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________________ ज्ञान ही क्रांति आकांक्षा वही थी, कि तुम्हारे भीतर के परमात्मा का तुम्हें स्मरण | सकता है। लेकिन शायद तुम्हें दिखायी नहीं पड़ रहा है। यहां भी आये। लेकिन तुम्हारे साध-संत तम्हें सिर्फ तम्हारे पापी की याद तमने मेरी बातें सन-सनकर मान ली हैं। दिला-दिलाकर अपराध से भर गये हैं। बनी नहीं है। इसलिए तुम एक तरकीब निकाल रहे हो। तुम तो तुमने जीवन में जिन-जिन चीजों को पाप मानकर दबा रखा | कहते हो बेड़ियां बांधे हुए हैं। बांधे हुए कौन है! संस्कार कहां है, उन-उन में रस बहुत आयेगा। भोग को दबाया, तो भोग में बांधे हुए हैं! तुम कह दो कि बस क्षमा, अब बहुत हो गया; रस आयेगा। काम को दबाया, काम में रस आयेगा। लोभ को तुमसे कुछ भी न पाया, अब मुझे तुमसे मुक्त होकर कुछ खोज दबाया, तो लोभ नये-नये रूपों में प्रगट होगा। क्रोध को दबाया, | लेने दो। मंदिर हो आये बहुत बार, कुछ न मिला, अब क्यों रोज तो नयी-नयी भाव-भंगिमाएं क्रोध धारण करेगा। जो दबाया, | चले जाते हो! आदत न बनाओ मंदिर जाने की। धर्म आदत उससे छुटकारा कभी भी न होगा। दबाने से कोई मुक्ति नहीं नहीं, स्वभाव है। आदत में स्वभाव दब जाता है। जिस मूर्ति के आती। समझो, जागो। अगर भोग में रस है, तो भोग से भागो सामने सिर झुका-झुकाकर थक गये, माथा घिस डाला, मूर्ति भी | मत। जागो; भोग में ही खड़े-खड़े जागो। तुम्हारा जागरण ही खराब कर डाली, अब उसको कहो कि बहुत हो गया; हम भी तुम्हें भोग से छुटकारा दिलायेगा। थक गये, तुम भी थक गये होओगे, अब मझे क्षमा करो! तो मैं नहीं कहता कि भागो। भागने से क्या होगा? भोग लेकिन कहीं और अड़चन है। जिसको तुम बेड़ियां कह रहे हो, भीतर है, तुम जहां जाओगे वहीं तुम्हारे साथ चला जाएगा। यह वह मेरा शब्द तुमने उपयोग कर लिया, तुम्हारा नहीं। तुम्हारे मन कोई बाहर रखी चीज थोड़े ही है, कि पीठ कर ली और भाग खड़े में तो भीतर कहीं है कि यह बेड़ी बड़ी मूल्यवान है, सोने की है, हुए, तो दूर छूट गयी। यह तुम्हारे अंतस में है। इसे मिटाने का हीरे-जवाहरात जड़ी है, इसको छोड़ कैसे दें! इसमें तो बड़ा एक ही उपाय है-इसे जानना। ज्ञान क्रांति है। और ज्ञान | रहस्य है। तो नहीं छूट पायेगी। तो फिर कैसे छूटेगी! अगर तुम एकमात्र क्रांति है। और तरह की क्रांति होती ही नहीं। बीमारी को स्वास्थ्य समझे बैठे हो, तो तुम कैसे इलाज करोगे? तो अगर भोग में रस है, तो घबड़ाओ मत, रस लो। जागकर अगर तुमने गलत को ठीक समझ रखा है, अंधेरे को प्रकाश लो। भोगो। इसका इतना ही अर्थ है कि तुम भोग से अभी गुजरे समझ रखा है, कांटे को फूल समझ रखा है, तो फिर तुम कैसे नहीं। गुजरने के पहले तुमने निंदा कर ली। संसार को अभी मुक्त हो सकोगे।। जाना नहीं; जानने के पहले त्याज्य समझ लिया। नहीं, व्यर्थता देखो ठीक से, अगर बेड़ी है, तो तोड़ो। तोड़ने के लिए कुछ भी को देखना पड़ेगा। तभी संसार छूटता है। गुजरना पड़ेगा, नहीं करना पड़ता, सिर्फ समझ में आ जाए कि बेड़ी है, छूट जाती अनुभव से, अनुभव की पीड़ा से। अनुभव की अग्नि से जलना, | है। तुम हाथ में कंकड़-पत्थर लिए जा रहे हो और कोई मिल तपना पड़ेगा। | जाए और कह दे कि कंकड़-पत्थर हैं, तो क्या तुम पूछोगे कि ‘फिर परंपरा और संस्कार पांव पर बेड़ी की तरह पड़े हैं।' पड़े अब इन कंकड़-पत्थरों को कैसे छोडूं? यह पूछना तो तभी नहीं हैं, तुम उन्हें पकड़े हुए हो। बेड़ियां कोई बांधे नहीं है, तुम संभव है, जब तुम्हारे भीतर मन में तो तुम मानते हो कि हैं तो उन्हें सम्हाले हुए हो। कौन तुम्हें रोकता है। छोड़ो। तुम्हारे हीरे-जवाहरात, यह आदमी कह रहा है कंकड़-पत्थर; इस छोड़ते ही वे छूट जाएंगी। लेकिन भय है, घबड़ाहट है। यह बड़े आदमी को भी इनकार करना मुश्किल है, इस आदमी के तर्क में मजे की बात है—बड़ी विडंबना की भी कि जिससे कुछ भी | बल है और भीतर का संस्कार भी कहता है-कंकड़-पत्थर! ये नहीं मिलता उसको भी हम पकड़े रहते हैं, सम्हाले रहते हैं थाती | हीरे-मोती हैं, कंकड़-पत्थर नहीं हैं, अब करें क्या? तुम उस की तरह, धरोहर की तरह। तुम कड़ा-कर्कट भी बाहर नहीं फेंक आदमी से पूछते हो, इन्हें छोड़ें कैसे? या तो ये हीरे-मोती हैं, पाते हो, उसको भी तिजोड़ी में सम्हाले जाते हो।। छोड़ने की जरूरत नहीं। या फिर ये कंकड़-पत्थर हैं, छोड़ने की अगर तुम्हें दिखायी पड़ गया है कि यह बेड़ियां हैं, तो अड़चन जरूरत क्या है? छूट ही जाने चाहिए। गिरा दो, हाथ अलग क्या है, अब छोड़ो। तोड़ो, गिरा दो। एक क्षण में यह घट | खोल दो। मुट्ठी खोलो। घबड़ाओ मत! जिससे कुछ भी नहीं 233 Jain Education International 2010 03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340143
Book TitleJinsutra Lecture 43 Gyan hi Kranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size36 MB
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