________________ MARAT RER Porance HTTOTER AM500 हला प्रश्न: आपने कहा कि चित्त की दशा ही हो; लेकिन अब इसी नाव में बैठे रहोगे तो पहुंचकर भी दूसरे बाधा है। और मुझे मेरी चित्त की दशा ही किनारे पर वंचित रह गये। कहां पहुंच पाये! नाव पकड़नी भी आपके पास ले आयी है। आपने यह भी पडती. छोडनी भी पडती। साधन हाथ में भी लेने होते हैं. फिर कहा कि बुद्धि ही बाधा है, क्योंकि बुद्धिमान बहुत गिरा भी देने होते हैं। सोच-विचार करता है। और मैं देखता हूं कि आपके इर्द-गिर्द इसलिए प्रथम चरण पर जो साधक है, साधन है, अंतिम चरण बुद्धिमान व्यक्ति ही भरे हैं। पर वही बाधक हो जाता है। तुम्हारा मन ही तुम्हें यहां ले आया, इसमें दो मत नहीं हो सकते। मन ही न होता तो तुम आते कैसे! निश्चय ही चित्त ही तुम्हारा यहां तक ले आया है। मेरे पास ले | यह यात्रा ही कैसे करते! मेरा आकर्षण ही तुम्हें कैसे खींचता! आया है। फिर भी चित्त बाधा है। पास तो आ जाओगे चित्त के | मेरा बलावा ही तम कैसे सनते। तम मन की डोरी को पकड़कर कारण, मिलन न हो पायेगा। निकट तो आ जाओगे, एक न हो | ही यहां तक आये। मन की नाव पर ही चढ़कर यहां तक आये। पाओगे। यहां तक तो ले आयेगा, शारीरिक रूप से तो करीब | लेकिन अब क्या मन की नाव पर ही बैठे रहोगे? अब उतरो, पहुंचा देगा, आत्मिक रूप से दूर ही दूर रखेगा। अब नाव छोड़ो। अब किनारा आ गया। धन्यवाद दे दो नाव अगर शरीर के ही मिलन की बात होती, तो चित्त बाधा नहीं | को, कृतज्ञता ज्ञापन कर दो, अनुगृहीत होओ उसके-यहां तक है। चित्त तो शरीरों को करीब ले आता है, आत्माएं दूर रह जाती ले आयी-लेकिन क्या अब उसको सिर पर ढोओगे? क्या हैं। जब तक चित्त को हटाओगे न, उस अंतस्तल में मिलन न हो इसीलिए कि यहां तक नाव ले आयी, तो धन्यवाद देने के लिए सकेगा। जो जोड़ता मालूम पड़ता है नीचे तल पर, वही ऊंचे तल सदा के लिए नाव में बैठे रहोगे? तो भूल हो जाएगी। तो पर तोड़ देता है। पागलपन हो जाएगा। इसे खूब ठीक से समझ लेना। जो साधन है पहले चरण पर, | प्रश्न सार्थक है। सभी के लिए सोचने जैसा है। सीढ़ियां वही अंतिम चरण पर बाधा बन जाता है। नाव में बैठे हैं, नाव | छोड़नी पड़ती हैं। अंततः सभी साधन जब छूट जाते हैं, तभी उस पार ले गयी, फिर नाव को पकड़े रहो तो उतर न पाओगे। | सिद्धि उपलब्ध होती है। जब सभी मार्ग छूट जाते हैं तभी मंजिल नाव ले आयी दूसरे किनारे तक, लेकिन अब नाव को छोड़ना भी | मिलती है। यद्यपि मार्ग पर चलकर मिलती है, चलने से ही पड़ेगा। तुमने अगर यह कहा कि यह नाव ही तो इस किनारे तक | मिलती है, लेकिन फिर छोड़ना अनिवार्य है। चलते रहे, चलते लायी है, अब इसे कैसे छोड़ें! यह नाव न होती, तो इस किनारे | रहे, मार्ग ही इतने जोर से पकड़ लिया कि मंजिल भी सामने आ तक हम कभी आये ही न होते! सच कहते हो, ठीक ही कहते | गयी तो कहा, मार्ग कैसे छोड़ें अब! तो फिर तुमने मार्ग पकड़ा Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org