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________________ जिन सूत्र भाग : 2 दुकान चलाते, तो उनकी कुछ बातें याद रह गयीं। एक बात वह हुए लोग इतने कम हैं कि मां-बाप ऐसे हों भी कैसे! ग्राहकों से कहा करते थे कि तरबूजा चाहे छुरी पर गिरे, चाहे छुरी | तो हर मां-बाप अपने बच्चे पर वही थोप देता है, जो उस पर तरबूजे पर गिरे, हर हालत में तरबूजा कटेगा। वे ठीक कहते थे। थोपा गया था उसके मां-बाप के द्वारा। ऐसे सदियों का कचरा क्या फर्क पड़ता है! छुरी को नीचे रखकर ऊपर से तरबूजा | मस्तिष्क पर हावी हो जाता है। वही बिखराव का कारण है। पटको, कि तरबूजे को नीचे रखकर ऊपर से छुरी पटको, हर उसके कारण तुम कभी स्वतंत्र नहीं हो पाते। उसके कारण तुम हालत में तरबूजा कटेगा। छरी कैसे कट सकती है? छरी सदा बंधे-बंधे हो-जंजीरों में बंधे हो। तडफते हो उस पार जाने काटती है। | को, लेकिन नाव जंजीरों से इसी किनारे से बंधी है। और जंजीरें जैसी तुम्हारी मर्जी हो। लेकिन कटोगे तुम ही। तुम्हें अगर बड़ी बहुमूल्य मालूम होती हैं। क्योंकि बचपन से ही तुमने उन्हें आड़ से कटने में सुख आता है, चलो यही सही। मुझे उसमें कुछ जाना। तुम समझते हो कि शायद जंजीरें नाव का अनिवार्य अड़चन नहीं है। क्योंकि महावीर ने वही कहा है, जो मैं कह रहा हिस्सा हैं। या तुम शायद सोचते हो कि जंजीरें नाव का आभूषण हूं। बुद्ध ने वही कहा है, जो मैं कह रहा हूं। सिर्फ सदियों का हैं, सजावट हैं, शृंगार हैं। या कि तुम सोचते हो कि जंजीरों को फर्क है, भाषा का फर्क है। अन्यथा कहने का उपाय नहीं। अगर तोड़ दिया, तो कहीं ऐसा न हो कि दूसरा किनारा तो मिले क्योंकि जैसे ही तम शांत हुए, डूबे अपने में, उस जगह पहुंचे जो ही न, और यह किनारा छूट जाए! तो बंधे हो, तड़फते हो, शाश्वत है, सनातन है। पताकाएं खोलते हो, पाल खोलते हो, पतवारें चलाते हो, और जंजीरें खोलते नहीं। जंजीरें तोड़ते नहीं। नाव वहीं की वहीं तीसरा प्रश्नः जैन-कुटुंब में जन्म हुआ। तीन वर्षों से तड़फ-तड़फकर रह जाती है। इसी से घबड़ाहट पैदा होती है। आपको पढ़ता हूं। संन्यास भी लिया है। फिर भी पारे की तरह जैन-कुटुंब में पैदा हुए हो तो पहला तो काम है-जैन बिखरा जा रहा हूं। जिन-सूत्र पर प्रवचन अच्छा लगता है। पर धारणाओं से मुक्त हो जाना। नहीं कि वे गलत हैं। बल्कि दूसरे भोग में रस बहुत है। फिर परंपरा और संस्कार पांव पर बेड़ी के द्वारा दी गयी हैं, यही अड़चन है। जिस दिन तुम जागोगे, की तरह पडे हैं। बहचित्त और विक्षिप्त होता जा रहा है, ट्टता जिस दिन तुम पाओगे, उन्हें ठाक हा पाआग। लाकन अभा जा रहा हूं; कृपया मार्ग दर्शन दें। उधार हैं। अभी स्व-अर्जित नहीं हैं। और सत्य उधार नहीं मिलता। अगर हिंदू-घर में पैदा हुए हो, तो पहला कृत्य क्यों टूट रहे हो, इसे थोड़ा ठीक से समझ लो, वहीं से मार्ग हिंदू-संस्कार से मुक्त हो जाना है। अगर मुसलमान घर में पैदा मिल जाएगा। टूटने के कारण प्रश्न में ही साफ हैं हुए हो, तो पहला काम स्वतंत्रता का-इस्लाम से छुटकारा ले 'जैन-कटब में जन्म हआ।' किसी न किसी कटब में जन्म तो लेना। खाली करो अतीत से अपने को। अपनी खोज पर होगा ही। और जब जन्म होगा किसी कुटुंब में, तो उस कुटुंब का | निकलो। हिम्मत करो। साहस करो। दुस्साहस चाहिए। कायर सदियों पुराना ढांचा, संस्कार, आदतें, धारणाएं, विश्वास तुम की तरह किनारों से मत बंधे रहो। पर थोपे जाएंगे। अब तक कोई मां-बाप इतने जागरूक नहीं हैं | 'जैन-कदंब में जन्म हआ। वहीं पागलपन के बीज हैं। कि बच्चे को स्वतंत्र छोड़ें, कि उसे कहें कि तू बड़ा हो, होशपूर्ण | किसी कुटुंब में तो होगा ही। जैन में हो, सिक्ख में हो, मुसलमान हो, अपना चुनाव करना। जो धर्म तुझे प्रीतिकर लगे, वह चुन में हो, हिंदू में हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जहां भी जन्म लेना। अगर मस्जिद में तुझे रस आये, मस्जिद जाना। गुरुद्वारा होगा, वहीं तुम पर संस्कार थोप दिये जाएंगे। पहला कृत्य प्रीतिकर लगे, गुरुद्वारा जाना। मंदिर में तुझे ध्यान लगे, मंदिर धार्मिक-खोजी का उन संस्कारों के जालों को काटकर अपने को चले जाना। अगर नास्तिकता से ही तुझे सत्य की अनुभूति होती मुक्त कर लेना है। जैसे मां के पेट में बच्चा पैदा होता है, तो जुड़ा हो, तो वही सही है। लेकिन तू चुनना। हम कुछ तेरे ऊपर थोपेंगे होता है मां से। जैसे ही गर्भ के बाहर आता है, डाक्टर का पहला नहीं। अभी ऐसे मां-बाप पृथ्वी पर नहीं हैं। अभी पृथ्वी पर जागे काम है उस जोड़ को तोड़ देना। अगर नाभि बच्चे की मां से जुड़ी 228 Jain education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340143
Book TitleJinsutra Lecture 43 Gyan hi Kranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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