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________________ जिन सूत्र भागः2 अहोभाव से गुजर गये। कभी-कभी ऐसा हो जाएगा कि दोनों के परमात्मा तुम्हारी तलाश में आया इस बहाने, इस निमित्त—तुम हृदय में एक-साथ कोई तीसरी शक्ति-परमात्मा कहो, प्रेम | इस छोटे-से बच्चे को ढांचों में मत ढालना। तुम इस तरह की कहो-एक साथ उठेगी, समवेत, और तुम दोनों एक-दूसरे के | कोशिश मत करना, कि यह तुम्हारे पीछे-पीछे चले, तुम्हारी हां आलिंगन में गिर जाओगे। लेकिन वह आलिंगन तुम्हारा नहीं में हां मिलाये। तुम जो कहो, वही करे। तुम इसे मार मत होगा, न दूसरे का होगा, वह आलिंगन परमात्मा का होगा। उस डालना। परमात्मा तुम्हारे घर आया है, तुम इस बच्चे को क्षण की प्रतीक्षा करो। तब तक जल्दी मत करना। प्रेम बड़ी परमात्मा की प्रतिष्ठा देना। इसकी स्वतंत्रता को स्वीकार करना। पवित्र घटना है। हां, अपना अनुभव इसे दे देना। लेकिन वह अनुभव आदेश न जब तुम प्रेम करने की चेष्टा करने लगते हो, तभी अपवित्र हो | हो। तुमने जो जाना है, उसकी संपत्ति इसे सौंप देना। लेकिन जाता है प्रेम। तुम्हारा कृत्य नहीं है प्रेम-प्रेम है समर्पण, चुनाव का हक इसी को देना कि वह चुन ले–राजी हो, न हो परमात्मा के हाथों में अपने को छोड़ देना। पहले परमात्मा का राजी। न राजी हो तो नाराज मत होना। राजी हो तो प्रसन्न मत आलिंगन तो कर लो। फिर, परमात्मा के बहुत रूप हैं, इनका होना। क्योंकि प्रसन्नता और नाराजगी की राजनीति से ही हम आलिंगन भी हो जाएगा। और हुआ या नहीं, उसका कोई बच्चों के ऊपर जबर्दस्ती करते हैं। बाप एक बात कहता है बेटे प्रयोजन नहीं है। प्रेम पाप नहीं है, लेकिन प्रेम को थोपना पाप से, कहता है तेरी जो मर्जी हो वैसा कर। लेकिन अगर बाप की है। प्रेम तो बड़ा पुण्य है। फिराक की बड़ी प्रसिद्ध पंक्तियां हैं- मर्जी के खिलाफ करता है, तो बाप दुखी मालूम पड़ता है। तो कोई समझे तो एक बात कहूं बेटा बाप को सुखी करना चाहता है कि चलो! अगर बाप की इश्क तौफीक है गुनाह नहीं मर्जी के अनुसार करता है, तो बाप प्रसन्न होता है। तो बेटा बाप प्रेम तो प्रसाद है-तौफीक। प्रभु-प्रसाद, प्रभु-कृपा, को प्रसन्न करना चाहता है कि चलो! ऐसे-ऐसे धीरे-धीरे बेटे की अनुकंपा; न मालूम कितने पुण्यों का फल है। इश्क तौफीक है | आत्मा खो जाती है। गुनाह नहीं। अपराध नहीं है प्रेम, लेकिन तुम प्रेम के साथ भी | इसीलिए तो दुनिया में इतनी भीड़ है और इतने आत्महीन लोग दुर्व्यवहार कर सकते हो। तुम इसे पाप बना सकते हो। आदमी | हैं। आत्मा कहां? आत्मा तो स्वतंत्रता में पनपती है, फैलती है, ने यही तो किया, प्रेम को पाप बना दिया। तुम श्रेष्ठतम को भी फूलती है। तो चाहे अजनबी, चाहे जिनको तुम अपने कहते निकृष्टतम कीचड़ में घसीट सकते हो। और तुम श्रेष्ठतम को हो...अपने जिनको कहते हो वे भी अजनबी हैं। जो बेटा तुम्हारे निकृष्ट कीचड़ से निकाल भी सकते हो। तुम पर निर्भर है। घर पैदा हुआ है, उसे तुम जानते हो, कौन है? कहां से आया तो सदा ध्यान रखना, दूसरे की स्वतंत्रता पर आंच न आने है? क्या संदेश लाया है? क्या उसकी नियति है? तुम्हें कुछ पाये। और यह मैं अजनबियों के लिए ही नहीं कह रहा हूं, | भी तो पता नहीं! सिर्फ तुम्हारे घर पैदा हो गया है, तुम्हें माध्यम जिनको तम अपना मानते हो, उनके संबंध में भी खयाल रखना। चुन लिया है। तुम इससे ज्यादा पागलपन से मत भर जाना कि तुम्हारी पत्नी की स्वतंत्रता को आंच न आने पाये। तुम्हारे पति | उसकी गर्दन दबाने लगो। अजनबी तो अजनबी है। की स्वतंत्रता को आंच न आने पाये। जहां आंच आने लगे, इसीलिए तो सारे धर्मशास्त्र कहते हैं, यहां कौन अपना है? समझना प्रेम पाप होने लगा। आलोक तो मिले, आंच न आये। अपने ही हम अपने नहीं हैं, दूसरे की तो बात ही मुश्किल है। प्रकाश तो मिले, लेकिन ताप पैदा न हो। चांद की तरह हो प्रेम, अपना ही हमें पता नहीं कि हम कौन हैं, तो किस को हम सूरज की तरह नहीं। जला न दे, झुलसा न दे। चांद की पहचानें। न, पास हों लोग कि दूर हों, अपने हों कि पराये हों, से. अमत बरसे. सोमरस बहे। शीतलता दे। स्वतंत्रता को मत तोड़ना। जहां प्रेम स्वतंत्रता तोड़ता है, वहीं पाप तो ही प्रेम पुण्य है। हो जाता है। अन्यथा प्रेम तो इस जगत में, इस अंधेरे जगत में जो तुम्हारे बहुत पास हैं, तुम्हारा बेटा, तुम्हारी बेटी-छोटा | परमात्मा की किरण है। इस गहन अंधकार में प्रेम ही एकमात्र बच्चा तुम्हारे घर पैदा हुआ है, परमात्मा ने एक रूप लिया, ज्योतिशिखा है। 270 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340145
Book TitleJinsutra Lecture 45 Jivan Taiyari Hai Mrutyu Pariksha Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size40 MB
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