले-रहबानी गुजश्ता इसरतों के ख़्वाब आईना दिखाते हैं गिरजे की मोमबत्ती में कोई रोशनी नहीं रही। मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं ये सब हैं मुद्दतों से बेनियाजे-नूरे-इर्फानी फजा में मौत के तारीक साये थरथराते हैं न-मालूम कितनी सदियों से इनके साथ परमात्मा का संबंध हवा में सब तरफ मौत की अंधेरी छाया है। प्रतिक्षण मौत आ छूट गया है। परमात्मा का नूर अब इनमें झलकता नहीं। सकती है, किसी भी क्षण मौत आ सकती है। न नाकूसे बिरहमन है Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340146
Book TitleJinsutra Lecture 46 Twara Se Jina Dhyan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy