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________________ अपर जिन सूत्र / मिला है, उसे छोड़ने से कुछ हानि न हो जाएगी। लेकिन लोग तो प्रशंसा मिलती है। क्योंकि समाज तुम्हें मुक्त नहीं देखना दुख छोड़ने तक में डरते हैं। दुख तक को पकड़ लेते हैं, कम से चाहता। समाज के लिए यही सुविधा है कि तुम जंजीरों में रहो। कम पुराना है, पहचाना हुआ है। जैसे ही तुम जंजीरें तोड़ोगे, तुम्हारी प्रतिष्ठा खोने लगेगी। लोग यहां कुछ भी मूल्यवान नहीं है, जो तुम पकड़े हुए हो। और जो तुम्हें सम्मान न देंगे। मूल्यवान है, उसे पकड़ने की कोई जरूरत नहीं है, वह तुम्हारा | एक जैन-साधु मुझे मिलने आये, कुछ वर्ष पहले। मैंने उनसे स्वभाव है। जिस जैन-धर्म को तुमने पकड़ा है, वह तो केवल पूछा कि सच-सच कहो, मिला क्या है तुम्हें? पचास वर्ष से तुम परंपरा है, लीक है। जिस जिन-धर्म की मैं बात कर रहा हूं, वह जैन-मुनि हो, पाया क्या है? जब तेरह-चौदह वर्ष के थे, तब तुम्हारा स्वभाव है। सब लीकें, सब परंपराएं छोड़ दोगे, तब तुम मां-बाप ने दीक्षा दे दी। मां-बाप भी मुनि हो गये थे, तो उन्होंने पाओगे उसका आविर्भाव हुआ। उन्हें भी मुनि बना लिया। वह कहने लगे, आपसे छिपा नहीं झूठ क्यों बोलें फरोगे-मसलहत के नाम पर सकता, पाया कुछ भी नहीं। फिर मैंने कहा, जब पाया नहीं, तो जिंदगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है पचास साल काफी नहीं हैं अनुभव के लिए कि यहां कुछ मिला झूठ क्यों बोले फरोगे-मसहलत के नाम पर नहीं, कहीं और खोजें, जिंदगी खोती जा रही है? उन्होंने कहा, हित-अहित के नाम पर झूठ क्यों बोलें? बड़ा मुश्किल है। प्रतिष्ठा मिली, सम्मान मिला, अहंकार की जिंदगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है। पूजा हुई–हजारों लोग मेरे चरण छूते हैं कुछ और नहीं कितनी ही प्यारी हो जिंदगी, छूट ही जानी है, मरना है। इस | मिला। भीतर बिलकुल खाली हूं, लेकिन बाहर बड़ा सम्मान है। जिंदगी के लिए, इस जिंदगी के हित और अहित के लिए, और अगर इसे मैं छोड दं. तो जो में कल्याण-अकल्याण के लिए झूठ क्यों बोलें? जो छूट ही जाना | बुहारी लगाने की नौकरी भी देने को राजी न होंगे। न मैं है, वे समझदार के लिए छूट ही गया। जो जिंदगी मिट ही जानी पढ़ा-लिखा हूं, न मेरी कोई और योग्यता है। बस मेरी योग्यता है, वह मिटी ही पड़ी है। फिर वह यह नहीं कहता कि अब यही कि मैं उपवास कर सकता हूं। अब यह भी कोई योग्यता है, जिंदगी की रक्षा के लिए झूठ बोलना जरूरी है। जिंदगी की कोई | कि भूखे मर सकते हैं। मेरी योग्यता यही है कि मैं कष्ट सह रक्षा हो ही नहीं सकती, जिंदगी तो जाएगी ही, तो थोड़ी सकता हूं। यह भी कोई योग्यता है! कष्ट सहना कोई योग्यता सख-सविधा में बीती कि थोडी असविधा में बीती, क्या फर्क है। मर्दे की तरह जी सकता है, यही योग्यता है। पड़ता है! सपना सुबह टूट ही जाएगा, सपने में भिखारी रहे कि खयाल करना, तुम जिन जंजीरों को पकड़े हो, उनके साथ राजा रहे, क्या फर्क पड़ता है! गरीब की तरह जीए कि अमीर की प्रतिष्ठा जुड़ी होगी। मंदिर आदमी जाता है, क्योंकि लोग समझते तरह जीए, क्या फर्क पड़ता है! प्रतिष्ठित की तरह जीए कि हैं धार्मिक है। न जाए, तो लोग समझते हैं अधार्मिक है। लोग अप्रतिष्ठित की तरह जीए; लोगों ने आदर दिया कि अनादर दान भी कर लेते हैं, गीता भी रखकर पढ़ लेते हैं, कुरान भी दिया, क्या फर्क पड़ता है। जिंदगी छूट ही जानी है। रखकर पढ़ लेते हैं, ताकि लोगों को लगता रहे कि जिंदगी प्यारी सही, लेकिन हमें मरना तो है धार्मिक-बड़े सज्जन-साधु-चरित्र! लोग चरित्र को भी एक बार यह समझ में आ जाए, तो फिर तुम जंजीरों को छोड़ने पकड़े रखते हैं। व्रत-नियम भी बांधे रखते हैं। मगर यह सब में कोई अड़चन न पाओगे। अहंकार की ही पूजा चल रही है। और आत्मा को पाना हो, तो डर क्या है? प्रतिष्ठा मिलती है जंजीरों से। जिसके पास इस पूजा से छुटकारा करना ही होगा। क्योंकि यही तो बाधा है। जितनी बड़ी जंजीरें हैं, उतनी बड़ी प्रतिष्ठा है। लोग कहते हैं, 'कृपया मार्ग-दर्शन दें।' तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर छिपा देखो, कितनी बड़ी जंजीरें हैं इस आदमी के पास, कितने है। हिम्मत करो। कायर न रहो। थोड़ा साहस करो। दांव पर हीरे-मोती जड़ी, सोने की, खालिस सोने की बनी-चौबीस लगाओ। यहां खोने को तो कुछ भी नहीं है, अगर सब खो भी कैरेट सोने की बनी! जितने तुम जंजीरों में जकड़े हो, उतनी तुम्हें | गया और कुछ भी न मिला, तो भी कुछ नहीं खोता है। 234 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340143
Book TitleJinsutra Lecture 43 Gyan hi Kranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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