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________________ जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है फिर किसी के सामने चश्मे-तमन्ना झुक गयी पानी पर खींची लकीर है। लेकिन प्रेम, प्रेम सत्य है। प्रेमपात्र शौक की शोखी में रंगे-एहतिराम आ ही गया बदल जाते हों, प्रेम नहीं बदलता। बचपन में अपनी मां को कोई बारहा ऐसा हुआ है याद तक दिल में न थी प्रेम करता है; पिता को प्रेम करता है; थोड़ा बड़ा होकर बारहा मस्ती में लब पर उनका नाम आ ही गया भाई-बहन को प्रेम करता है; पास-पड़ोस, मित्रों को प्रेम करता जिंदगी के खाका-ए-सादा को रंगी कर दिया है; और थोड़ा बड़ा होकर किसी स्त्री को प्रेम करता है; और हुस्न काम आये न आये इश्क काम आ ही गया थोड़ा बड़ा होकर बच्चों को प्रेम करता है; और थोड़ा बड़ा होकर सौंदर्य साथ दे या न दे, प्रेम सदा साथ देता है। सौंदर्य काम किसी दिन किसी मंदिर में, किसी मस्जिद में झुकता है किसी आये न आये, प्रेम सदा काम आ जाता है। अज्ञात प्रेमपात्र के लिए। प्रेमपात्र बदलते रहते हैं, लेकिन प्रेम जिंदगी के खाका-ए-सादा को रंगी कर दिया नहीं बदलता। बचपन से लेकर अंत तक, जन्म से लेकर मृत्यु वह जिंदगी की जो सादी-सी रूपरेखा है, सादा रेखाचित्र है, | तक अगर कोई एक चीज तुम्हारे भीतर सदा चलती रहती है, तो उसे रंगीन कर देता है प्रेम। प्रेम है। जैसे सांस सदा चलती रहती है। सांस शरीर को संभाले जिंदगी में जो हरियाली दिखायी पड़ती है, वह प्रेम की आंखों रखती है, प्रेम आत्मा को संभाले रखता है। के कारण। जो फूल खिलते हैं, वह प्रेम की आंखों के कारण। प्रेम सौभाग्य है! लेकिन भूलकर भी दूसरे पर उसे मत जीवन के कंकड़-पत्थरों में जो कभी-कभी हीरे दिखायी पड़ जाते थोपना। अपने भीतर संभालकर! बाहर उछालने की जरूरत भी हैं, वह प्रेम के कारण। पदार्थ में परमात्मा की थोड़ी-सी जो नहीं है। दिखावा करने का, प्रदर्शन करने का कोई कारण भी नहीं झलक मिलने लगती है, वह प्रेम के कारण। अगर प्रेम न हो, तो | है। कबीर ने कहा है-हीरा पायो गांठ गठियायो, वाको बनाओ मंदिर, मस्जिद, गरुद्वारे. सब व्यर्थ होंगे। बार-बार क्यों खोले? हीरा मिल जाता है किसी को रास्ते पर प्रेम के कारण ही मंदिर की पत्थर की प्रतिमा में परमात्मा की पड़ा, जल्दी से गांठ में गठियाकर संभालकर चल पड़ता है, फिर झलक मिलती है। प्रेम के कारण ही काबे का साधारण-सा इधर बार-बार थोड़े ही खोलकर देखता है? अगर कभी शक भी पत्थर परमात्मा का प्रतीक हो जाता है। कितने लोगों ने चूमा है हो तो थोड़ा हाथ डालकर समझ लेता है कि है, फिर अपना चल उस पत्थर को! किसी और पत्थर को इतने लोगों ने नहीं चूमा पड़ता है। होगा। धन्यभागी है काबा का पत्थर! करोड़ों-करोड़ों लोग प्रेम का हीरा तुम्हें मिला-हीरा पायो गांठ गठियायो, वाको जनम-जनम प्रतीक्षा करते हैं उस पत्थर के पास जाकर चूम लेने बार-बार क्यों खोले? अब इसमें कोई दिखाना थोड़े ही है, की। इतने लोगों के चुंबन ने अगर उस पत्थर को परमात्मा नहीं बाजार में जाकर घोषणा थोड़े ही करनी है कि हम एक बड़े प्रेमी बना दिया है, तो फिर परमात्मा हो ही नहीं सकता। इतने लोगों ने | हो गये, कि जो मिलता है उसको गले लगते हैं। संभाल लो प्रेम बरसाया है, पत्थर भी परमात्मा हो ही जाएगा। भीतर, बांध लो गांठ और जितना भीतर छिपा सको उतना भीतर जब तुम मंदिर में जाकर, किसी और के मंदिर में जाकर मूर्ति | छिपा दो। तुम पाओगे, वह हीरा बीज बन जाता है। उसमें अंकुर देखते हो, तो मत कहना पत्थर की है। तुम्हारे लिए पत्थर की आते हैं। यह हीरा कोई पत्थर नहीं है, यह हीरा तो प्राण का होगी, क्योंकि प्रेम की तुम्हारे पास आंख नहीं। लेकिन जो भक्ति सारभूत अंश है। इसे छिपा दो अपने अचेतन की गहराइयों में। से, श्रद्धा से भरकर उसी मंदिर में जाता है, उसे पत्थर की प्रतिमा इसे बाहर मत उछालते फिरो, अन्यथा गंवा दोगे। मुस्कुराती लगती है कभी, कभी आंस बहाती लगती है। उसे बीज तो जमीन में छिपा देने को होता है। बाहर रखे रहोगे, पत्थर की प्रतिमा जीवंत मालूम होती है। खराब हो जाएगा। छिपा दो अपनी चेतना की भूमि में। गहन जिंदगी के खाक-ए-सादा को रंगीं कर दिया, तल में डाल दो। वहां से फूटेगा, वहां से निकलेंगी कोंपलें, वहां हस्न काम आये न आये इश्क काम आ ही गया से उगेगा अंकर, और एक बीज में लाखों-करोड़ों बीज लगेंगे। सौंदर्य तो आज नहीं कल खो जाता है। सौंदर्य तो सपना है। यह जो छोटा-सा प्रेम का दीया जला है, इसे हवाओं में लेकर 271/ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340145
Book TitleJinsutra Lecture 45 Jivan Taiyari Hai Mrutyu Pariksha Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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