________________ ज्ञान ही क्रांति अब उसे विदा भी दो। अब उसे नमस्कार करो। कहो, आटा लगा देखकर जैन करीब आ जाते हैं। बस, इसलिए। अलविदा! | इसलिए अब सीधे-सीधे बात बंद की है। बात तो वही कर रहा हूं, वही कर सकता हूं, कोई दूसरा उपाय दुसरा प्रश्न : आचार्य रजनीश को सुनता था—निपट सीधा नहीं है। मैं वही कह सकता हूं, जो मैं हूं। अगर किसी दिन देखा और साफ। अब भी सुनता हूं प्यारे भगवान को-आड़े होते हैं कि अब लोगों को सीधे-सीधे बात फिर समझ में आने लगी. बद्ध, महावीर, जीसस, शंकर, नारद, कबीर और फरीद। इन | फिर आड़ें छोड़ दूंगा। फिर सीधी बात करने लगेगा। तुम पर भगवानों के मूल उदघाटित करते हैं, स्वयं सीधे प्रकट होने की निर्भर है। तुमसे बोल रहा हूं, इसलिए तुम्हारा ध्यान रखना बजाय आड़ लेकर आने के पीछे रहस्य क्या है? जरूरी है। अगर एकांत में बोलता होता, अकेले में बोलता होता, शून्य में बोलता होता, तो महावीर, बुद्ध, कृष्ण के नाम का मेरी समझदारी बढ़ी। | कोई कारण ही न था। अब भी जब अपने अकेले में बैठा होता पहले सोचा था, सीधे सीधी-सीधी बात कर लेने से हल हो | हूं, तो मुझे न बुद्ध की याद आती है, न महावीर की, न कृष्ण की, जाएगा। लेकिन लोग बड़े तिरछे हैं। मैंने उनकी भाषा सीखी। न क्राइस्ट की। तुम्हें देखता हूं, तब। तब इन नामों को कहता अब भी वही है, जो तब कहता था। लेकिन पहले अपनी | खींच-खींचकर मुझे लाना पड़ता है। तुम्हें सहारा देने के कारण, भाषा बोलता था। तब मैंने देखा कि लोग चौंकते हैं, जागते देने के लिए। तुम आड़ में ही पहचान पाते हो, चलो यही सही। नहीं। चौंकना भर जागने के लिए काफी नहीं है। चौंककर | तुम अगर गुलाब को गुलाब कहने से नहीं समझते, चमेली कहने आदमी फिर करवट लेकर सो जाता है। चौंककर शायद नाराज | से समझते हो, चलो चमेली ही सही। गुलाब तो गुलाब है। भी हो जाता है। सोचता है किसने शोरगुल किया! चमेली कहो, चंपा कहो, जुही कहो, बेला कहो, नाम से क्या मैंने देखा कि लोग मेरी बात सुन लेते हैं, लेकिन उस सुनने से | फर्क पड़ता है, गुलाब गुलाब है। मैं मैं हूं। मेरी शराब मेरी शराब उनके जीवन में कोई क्रांति घटित नहीं होती। क्योंकि मैं अपनी | है। महावीर की प्याली में ढालो कि बुद्ध की प्याली में ढालो, मेरे भाषा बोल रहा हूं, जो उनकी समझ में नहीं आती। उनको तो स्वाद में कोई फर्क पड़ता नहीं। तुम्हारी वजह से नाहक इन नामों उनकी ही भाषा से समझाना होगा। तब मैं अपना गीत गनगनाये | को मुझे खींचना पड़ रहा है। जा रहा था, बिना इसकी फिक्र किये कि सुननेवाले को समझ में | अगर मैं फरीद पर बोलता हूं, मुसलमान उत्सुक हो जाता है। भी आता है या नहीं? राम के भक्त मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं आप कृष्ण पर तो " जैसे-जैसे और-और अधिक लोगों के संपर्क में आया, | बोले, राम पर क्यों नहीं बोलते? पत्र आते हैं मुझे। वैसे-वैसे एक बात दिखायी पड़ गयी कि सीधे-सीधे वे मुझे न | लखनऊ से किन्हीं मित्रों का पत्र आया कि आप रैदास पर कब देख पायेंगे। सीधे देखने की आंख ही उनकी खो गयी है। उनकी बोलेंगे? वे रैदास के भक्त होंगे। तो रैदास पर कब बोलेंगे। आंखें तिरछी हो गयी हैं। | जैसे कि मैं जो बोल रहा हूं, वह रैदास पर नहीं है! तारणपंथी जैन तो अब मैं महावीर की बात करता हं. बद्ध की बात करता है: आते हैं, वे कहते हैं, तारण पर कब बोलेंगे? जैसे मैं जो बोल कृष्ण की, क्राइस्ट की, नानक की, कबीर की, फरीद की। ये | रहा हूं, वह तारण पर नहीं है! मैं जो बोल रहा हूं, वही बोलूंगा। भाषाएं उन्हें याद हैं। इन भाषाओं में वे रगे-पगे हैं। इन भाषाओं गीता रखो, कि कुरान, कि बाइबिल रखो, मैं वही कहूंगा जो मुझे को सुनते-सुनते वे इन शब्दों से परिचित हो गये हैं। उन शब्दों में | कहना है। सिर्फ बीच-बीच में मुझे महावीर, बुद्ध और कृष्ण के डालता मैं वही हूं जो मुझे डालना है। नानक मेरा हाथ तो पकड़ | नाम दोहराने पड़ते हैं, और कुछ खास अंतर नहीं है। तुम्हारी नहीं सकते। जो मुझे कहना है वही कहूंगा। लेकिन सिक्ख को | मर्जी। तुम ऐसा चाहते हो, चलो ऐसा सही। जो मुझे बेचना है, समझ में आ जाता है। महावीर कोई मुकदमा तो मुझ पर चला वही बेचूंगा। नहीं सकते। जो मुझे कहना है वही कहता हूं, लेकिन महावीर का | बचपन की मुझे याद है। छोटा था, तब मेरे पिता के पिताजी 227 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrar org